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    वायु प्रदूषण बिगाड़ रहा नवजात के दिमागी विकास की रफ्तार, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

    Updated: Sat, 18 Oct 2025 09:08 AM (IST)

    हाल ही में हुई एक स्टडी ने माताओं और होने वाले बच्चों के लिए एक बड़ी चिंता को उजागर किया है। शोध के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माताओं का प्रदूषित हवा, खासकर PM2.5 जैसे महीन कणों के संपर्क में आना नवजात शिशुओं के मस्तिष्क के विकास को धीमा कर सकता है।

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    मां के पीएम 2.5 के संपर्क में आने से शिशु के दिमाग पर असर (Image Source: Freepik) 

    आइएएनएस, नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि जो हवा हम सांस के साथ अंदर लेते हैं, वह मां के गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकती है? हाल ही में हुए एक अध्ययन ने इस चौंकाने वाले सच से पर्दा उठाया है।

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    स्पेन में किए गए इस शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि अगर गर्भवती महिलाएं हवा में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषक कणों- यानी पीएम 2.5 के अधिक संपर्क में आती हैं, तो उनके शिशुओं के दिमाग के विकास की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।

    क्या होते हैं पीएम 2.5 कण?

    पीएम 2.5 इतने छोटे होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से देखा नहीं जा सकता। ये मानव बाल से करीब तीस गुना पतले होते हैं। ये कण गाड़ियों, कारखानों और ईंधन के जलने जैसी प्रक्रियाओं से बनते हैं। इनमें जहरीले रासायनिक यौगिक होते हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इनमें कुछ ऐसे तत्व भी पाए जाते हैं जो मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी होते हैं- जैसे आयरन, कॉपर और जिंक।

    मस्तिष्क के विकास पर कैसे असर डालते हैं ये कण?

    शोधकर्ताओं ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान अगर महिला इन प्रदूषक कणों के संपर्क में ज्यादा रहती है, तो बच्चे के दिमाग में चलने वाली एक अहम प्रक्रिया- माइलिनेशन प्रभावित होती है।

    माइलिनेशन वह प्रक्रिया है जिसमें दिमाग की नसों को एक तरह की परत ढकती है जिसे माइलिन शीथ कहा जाता है। यह परत नसों के बीच संदेश पहुंचाने की गति बढ़ाती है, जिससे सोचने-समझने और सीखने की क्षमता मजबूत होती है। लेकिन अगर यह प्रक्रिया धीमी हो जाए, तो बच्चे के मस्तिष्क की परिपक्वता भी धीमी पड़ सकती है।

    कैसे किया गया शोध?

    इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषण के संपर्क की निगरानी की और 132 नवजात शिशुओं पर अध्ययन किया। जन्म के बाद इन शिशुओं का एमआरआई स्कैन किया गया, ताकि उनके मस्तिष्क में माइलिनेशन की गति को मापा जा सके।

    नतीजे साफ थे- जिन बच्चों की माताएं अधिक प्रदूषण वाले वातावरण में रहीं, उनमें माइलिनेशन की प्रक्रिया सामान्य से धीमी थी। इसका मतलब है कि गर्भ के दौरान वायु प्रदूषण का असर बच्चे के मस्तिष्क की परिपक्वता पर पड़ सकता है।

    क्या यह असर स्थायी है?

    वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह तय नहीं है कि इस धीमे मस्तिष्क विकास का बच्चे की भविष्य की क्षमताओं- जैसे सीखने की योग्यता, स्मरण शक्ति या व्यवहार पर स्थायी असर पड़ेगा या नहीं। हालांकि, यह अध्ययन इस दिशा में एक नई चेतावनी और अनुसंधान का रास्ता खोलता है।

    गर्भवती महिलाओं के लिए क्या है जरूरी?

    • विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण से बचाव बेहद जरूरी है। इसके लिए:
    • घर से बाहर निकलते समय एन 95 मास्क पहनना चाहिए।
    • भारी ट्रैफिक या औद्योगिक क्षेत्रों में लंबे समय तक रहने से बचें।
    • घर में पौधे लगाकर और एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करके अंदर की हवा को स्वच्छ रखें।
    • मौसम विभाग द्वारा जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) पर ध्यान दें।

    यह अध्ययन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि वायु प्रदूषण सिर्फ सांस या दिल से जुड़ी बीमारियों का कारण नहीं है, बल्कि यह अजन्मे बच्चे के मस्तिष्क विकास को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, स्वच्छ हवा केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का सवाल है।

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