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    साउथ इंडिया से नहीं है आपकी फेवरेट 'इडली'! चाव से तो खाते हैं; मगर क्या पता है इसका दिलचस्प इतिहास?

    Updated: Wed, 04 Jun 2025 12:54 PM (IST)

    जब भी साउथ इंडियन खाने की बात होती है तो इडली का नाम सबसे पहले आता है। गरमा-गरम इडली सांभर और नारियल की चटनी के बारे में सोचकर ही मुंह में पानी आ जाता ...और पढ़ें

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    History of Idli: दिलचस्प है इडली का इतिहास (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इडली को कई लोग बड़े चाव से खाते हैं, लेकिन बिना सोचे-समझे यह मान लेते हैं कि यह साउथ इंडिया की ही देन है। ऐसे में, क्या हो अगर हम आपसे कहें कि आपकी यह पसंदीदा, नरम-मुलायम इडली असल में दक्षिण भारत से है ही नहीं?

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    जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा! इडली का सफर (History of Idli) जितना लंबा और दिलचस्प है, उतना ही चौंकाने वाला भी। इस आर्टिकल में हम आपके लिए इडली के ऐसे दिलचस्प इतिहास (Idli origin) को खंगालने वाले हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

    कहां से आई इडली?

    इतिहासकारों और फूड एक्सपर्ट्स का मानना है कि इडली की शुरुआत इंडोनेशिया में हुई थी। चौंक गए ना? माना जाता है कि 800 से 1200 ईस्वी के दौरान, इंडोनेशिया में 'केडली' नाम की एक डिश काफी पॉपुलर थी, जो काफी हद तक हमारी आज की इडली जैसी ही थी। इंडोनेशिया में चावल और फर्मेंटेशन के प्रोसेस का इस्तेमाल खाने में काफी होता था।

    कुछ थ्योरीज यह भी कहती हैं कि यह डिश अरब देशों से आई है। अरब व्यापारी भारत आते-जाते रहते थे और वे अपने साथ खमीर उठाने की तकनीक लाए। चूंकि, इस्लाम में हलाल मीट खाया जाता था, तो उन्होंने चावल को दाल के साथ मिलाकर खमीर उठाने की प्रक्रिया सीखी और इडली जैसी कोई चीज बनाई, जो भारत में आकर और विकसित हुई।

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    भारत में कब और कैसे पहुंची इडली?

    तो फिर यह भारत कैसे पहुंची और साउथ इंडिया में इतनी पॉपुलर कैसे हुई? माना जाता है कि इंडोनेशिया से जो लोग भारत आए (खासकर कर्नाटक), वे अपने साथ इस डिश को बनाने की विधि भी लाए। भारत आकर इसमें कुछ बदलाव हुए और इसे स्थानीय मसालों और तरीकों से बनाना शुरू किया गया।

    आपको जानकर हैरानी होगी कि सबसे पहले इडली का जिक्र 920 ईस्वी में कन्नड़ साहित्य में मिलता है! वहां इसे 'इड्डलिगे' कहा गया है। इसमें उड़द दाल को छाछ में भिगोकर और कुछ मसालों के साथ बनाया जाता था। उस समय इसमें खमीर नहीं उठाया जाता था और न ही चावल का इस्तेमाल होता था।

    जैसे-जैसे समय बीता, 17वीं शताब्दी तक इडली ने वो रूप लेना शुरू कर दिया जिसे हम आज जानते हैं। इस दौरान इसमें चावल को शामिल किया गया और खमीर उठाने की प्रक्रिया भी जोड़ी गई, जिससे इडली और भी मुलायम और स्वादिष्ट बन गई। साउथ इंडिया की गर्म और नम जलवायु खमीर उठाने के लिए एकदम सही थी, जिससे यह यहां और भी तेजी से पॉपुलर हुई।

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