दाल बाटी चूरमा: युद्ध के मैदान से जुड़ा है राजस्थान के इस पारंपरिक व्यंजन का इतिहास
राजस्थान का नाम सुनते ही सबसे पहले यहां के शाही किले और रंग-बिरंगी पगड़ियां जहन में आती हैं। यहां के राजसी व्यंजनों की बात करें तो Daal Baati Churma की अपनी एक खास जगह है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पारंपरिक व्यंजन का जन्म युद्ध के मैदान से हुआ था? जी हां जिस पकवान को आप बड़े चाव से खाते हैं उसका इतिहास भी जान लीजिए।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Dal Bati Churma History: बात है 8वीं सदी की, जब मेवाड़ में बप्पा रावल का शासन था। उनकी सेना अक्सर युद्धों में व्यस्त रहती थी। इन युद्धों के दौरान सैनिकों के लिए भोजन तैयार करना एक बड़ी चुनौती थी। रसोइयों को हर बार अलग-अलग व्यंजन बनाने और उन्हें सैनिकों तक पहुंचाने में काफी समय लगता था। दरअसल, सैनिकों को ऐसे भोजन की जरूरत थी जो बनाने में आसान हो, जल्दी तैयार हो जाए, पेट भरने वाला हो और लंबे समय तक चले।
इसी जरूरत के चलते 'बाटी' का जन्म हुआ। सैनिकों ने एक आसान तरीका खोजा, उन्होंने गूंथे हुए आटे के छोटे-छोटे गोले बनाए और उन्हें तपती रेत में दबा दिया। युद्ध के बाद जब वे लौटते, तो ये आटे के गोले रेत की गर्मी से पककर कठोर और सुनहरे हो चुके होते थे। इन्हें ही बाटी कहा गया। ये बाटी काफी पौष्टिक होती थीं और इन्हें बनाना भी बेहद आसान था।
ऐसे मिला दाल और चूरमे का साथ
शुरुआत में बाटी को शायद बिना किसी चीज के खाया जाता होगा, लेकिन जल्द ही सैनिकों ने इसे दाल के साथ खाना शुरू किया। दाल प्रोटीन का एक अच्छा सोर्स थी और बाटी के सूखेपन को भी कम करती थी। यह कॉम्बिनेशन सैनिकों को युद्ध के लिए जरूरी एनर्जी देता था।
अब बात करते हैं चूरमा की, जो इस तिकड़ी का तीसरा और सबसे खास हिस्सा है। कहते हैं कि एक बार गलती से कुछ बाटियां दाल में गिर गईं और नर्म हो गईं। जब उन्हें तोड़ा गया और घी-गुड़ के साथ मिलाया गया, तो एक नई स्वादिष्ट डिश तैयार हुई- चूरमा! यह इतना पसंद किया गया कि जल्द ही यह भी दाल-बाटी का अभिन्न अंग बन गया।
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रणभूमि से रसोई तक का सफर
जैसे-जैसे युद्ध कम हुए और शांति का समय आया, दाल बाटी चूरमा युद्ध के मैदान से निकलकर आम जनजीवन का हिस्सा बन गया। रसोइयों ने इसे और बेहतर बनाने के लिए नए तरीके खोजे। रेत में पकाने की बजाय इसे तंदूर या ओवन में पकाया जाने लगा, जिससे यह और भी स्वादिष्ट और मुलायम हो गया। दाल और चूरमे में भी कई तरह के बदलाव किए गए, जिससे आज हमें दाल बाटी चूरमा के अनगिनत रूप मिलते हैं।
आज, दाल बाटी चूरमा राजस्थान की पहचान बन चुका है। यह हर त्योहार, शादी और खास मौकों पर शान से परोसा जाता है। इसका इतिहास हमें बताता है कि कैसे जरूरत ने मिलकर एक ऐसा व्यंजन बनाया, जो न सिर्फ स्वादिष्ट है, बल्कि अपने साथ सदियों का शौर्य और संस्कृति समेटे हुए है। अगली बार जब आप दाल बाटी चूरमा का स्वाद लें, तो याद रखिएगा कि यह सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि युद्ध के मैदान से थाली तक पहुंचा एक गौरवशाली इतिहास है।
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