हर भारतीय की जुबां पर चढ़ा है समोसे का स्वाद, मगर हर कोई नहीं जानता इसका दिलचस्प इतिहास
समोसा! सिर्फ नाम ही काफी है मुंह में पानी लाने के लिए। गरमा-गरम खस्ता समोसा और साथ में तीखी हरी चटनी या मीठी लाल चटनी... आह! यह भारत के हर गली-नुक्कड़ कैंटीन और ढाबे की शान है। चाहे सुबह का नाश्ता हो शाम की चाय या फिर दोस्तों के साथ गपशप समोसा हमेशा हमारी थाली में अपनी जगह बना लेता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। जब भी चाय के साथ कुछ चटपटा खाने का मन करता है, तो सबसे पहला ख्याल जहन में आता है- समोसे का। सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है और उसकी कुरकुरी परत और मसालेदार आलू की स्टफिंग आंखों के सामने घूमने लगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह देशभर में मशहूर और हर दिल अजीज स्नैक असल में भारतीय नहीं है? जी हां, समोसा भारत का नहीं, बल्कि एक विदेशी मेहमान है जो सैकड़ों साल पहले हमारे यहां आया था और फिर दिलों में घर कर गया।
कहां से आया समोसा?
समोसे की कहानी शुरू होती है मध्य पूर्व यानी पश्चिमी एशिया से। माना जाता है कि 10वीं शताब्दी से पहले समोसे जैसे व्यंजन वहां बनाए जाते थे। फारसी भाषा में इसे ‘सम्मोसा’ या ‘संबोसा’ कहा जाता था, और यही शब्द समय के साथ बदलकर ‘समोसा’ बन गया।
उस दौर के ईरानी खाने में एक खास तरह की भरवां पेस्ट्री हुआ करती थी, जिसमें सूखे मेवे या मीट भरा जाता था और फिर इसे तला या बेक किया जाता था। इसी रूप में समोसा भारत तक पहुंचा। इतिहासकारों के अनुसार, मध्य एशिया से भारत आने वाले व्यापारी और शाही खानसामे अपने साथ यह व्यंजन भी लाए थे, जो धीरे-धीरे यहां की रसोई में शामिल हो गया।
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भारत में कैसे बदला समोसा?
भारत में समोसा जैसे ही पहुंचा, इसका स्वाद भी यहां की मिट्टी में रंग गया। विदेशी समोसा जहां मांस और मेवों से भरपूर होता था, वहीं भारत में इसे वेजिटेरियन बनाया गया। खासकर आलू की स्टफिंग ने इसे आम भारतीय का पसंदीदा बना दिया।
भारत में आलू और मसालों की खूबायत थी, इसलिए समोसे में गरम मसाले, हरी मिर्च, धनिया, अदरक और प्याज जैसी चीजों का तड़का लग गया। देखते ही देखते यह नाश्ता हर गली-नुक्कड़, चाय की दुकान, शादी-ब्याह और त्योहारों का हिस्सा बन गया।
क्यों तिकोना होता है समोसा?
समोसे का तिकोना आकार भी अपनी एक खास पहचान बन गया है। हालांकि, इसके पीछे कोई ऐतिहासिक कारण नहीं बताया गया है, लेकिन माना जाता है कि यह फारसी संस्कृति की देन है। तिकोना आकार स्टफिंग को अच्छी तरह समेटे रखने के लिए भी बेहतर होता है।
भारत में इसके अलग-अलग नाम भी हैं- जैसे उत्तर भारत में ‘समोसा’, बंगाल और बिहार में इसे ‘सिंघाड़ा’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका आकार सिंघाड़े से मिलता-जुलता है। वहीं दक्षिण भारत में यह थोड़ा अलग अंदाज में भी मिलता है।
हर स्वाद में उपलब्ध हैं समोसे
समय के साथ समोसे ने भी खूब बदलाव देखे। आज इसका आलू वाला पारंपरिक रूप तो है ही, साथ में चीज समोसा, मिक्स वेज समोसा, पनीर समोसा, चॉकलेट समोसा, और यहां तक कि मैगी समोसा जैसे नए-नए वर्जन भी मार्केट में आ गए हैं।
अब समोसे को इमली या पुदीने की चटनी के साथ, तो कहीं छोले या दही के साथ परोसा जाता है। भारत से निकलकर समोसा आज अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा जैसे देशों में भी बेहद लोकप्रिय हो गया है।
एक स्वाद, कई कहानियां
समोसे की कहानी सिर्फ एक व्यंजन की नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों के मेल की है। यह वो स्वाद है जो विदेशी होकर भी भारतीय बन गया। जिसने शाही दरबारों से लेकर सड़क किनारे ठेलों तक सबका दिल जीता। जी हां, चाहे बारिश का मौसम हो या मेहमानों का आना-जाना, समोसे के बिना बात अधूरी लगती है।
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