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    बेहद मनमोहक होता है चैत का महीना, खिल उठते हैं आम के बौर; खेतों में लहराती है फसल

    Updated: Sun, 23 Mar 2025 05:36 PM (IST)

    चैत का महीना किसानों के लिए बहुत अहम होता है क्योंकि यह उनके सर्दियों भर की मेहनत का फल लेकर आता है। इस समय प्रकृति में एक अलग ही रौनक होती है यहां तक कि आम के पेड़ भी फूलों से भर जाते हैं। इस महीने की खुशबू और सुंदरता का अनुभव करने के लिए आपको मालिनी अवस्थी के लिखे हुए किसी चैती गीत को जरूर सुनना चाहिए।

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    चैत्र का महीना: जब आम के बौर महकते हैं और खेत सुनहरी फसलों से सज जाते हैं (Image Source: Freepik)

    मालिनी अवस्थी, नई दिल्ली। होली के पर्व का उन्माद, उत्साह, खुमार उतरते ही सभी को चैतन्य करने आ जाता है चैत का महीना। मुझसे पूछिए तो चैत से समृद्ध और कोई महीना नहीं, कोई मौसम नहीं। ऐसा मौसम जिसमें आम भी बौरा जाएं। ऐसी ऋतु जब अपने दानों के वैभव में इतराई हुई गेहूं की पकी सुनहरी बालियां खेतों में झूम रही हों, किसानों के परिश्रम का नवनीत बन खेतों में रबी की फसलें जैसे गेहूं, चना, सरसों, और मसूर उतरने को तैयार हों।

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    जब सूरज की आंच भाने लगे, कचनार-पलाश-सेमल के लाल दहकते हुए विशाल वृक्षों का मोहित कर देने वाला सौंदर्य और आम के बौर की सुगंध से बौराई चैत की बयारिया सुध-बुध हर ले। चैत की यह अलमस्त बयार, न जाने कितने ही अनुरागियों को अपने मोहपाश में जकड़ लेती है। वैसे चैत के बारे में जानना हो तो बस किसी चैती को गुनगुनाकर देखिए। चैती की ऐसी विशिष्ट धुन जो विलंबित से द्रुत होती हुई पुनः गंभीरता में विराम लेती है वैसे ही जैसे एक चक्र पूर्ण कर चैत से नए संवत्सर का आरंभ होता है।

    जीवन में रस माधुर्य

    मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरंभ की थी। इसीलिए वर्षारंभ चैत्र मास से माना गया। पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महत्ता है। अनेक पर्व इस मास में मनाए जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र में होती है, इसी कारण इस महीने का नाम चैत्र पड़ा। चैत्र से चैत हुआ और इस महीने में चारों ओर के वातावरण की अनुभूति छलक आई चैती में। इस समय की प्राकृतिक आभा का जैसा वर्णन चैती के अनुपम साहित्य में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।

    इस माह में प्रकृति जैसे मनुष्य की सहचरी बन उतर आती हो-

    ‘सूतल सैयां को जगाए हो रामा तोरी मीठी बोलिया।

    रोजे रोज बोले कोयली सांझे सबेरवा,

    आज काहे बोले आधी रतिया हो रामा तोरी मीठी बोलिया।’

    चैत का यह रस जीवन में रस माधुरी बिखेरता है, चैती चित्त को प्रेम अनुराग और शृंगार रस से सराबोर कर देती है। एक विरहनी को चैत का चंद्रमा नहीं सुहा रहा, क्योंकि उसे देख विरहनी को अपने प्रिय को याद आती है-

    ‘चैत चनरमा ना भावे हो रामा, दरद जगावे।’

    या फिर-

    ‘बिना बात हुलसे परनवा हो रामा चइत महिनवा!’

    और तो और, चैत में बहने वाली पछुवा पवन हृदय में कैसा आलस्य जगा रही है-

    ‘चैत मासे जीयरा अलसाने हो रामा’

    मौसम की अनुभूति की अकुलाहट का इससे सुंदर वर्णन और क्या होगा। यह अकुलाहट ही अंतर्मन में झांकने की प्रेरणा बनती है, वहीं जिज्ञासा बन चैत में गूंज उठती है-

    ‘एही ठइयां मोतिया हेरा गइलीं रामा कहवां मैं ढूंढू!’

    बुलाकी दास ने ऋतु के इसी आलोड़न पर यह कालजयी घाटो रचा-

    ‘हे रामा मानिक हमरो हेरायल जमुना में

    ओहि जमुना की ऊंची कछार, देखि के जियरा डरावे’

    लोभी मन मानिक खोज तो ले किंतु ऊंची कछार से जमुना जी की गहराई देख जी भयभीत है। यही है चैत। जो बेसुध भी करता है और अंतःकरण को चेताता भी है।

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    नई ऊर्जा का संचार

    ‘या देवी सर्वभूतेषु चेतना रूपेण संस्थिता’ अर्थात जो देवी सभी प्राणियों में चेतना के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें नमन है, वंदन है। देवी प्रसन्न हों तभी समृद्धि सौंदर्य और सौभाग्य बरसता है। चैत माह में शक्ति पर्व के नौ पवित्र दिन तप-त्याग के नवरात्र बन हमारे भीतर नई ऊर्जा का संचार करते हैं। ये नवरात्र शक्ति का आह्वान कर तन और मन को आने वाली प्रचंड ग्रीष्म के लिए तैयार करते हैं। देवी प्रसन्न होती हैं तो सृष्टि में अमृत छलकता है। देवी और श्रीराम का आध्यात्मिक अंर्तसंबंध है।

    चैत्र की नवरात्र में नवमी को श्रीराम जन्म लेते हैं और शारदीय नवरात्र की नवमी को शक्ति पूजा कर सिद्धि प्राप्त करते हैं और उस सिद्धि से दशानन का वध कर धर्म की स्थापना करते हैं। चैत आने का संकेत ही है लोक चित्त में बसे प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव की धूम। प्रतापी रघुवंश में दशरथ-कौशल्या के घर रामलला का आगमन, सुख का आगमन है। यह एक शिशु का जन्म ही नहीं, भारत के घर-घर में नवागत का स्वागत है। आशा, उमंग और सदाचार की स्थापना का स्वागत है।

    ‘लिहलें जनम रघुरइया हो रामा लिहलें अयोध्या में।

    पिता दशरथ और माता कौशल्या

    भरत लखन शत्रु भाई हो रामा।’

    चैत से राम का शाश्वत जुड़ाव है। चैती का अस्तित्व ही ‘हो रामा’ की टेर पर टिका है। इसीलिए प्रभु राम के आगमन के स्वागत में प्रकृति समस्त उदारता के साथ सर्वस्व न्योछावर करते हुए दिखाई देती है। इसी मौसम में अवध और पूरब में ग्रामीण अंचल में गाए जाने वाले घाटो का वर्णन देख मन जुड़ा जाता है-

    ‘अरे हे रामा चैत राम जी जनमले हो रामा

    घरे घरे बाजेला बधइया हो रामा

    कौशल्या लुटावें अन धन सोनवा हो रामा

    सखियां डालें न्योछावर हो रामा।।’

    अन्न प्रसाद है और अन्नदाता किसान भगवान। किसान बंधु द्वारा शीत ऋतु में किए गए कठोर परिश्रम के पकने का समय है चैत का महीना। वैसाखी हो या बिहू, इसी आनंद के उत्सव हैं। आइए इस चैत्र नवरात्र में देवी की आराधना करते हुए किसानों के लिए शक्ति का आशीर्वाद और रामनवमी में भगवान राम से मनुष्य में मर्यादा का संस्कार मांगे। चैत स्वागत है तुम्हारा, हम प्रतिवर्ष तुम्हारी चेतना में चैतन्य होते रहें, तुम्हारी समृद्ध व्याप्ति में नित नवीन ऊर्जा प्राप्त करते रहें।

    (लेखिका पद्मश्री से सम्मानित लोकगायिका हैं)

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