क्या आप जानते हैं एक मुगल बादशाह ने भी निभाया था राखी का रिश्ता? हिंदू रानी को बहन मानकर भेजी थी मदद
Raksha Bandhan का त्योहार सिर्फ भाई-बहन के बीच का नहीं बल्कि विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। इतिहास में एक ऐसा वाकया दर्ज है जब एक मुगल बादशाह ने भी इस पवित्र रिश्ते की लाज रखी थी। यह कहानी है मुगल सम्राट हुमायूं और मेवाड़ की वीर रानी कर्णावती की जिन्होंने रक्षाबंधन के धागे से एक ऐसा रिश्ता जोड़ा जो आज भी याद किया जाता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Raksha Bandhan हिंदू धर्म का एक बड़ा त्योहार है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है। यह त्योहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं, भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते हैं और उन्हें उपहार देकर अपना प्रेम जाहिर करते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत कैसे हुई? वैसे तो, रक्षाबंधन का त्योहार कई सालों पुराना है और इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं (Raksha Bandhan Story) प्रचलित हैं। लेकिन इनमें एक कहानी सबसे ज्यादा दिलचस्प है। यह कहानी एक मुगल बादशाह और एक हिंदू रानी से जुड़ी है। आइए जानें।
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रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी
यह कहानी 16वीं शताब्दी की है, जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया था। चित्तौड़गढ़ बहादुर शाह की सेना का अकेले मुकाबला करने में सक्षम नहीं थी। तब अपने राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए मेवाड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर सहायता मांगी। उस समय रानी कर्णावती विधवा थीं और उनके पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बहुत छोटे थे। बहादुर शाह की विशाल सेना के सामने मेवाड़ की सेना कमजोर पड़ रही थी। ऐसे में रानी ने हुमायूं को राखी भेजकर उन्हें अपना भाई बनाया और मदद की गुहार लगाई।
हुमायूं ने राखी को स्वीकार किया और रानी कर्णावती को अपनी बहन मानते हुए चित्तौड़ की रक्षा के लिए सेना भेजी। हालांकि, हुमायूं की मदद पहुंचने से पहले ही बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया और रानी कर्णावती ने "जौहर" कर लिया। लेकिन हुमायूं ने बाद में चित्तौड़ को मुक्त करवाया और रानी के पुत्रों को सुरक्षित बचा लिया।
कहा जाता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत हुई। इसलिए हर साल राखी के त्योहार पर बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं। बादशाह हुमायूं और रानी कर्णावती की कहानी प्रेम और विश्वास का संदेश देती है।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं
मुगल बादशाह हुमायूं और रानी कर्णावती की कहानी के अलावा और भी कई पौराणिक कहानियां हैं। जिसमें एक कहानी भगवान कृष्णा और द्रौपदी से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई थी, तो द्रौपदी ने साड़ी का आंचल चीड़कर उंगली पर बांधी थी।
एक कहानी देवी लक्ष्मी और राजा बली से भी जुड़ी है। कहानी कुछ ऐसी है कि बली ने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा का वचन लिया था, जिसके कारण वे उनके द्वारपाल बनकर रहने लगे थे। ऐसे में भगवान विष्णु को मुक्त करवाने के लिए उन्होंने राजा बली को राखी बांधी, जिससे खुश होकर राजा बली ने उन्हें मनचाही इच्छा मांगने को कहा और देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को द्वारपाल की भूमिका से मुक्त करने का वचन मांगा।
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