Navratri 2025: क्यों होती है मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा? पढ़ें इस त्योहार का असली महत्व
9 दिनों तक चलने वाला नवरात्र का यह त्योहार (Navratri 2025) मां दुर्गा और उनके 9 दिव्य रूपों की आराधना को समर्पित है। इस दौरान भारत के हर कोने में एक अलग ही उल्लास और उत्साह देखने को मिलता है। चाहे वह व्रत-उपवास हो रामलीला का मंचन हो गरबा की धूम हो या भव्य दुर्गा पूजा नवरात्र हर रूप में हमें अपनी परंपराओं से जोड़ता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति में नवरात्र (Navratri 2025) सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा, आस्था और उत्साह का अद्भुत संगम है। 9 दिनों तक चलने वाला यह पर्व मां दुर्गा और उनके 9 रूपों की आराधना का प्रतीक है (Significance of Navratri)। इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में व्रत, पूजन, गरबा, रामलीला और दुर्गा पूजा जैसे विविध आयोजन होते हैं, जो नवरात्र को धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद खास बनाते हैं।
शक्ति की आराधना
नवरात्र का सबसे बड़ा महत्व शक्ति की पूजा से जुड़ा है। देवी दुर्गा को सृजन, पालन और संहार की मूल शक्ति माना गया है। नौ दिनों तक उनके नौ स्वरूपों- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। हर रूप हमें अलग-अलग संदेश देता है, जैसे धैर्य, साहस, भक्ति और ज्ञान। नवरात्र की साधना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाती है कि सृष्टि की हर रचना स्त्री शक्ति से जुड़ी है और उसका सम्मान जीवन के संतुलन के लिए जरूरी है।
अच्छाई की बुराई पर जीत
नवरात्र का संबंध उस अनंत संदेश से भी है, जिसमें अच्छाई की हमेशा जीत होती है। सबसे प्रसिद्ध कथा है मां दुर्गा और महिषासुर की। महिषासुर को वरदान मिला था कि उसे कोई पुरुष या देवता नहीं मार सकता, लेकिन जब उसका अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की। देवी ने नौ रातों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। यही विजयादशमी का दिन है। उत्तर भारत में नवरात्र का संबंध भगवान राम की रावण पर जीत से भी जुड़ा है। इस दौरान रामलीला का मंचन होता है और दशहरे पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले दहन कर दिए जाते हैं, जो अहंकार और अन्याय के अंत का प्रतीक हैं।
सेहत और मौसम से जुड़ा पर्व
नवरात्र केवल आस्था का पर्व नहीं, बल्कि यह मौसम और सेहत से भी जुड़ा है। साल में दो बार- चैत्र और शारदीय नवरात्र मनाए जाते हैं। ये समय मौसम बदलने का होता है, जब शरीर को नए वातावरण के अनुसार ढालने की जरूरत होती है। उपवास और हल्के भोजन की परंपरा शरीर को शुद्ध करने और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करती है।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी नवरात्र बेहद रंगीन और जीवंत त्योहार है। गुजरात-महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया की धूम होती है, बंगाल और पूर्वी भारत में भव्य दुर्गा पूजा होती है, वहीं दक्षिण भारत में गोलू सजाने की परंपरा है। यही विविधता नवरात्र को पूरे देश को जोड़ने वाला पर्व बना देती है।
आज के समय में नवरात्र का संदेश
तेज रफ्तार और तनाव से भरी आधुनिक जिंदगी में नवरात्र हमें ठहरकर आत्मचिंतन करने का अवसर देता है। यह त्योहार हमें अनुशासन, धैर्य और सकारात्मकता जैसे गुण अपनाने की प्रेरणा देता है। मां दुर्गा और भगवान राम की कथाएं हमें सिखाती हैं कि कितनी भी बड़ी बुराई क्यों न हो, साहस और सत्य के बल पर उसका अंत निश्चित है। साथ ही यह पर्व सामाजिक मेलजोल और भाईचारे को भी मजबूत करता है, चाहे वह गरबा की रातें हों या दुर्गा पूजा के पंडाल।
नवरात्र केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन का संदेश है। यह हमें सिखाता है कि शक्ति का सम्मान करें, अच्छाई का साथ दें और बुराई का अंत करें। यह पर्व सेहत, आस्था और सामाजिक एकता का अद्भुत मेल है। हर साल जब दीप, ढोल और आरती की गूंज से वातावरण भर उठता है, तो यह हमें याद दिलाता है कि प्रकाश और सत्य हमेशा अंधकार और असत्य पर विजय पाते हैं।
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