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    Janmashtami की शान है Dahi Handi, कृष्ण की शरारतों से शुरू हुआ था ये रंगीन उत्सव; दिल जीत लेगी कहानी

    Updated: Wed, 13 Aug 2025 01:30 PM (IST)

    इस साल 16 अगस्त को जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाएगी। दही हांडी जो महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनाई जाती है इस उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की याद दिलाता है जिसमें वे दही और मक्खन चुराते थे।

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    Janmashtami 2025: दही हांडी परंपरा की खास बातें।

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इस बार 16 अगस्त को देशभर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी कि Janmashtami 2025 का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन भगवान कृष्ण के भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों को सजाते हैं और झांकियां बनाकर लड्डू गोपाल का जन्म उत्सव मनाते हैं। जन्माष्टमी के साथ ही एक और रंगारंग परंपरा होती है, जिसे हम दही हांडी (Dahi Handi) के नाम से जानते हैं।

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    ये एक खास तरह का प्रोग्राम होता है। आमताैर पर पूरे भारत में ये उत्सव मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में इसकी खास झलक देखने को मिलती है। 16 अगस्त को होने वाली जन्माष्टमी पर जगह-जगह दही हांडी प्रतियोगिताएं होंगी, जहां संगीत, ढोल-ताशे और भीड़ के उत्साह से पूरा माहौल भक्तिमय और जोश से भर जाएगा। आज का हमारा लेख भी इसी विषय पर है। हम आपको दही हांडी उत्सव के इतिहास और महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से-

    दही हांडी का महत्व और इसकी कहानी

    भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन यानी कि कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पूरे देश में दही हांडी उत्सव की धूम देखने को मिलती है। 'दही' का मतलब है दही और 'हांडी' का मतलब है मिट्टी का बर्तन जिसमें दूध से बनी चीजें भरी जाती हैं। इसे महाराष्ट्र में गोपालकाला और उत्लोतसवम के नाम से भी जाना जाता है। ये महाराष्ट्र का एक बड़ा त्योहार है, जिसे भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को याद करने के लिए मनाया जाता है।

    भगवान कृष्ण की बाल लीला से जुड़ी है परंपरा

    हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, बचपन में भगवान कृष्ण को दही, मक्खन और दूध से बनी चीजें बहुत ज्यादा पसंद थीं। उनका लगाव इतना ज्यादा था कि वो पड़ोस के घरों से भी ये चीजें चुराने लगे। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्तों की एक टोली बना ली। गांव की महिलाएं मक्खन और दही को बचाने के लिए उन्हें मिट्टी की हांडी में भरकर छत से ऊंचाई पर टांग देती थीं। इसका कारण ये था कि भगवान कृष्ण की हाइट कम थी और वो वहां तक नहीं पहुंच पाते।

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    इस तरह से भगवान कृष्ण ने तोड़ ली हांडी

    हालांकि भगवान कृष्ण कहां हार मानने वालों में से थे, उन्होंने भी अपने दोस्तों के साथ मिलकर इंसानी पिरामिड बनाने का तरीका खोज निकाला और हांडी तोड़ ली। यही कारण है कि जन्माष्टमी के मौके पर दही हांडी उत्सव मनाया जाता है। आज भी जब इस उत्सव का आयोजन किया जाता है तो भगवान कृष्ण के समय का यही नजारा देखने को मिलता है।

    ऊंचाई पर लटकाई जाती है हांडी

    आपको बता दें कि दूध, दही, मक्खन और दूध से बनी कई चीजों को हांडी में भरकर कई मंजिल ऊंचाई पर लटकाया जाता है। पुरुषों की टीमें, जिन्हें 'गोविंदा' कहा जाता है, पिरामिड बनाकर ऊपर तक पहुंचती हैं। इस दौरान महिलाएं, जो भगवान श्री कृष्ण के पड़ोस की महिलाओं का प्रतीक होती हैं, ऊपर से पानी और फिसलन पैदा करने वाली चीजों को जमीन पर डालती हैं। ताकि गोविंदाओं का ऊपर चढ़ना मुश्किल हो जाए।

    देखने लायक होता है माहौल

    सबसे ऊपर चढ़ा हुआ सबसे छोटा गोविंदा ही हांडी को तोड़ता है और उसमें भरी चीजें सभी प्रतिभागियों में बांटी जाती हैं। इस पूरे आयोजन में ढोल-ताशे, पारंपरिक गीत और भीड़ का उत्साह वातावरण को बहुत ज्यादा रोमांचक बना देता है। ये माहौल देखने लायक होता है।

    ये संदेश देता है दही हांडी का उत्सव

    दही हांडी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि ये साहस, टीमवर्क और एकता का प्रतीक भी माना जाता है। जैसे कृष्ण और उनके दोस्तों ने मिलकर इस कठिन काम को चुटकियों में पूरा किया था, ठीक वैसे ही ये उत्सव हमें सिखाता है कि मिलजुल कर और हिम्मत के साथ कोई भी ऊंचाई हासिल की जा सकती है।

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