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    सिर्फ 'Trick or Treat' नहीं है हैलोवीन! जानें कैसे हुई 2000 साल पुराने इस त्योहार को मनाने की शुरुआत

    Updated: Thu, 30 Oct 2025 10:43 AM (IST)

    हर साल अक्टूबर की आखिरी तारीख को हैलोवीन (Halloween) मनाया जाता है। इस दिन डरावने कॉस्च्यूम पहनकर बच्चे ट्रिक और ट्रीट मांगते हैं, वयस्क पार्टीज का आयोजन करते हैं और खूब मस्ती मजाक किया जाता है। लेकिन इस त्योहार की शुरुआत ऐसे नहीं हुई थी। आइए जानें कैसे हैलोवीन मनाने की शुरुआत हुई थी और इसका क्या महत्व है। 

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    कैसे हुई हैलोवीन मनाने की शुरुआत? (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हर साल 31 अक्टूबर को हैलोवीन (Halloween 2025) मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है आज हम जिसे रोशनी, स्वीट्स और मस्ती-मजाक से भरे त्योहार के रूप में जानते हैं, उसकी जड़ें प्राचीन सेल्टिक संस्कृति और ईसाई परंपराओं से गहराई से जुड़ी हैं। 

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    जी हां, यह केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं, मान्यताओं और संस्कृतियों के मेल का दिलचस्प नतीजा है। आइए जानें कि आखिर क्यों हर साल 31 अक्टूबर को मनाया जाता है हैलोवीन और इसकी शुरुआत (How Halloween Started) कैसे हुई थी।

    Halloween (1)

    (Picture Courtesy: Freepik)

    सेल्टिक 'सौवेन' पर्व

    हैलोवीन की शुरुआत लगभग 2000 साल पहले, प्राचीन सेल्टिक लोगों के 'सौवेन' नाम के त्योहार से हुई थी। सेल्ट्स, जो आज के आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और उत्तरी फ्रांस में रहते थे, अपना नया साल 1 नवंबर को मनाते थे। यह दिन गर्मियों के अंत और सर्दियों की शुरुआत यानी अंधेरे के मौसम का प्रतीक था। उनका मानना था कि 31 अक्टूबर की रात, जिसे सौवेन की रात कहा जाता था, जीवित और मृत दुनिया की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं और मृतकों की आत्माएं जीवित लोगों की दुनिया में वापस आ जाती हैं।

    इस रात को न केवल पूर्वजों की आत्माएं लौटती थीं, बल्कि दुष्ट आत्माएं और परेशान करने वाली शक्तियां भी धरती पर घूमती थीं। इन्हें खुश रखने और डराने के लिए, लोग अलाव जलाते थे और जानवरों की बलि चढ़ाते थे। लोग मुखौटे पहनकर और पशुओं की खाल ओढ़कर खुद को इन आत्माओं से छुपाने की कोशिश करते थे, ताकि वे उन्हें पहचान न सकें और परेशान न कर सकें। यहीं से 'ट्रिक-ऑर-ट्रीट' और अलग-अलग कॉस्च्यूम पहनने की परंपरा की नींव पड़ी।

    ईसाई प्रभाव और 'ऑल हैलोज ईव'

    8वीं शताब्दी में, पोप ग्रेगरी तृतीय ने 1 नवंबर को 'ऑल सेंट्स डे' के रूप में समर्पित किया। इस दिन ईसाई संतों को याद किया जाता था। इस पवित्र दिन के पहले वाली शाम, यानी 31 अक्टूबर को, 'ऑल हैलोज ईव' या 'हॉलोज ईव' कहा जाने लगा। समय के साथ, यह नाम बदलकर 'हैलोवीन' हो गया। ईसाई मान्यताओं ने सौवेन की कुछ परंपराओं को अपना लिया, जिससे यह त्योहार एक अनोखे ढंग से विकसित हुआ।

    अमेरिका में माइग्रेशन और आधुनिक स्वरूप

    19वीं शताब्दी में, आयरलैंड से अमेरिका आए माइग्रेंट्स अपने साथ हैलोवीन की परंपराएं भी लेकर आए। शुरुआत में यह त्योहार सीमित समुदायों तक ही था, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे अमेरिका में लोकप्रिय हो गया। अमेरिका में इसने एक नया, अधिक समुदायिक और मनोरंजक रूप ले लिया। 'ट्रिक-ऑर-ट्रीट' की प्रथा यहीं विकसित हुई, जहां बच्चे पड़ोसियों के घर जाकर ट्रीट यानी कैंडीज मांगते हैं। कद्दू को खोखला करके उसमें मुंह बनाना और अंदर मोमबत्ती जलाना (जैक-ओ-लैंटर्न) भी अमेरिका में ही शुरू हुआ। मूल रूप से आयरलैंड में शलजम का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अमेरिका में कद्दू की मात्रा ज्यादा होने के कारण इस परंपरा को बदल दिया।

    आज का हैलोवीन

    आज, हैलोवीन ने अपने ज्यादातर धार्मिक और अंधविश्वासी रंगों को खो दिया है और यह दुनिया भर में एक सांस्कृतिक, मनोरंजक उत्सव बन गया है। यह डरावनी कहानियां सुनाने, अलग-अलग तरह के डरावने कॉस्च्यून पहनने, घरों को डरावने तरीके से सजाने और एक-दूसरे के साथ मस्ती-मजाक करने का दिन है। बच्चों के लिए यह मिठाइयां इकट्ठा करने का बहाना है, तो वयस्कों के लिए पार्टियों में शामिल होने का अवसर।

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