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    आस्था का खास पर्व है बंगाल का दुर्गा पूजा, षष्ठी से लेकर सिंदूर खेला तक देखने को मिलती है अनोखी धूम

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 08:20 AM (IST)

    दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025) पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बंगाल में इसकी अलग ही धूम देखने को मिलती है। षष्ठी से शुरू होने से लेकर दशमी तक पांच दिनों के इस त्योहार का उमंग देखते ही बनता है। हालांकि अब देश के कई जगहों पर दुर्गा पंडालों में बंगाली दुर्गा पूजा की झलक देखने को मिल जाती है।

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    बड़ा अनोखा है दुर्गा पूजा का त्योहार (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत विविधताओं का देश है और हर प्रदेश की अपनी-अपनी परंपराएं और त्योहार हैं। लेकिन जब बात दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025) की आती है तो बंगाल का उत्साह और भव्यता सबसे अलग दिखाई देती है। बंगाल में दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है।

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    षष्ठी से दशमी तक पांच दिन चलने वाला यह पर्व पूरे समाज को आनंद और उत्साह से भर देता है। आइए जानें बंगाल में कैसे मनाया जाता है दुर्गा पूजा और इसकी खासियत क्या है, जो इसे इतना अनोखा बनाती है।

    (Picture Courtesy: Freepik)

    मां के आगमन की आहट

    बरसात के विदा होते ही शरद ऋतु का आगमन दुर्गा पूजा की आहट लेकर आता है। नीले आकाश में रूई जैसे सफेद बादल, मैदानों में खिले कांस और बागानों में बिखरे शिउलि के फूल मानो यह घोषणा करते हैं कि “मां आ रही हैं।” इस समय कुम्हार परिवार पूरी निष्ठा से मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में जुट जाते हैं। यही उनके लिए साल का सबसे बड़ा अवसर होता है। घर-घर में तैयारियां शुरू हो जाती हैं और बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी मां के आगमन के साथ नए कपड़ों और उपहारों के इंतजार में रहते हैं।

    (Picture Courtesy: Pinterest)

    षष्ठी का बोधन

    षष्ठी के दिन मां दुर्गा अपने चारों संतानों- लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक और गणेश, के साथ मायके आती हैं। सिंह पर सवार दशभुजा मां महिषासुर का वध करने वाली शक्ति का स्वरूप होती हैं। इसी दिन अल्पना से सजे मंडप में पुरोहित मंत्रो के साथ मां की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं और पूजा विधिवत आरंभ होती है।

    पुष्पांजलि और भोग का महत्व

    सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन भक्त सुबह से निराहार रहकर पूजा मंडप में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। फूल और बेलपत्र के साथ देवी का ध्यान किया जाता है। दोपहर में भोग आरती होती है, जिसमें धुनुचि नृत्य उत्सव का सबसे आकर्षक हिस्सा होता है। देवी को छप्पन भोग अर्पित करने के बाद प्रसाद सभी भक्तों में बांट दिया जाता है।

    (Picture Courtesy: Instagram)

    रात होते ही भव्य पंडालों की रौनक देखने लायक होती है। थीम-आधारित सजावट, रंग-बिरंगी रोशनी, और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस पर्व को और खास बना देते हैं। सड़क किनारे लगे स्टॉलों पर बंगाली व्यंजनों का स्वाद पूजा का आनंद और बढ़ा देता है।

    अष्टमी की संधिपूजा

    अष्टमी की रात को संधिपूजा का खास महत्व है। इस समय 108 कमल और दीप अर्पित किए जाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

    दशमी और सिंदूर खेला

    (Picture Courtesy: Instagram)

    नवमी के बाद आता है दशमी का दिन, जो विदाई का प्रतीक होता है। इस दिन विवाहिताएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और यहीं सिंदूर वे साल भर लगाती हैं। फिर एक-दूसरे के माथे व गालों पर सिंदूर लगाकर ‘सिंदूर खेला’ का आनंद लेती हैं। इसके बाद मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है और वातावरण में गूंजता है– “आबार एशो मां” यानी “मां, फिर आना।”

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