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    कहानी गहनों की: क्या है मीनाकारी जूलरी, जिसका हर टुकड़ा कहलाता है एक 'हैंडक्राफ्टेड मास्टरपीस'?

    Updated: Fri, 21 Nov 2025 01:34 PM (IST)

    मीनाकारी की कला जैसे ही किसी आभूषण पर उतारी जाती है, उसमें छिपे रंग, नक्काशी और चमकदार डिजाइन खुद-ब-खुद एक कहानी कहने लगते हैं। जी हां, कभी मुगल दरबारों की शान रही यह कला आज भी वैसी ही आकर्षक दिखती है। चाहे न्यू ब्राइड का कोई एलिगेंट जूलरी सेट हो या रोजमर्रा के लिए कोई हल्का-फुल्का एथनिक पीस, मीनाकारी हर रूप में अपनी अलग पहचान दर्ज कराता है। आइए, यहां डिटेल में जानते हैं इसके बारे में।

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    बेहद दिलचस्प है मीनाकारी जूलरी की कहानी (Image Source: Jagran)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। मीनाकारी ज्वेलरी, जिसे 'रंगों की कला' भी कहा जाता है, भारतीय आभूषणों की दुनिया में एक खास मुकाम रखती है। यह सिर्फ पत्थर और धातु का मेल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी कारीगरी और विरासत का खूबसूरत संगम है। चाहे आप नई दुल्हन के लिए रॉयल सेट ढूंढ रहे हों या रोज पहनने के लिए कोई खूबसूरत ट्रेडिशनल डिजाइन, मीनाकारी की चमक हमेशा आपको आकर्षित ही करेगी।

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    'कहानी गहनों की' सीरीज में इससे पहले हम आपके साथ डायमंड और कुंदन से जुड़े दिलचस्प फैक्ट्स शेयर कर चुके हैं। आइए आज के इस आर्टिकल में जानते हैं मीनाकारी ज्वेलरी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी डिटेल जैसे- मीनाकारी ज्वेलरी क्या है, इसका इतिहास, इसे कैसे बनाया जाता है, इसकी सांस्कृतिक अहमियत और आज के समय में इसका बढ़ता हुआ ट्रेंड (Meenakari Jewellery Explained)।

    Handcrafted Masterpiece

    (Image Source: Instagram)

    क्या है मीनाकारी ज्वेलरी?

    मीनाकारी असल में धातु पर रंगीन इनेमल भरकर बनाए जाने वाले डिजाइन की कला है। “मीना” यानी रंगीन इनेमल और “कारी” यानी कारीगरी- इन दोनों के मेल से बनती है मीनाकारी। भारत में यह कला मुख्य रूप से सोने, चांदी और कभी-कभी तांबे पर की जाती है। इसकी खासियत है- चमकदार रंग, ज्योमैट्रिकल और फ्लोरल डिजाइन और बेहद बारीक नक्काशी।

    Meenakari Jewellery Explained

    (Image Source: Instagram)

    क्या है मीनाकारी का इतिहास?

    मीनाकारी की शुरुआत ईरान की प्राचीन साम्राज्यकालीन सभ्यताओं से मानी जाती है, लेकिन भारत में इसका असली विकास मुगल काल में हुआ। जी हां, कहा जाता है कि सम्राट अकबर के समय यह कला सबसे पहले शाही महलों की दीवारों और सिंहासनों को सजाने में इस्तेमाल हुई। बाद में आमेर के राजा मानसिंह इसे लेकर आए राजस्थान, जहां जयपुर इस कला का सबसे बड़ा केंद्र बन गया।

    16वीं से 19वीं सदी के बीच यह कला मुगल और राजपूत दरबारों में खूब फली-फूली। गुलाबी, लाल, हरे और नीले रंगों से बने फूल, पंखुड़ियां, मोर, हाथी, पेसली और पत्तियां- सब मीनाकारी के मशहूर डिजाइन थे। इसी दौर में इसमें रत्नों और मोतियों का इस्तेमाल भी बढ़ा।

    बता दें, आज भारत के कई राज्य जैसे- राजस्थान, गुजरात, वाराणसी और पश्चिम बंगाल- मीनाकारी के महत्वपूर्ण केंद्र हैं, जहां हजारों कुशल कारीगर इस परंपरा को पीढ़ियों से संभाले हुए हैं।

    Meenakari Jewellery

    (Image Source: Instagram)

    कैसे बनती है मीनाकारी ज्वेलरी?

    मीनाकारी को बनाने की प्रक्रिया आज भी लगभग वैसी ही है जैसी सदियों पहले थी। हर कलाकार अपने हाथ की बारीकी और रंगों की समझ वर्षों की साधना से सीखता है। यह ज्ञान अक्सर उसी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है।

    धातु को आकार देना, डिजाइन को उकेरना, रंग भरना और उसे पिघला-पिघला कर सेट करना… हर चरण में धैर्य और निपुणता ही सबसे बड़ी ताकत होती है। यही वजह है कि हर मीनाकारी का पीस एक तरह से ‘हैंडक्राफ्टेड मास्टरपीस’ माना जाता है। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं-

    Meenakari story

    (Image Source: Instagram)

    धातु को तैयार करना

    पहले कारीगर धातु यानी सोना, चांदी या तांबा को आकार देते हैं। फिर उसपर से धूल-तेल हटाकर सतह को तैयार किया जाता है।

    नक्काशी का काम

    इसके बाद कारीगर बहुत बारीकी से डिजाइन उकेरता है। यही छोटे-छोटे खांचे रंगों को पकड़कर रखते हैं।

    रंगों की तैयारी

    मीनाकार अलग-अलग मेटल ऑक्साइड और कांच को मिलाकर रंग तैयार करता है। हर रंग की अपनी तापमान सहन क्षमता होती है, इसलिए इन्हें क्रमवार लगाया और पकाया जाता है- सबसे पहले सफेद और आखिर में लाल।

    भट्टी में पकाना

    रंग लगाए जाने के बाद ज्वेलरी को 750–850°C तापमान पर भट्टी में रखा जाता है। हर रंग के बाद यह प्रक्रिया दोहराई जाती है ताकि वह धातु में अच्छी तरह सेट हो सके।

    फाइनल पॉलिश और असेंबलिंग

    रंग पूरी तरह जम जाने पर ज्वेलरी को ठंडा किया जाता है, पॉलिश होती है और फिर उसे मोतियों, चेन या अन्य हिस्सों से जोड़कर अंतिम रूप दिया जाता है।

    यही कारण है कि मीनाकारी ज्वेलरी महंगी होती है, क्योंकि हर टुकड़ा घंटों या कभी-कभी दिनों की मेहनत लगाकर बनता है।

    meenakari history

    (Image Source: Instagram)

    ब्राइडल ज्वेलरी से लेकर ग्लोबल फैशन तक

    आधुनिकता के दौर में भले ही ज्वेलरी की पसंद बदल गई हो, लेकिन मीनाकारी की खासियत वही रही है। आज डिजाइनर इस कला को नए रूपों में अपना रहे हैं- हल्के वजन वाले नेकलेस, मॉडर्न इयररिंग्स, मिनिमल ब्रेसलेट्स, मगर रंग, पैटर्न और शिल्पकला के मूल तत्व अब भी पारंपरिक ही हैं।

    कभी उपनिवेशकाल के दौरान यह कला धीरे-धीरे कम होती गई थी, लेकिन बाद में फिर से मजबूत हुई। भारत के मशहूर डिजाइनरों और ज्वेलरी हाउसों ने इसे दोबारा लोकप्रिय बनाया, खासकर ब्राइडल ज्वेलरी में। यही वजह है कि आज इसकी मांग सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर में बढ़ रही है।

    meenakari

    (Image Source: Instagram)

    क्यों हर जनरेशन की पसंद बन रही है मीनाकारी?

    आज की मीनाकारी ज्वेलरी कई रूपों में उपलब्ध है- सोना, चांदी, कॉपर, व्हाइट मेटल और यहां तक कि इमिटेशन ज्वेलरी में भी। यही विविधता इसे किशोरियों से लेकर दुल्हनों और कलेक्टर्स तक, सबकी पसंद बनाती है। इसके अलावा, रंगों की गहराई और राजस्थानी शिल्प का आकर्षण इसे एक स्टेटमेंट पीस बना देता है।

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    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

    इसे बनाने में समय, धैर्य और बेहद बारीक शिल्पकला चाहिए। हर डिजाइन हाथ से बनाया जाता है, और अगर इसमें सोने-चांदी का इस्तेमाल हो, तो कीमत और बढ़ जाती है।

    मीनाकारी धातु पर इनेमल भरने की कला है। इससे ज्वेलरी में खूबसूरत रंग और पैटर्न बनते हैं, जो देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं।

    एक-रंग मीना, पंचरंगी मीना, गुलाबी मीना- हर प्रकार का अपना अलग आकर्षण और खासियत होती है।

    जयपुर, क्योंकि यहां पीढ़ियों से कलाकार इस कला को सहेज रहे हैं और दुनिया को इसकी अनोखी खूबसूरती दिखा रहे हैं।

    सॉफ्ट गीले कपड़े से हल्के हाथ से मीनाकारी ज्वेलरी को साफ किया जा सकता है। ध्यान रहे, इस काम के लिए कोई भी केमिकल इस्तेमाल न करें।