कहानी गहनों की: दुल्हनों की पहली पसंद बन रहा है 'गुट्टापुसालु' हार, विजयनगर साम्राज्य से जुड़े हैं तार
गुट्टापुसालु दक्षिण भारत का एक पारंपरिक हार है, जिसका नाम तेलुगु शब्दों 'गुट्टा' (झुंड) और 'पुसालू' (मोती) से आया है। यह अपनी मोतियों की झालर और बारीक ...और पढ़ें

जानें गुट्टापुसालु का 300 साल पुराना इतिहास
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत की खूबसूरती उसकी विविध संस्कृति में बसती है हर राज्य की भाषा, पहनावा और खान-पान अलग पहचान रखते हैं। तो ऐसे में सभी जगह के गहने एक जैसे कैसे हो सकते हैं। दक्षिण भारत की बात हो तो वहां की पारंपरिक जूलरी दिल जीत लेने वाली होती है। इन्हीं में से एक है गुट्टापुसालु नेकलेस, जो अपनी नायाब कारीगरी और मोतियों की चमक से हर किसी का ध्यान खींच लेता है।
आजकल यह दुल्हनों की पहली पसंद बनता जा रहा है, जिसे हर ब्राइड अपने स्पेशल डे पर पहनना चाहती है। लेकिन क्या आपको पता है इस नेकलेस का इतिहास कितना पुराना है और दक्षिण भारतीय संस्कृति में इसका क्या महत्व है? कहानी गहनों की सीरीज में आज हम इसी बारे में जानेंगे। आइए जानें।

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गुट्टापुसालु: नाम में ही छिपी है इसकी कहानी
तेलुगु भाषा के दो शब्द ‘गुट्टा’ जिसका मतलब है झुंड और ‘पुसालू’ जिसका मतलब है मोती, मिलकर इस शानदार नेकलेस का नाम बनाते हैं। मोतियों की झुमकी जैसी झालर इसकी खास पहचान है। यही वजह है कि इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे छोटे-छोटे मोतियों की मछलियां एक साथ तैर रही हों।
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इतिहास से जुड़ी हुई एक अनोखी विरासत
यह नेकलेस सबसे पहले आंध्र प्रदेश में बना और इसकी शुरुआत 18वीं सदी में कोरमंडल तट के पास स्थित पर्ल फिशिंग इंडस्ट्री वाले क्षेत्रों में हुई। कहा जाता है कि इसका डिजाइन विजयनगर साम्राज्य के राजसी आभूषणों से प्रेरित है। परंपरागत रूप से इसे दुल्हनें अपने विवाह के दिन पहनती थीं, क्योंकि इसे समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता था।
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क्या बनाता है गुट्टापुसालु को इतना खास?
- मोतियों की खूबसूरत झुंड- गुट्टापुसालु की पहचान है इसकी फ्रिंज डिजाइन छोटे-छोटे मोतियों के गुच्छे जो किनारों पर लटकते हैं और गहने में खास मूवमेंट जोड़ते हैं। यह हर पारंपरिक पोशाक पर बेहद सुंदर लगता है।
- मंदिर कला की झलक- इस नेकलेस में अक्सर टेंपल जूलरी जैसी नक्काशी मिलती है। देवताओं की आकृतियां, मोर, पवित्र प्रतीक और पारंपरिक आकृतियां। सोने से बनी ये डिजाइन इसे और भी शाही बनाती हैं।
- कीमती रत्नों की सजावट- रूबी, पन्ना और पोल्की जैसे रत्न इसकी सुंदरता को कई गुना बढ़ा देते हैं। यह जूलरी न सिर्फ मनमोहक दिखती है, बल्कि अपनी भव्यता से हर किसी की निगाह अपनी ओर खींच लेती है।
- बारीक और पारंपरिक कारीगरी- हर गुट्टापुसालु नेकलेस एक कला का नमूना होता है। भारी और इंट्रिकेट डिजाइन इसे एक स्टेटमेंट पीस बना देता है। इसकी कारीगरी पीढ़ियों से कौशल और परंपराओं को आगे बढ़ाती है।
दक्षिण भारतीय दुल्हनों के लिए क्यों है इतना जरूरी?
- समृद्धि का प्रतीक- इस नेकलेस के गोलाकार डिस्क सूर्य का प्रतीक माने जाते हैं, जो समृद्धि, एनर्जी और लंबी आयु का प्रतीक हैं। वहीं मोर, आम, कमल जैसे डिजाइन शुभता और सौभाग्य दिखाते हैं।
- पीढ़ियों से जुड़ी विरासत- गुट्टापुसालु सिर्फ एक गहना नहीं, बल्कि परिवार की धरोहर है। इसे पीढ़ियों तक संभालकर रखा जाता है और शादी के दिन पहनना अपनी जड़ों से जुड़ने जैसा माना जाता है।
- हर स्टाइल के साथ मेल- समय के साथ इसके डिजाइनों में आधुनिक बदलाव भी आए हैं। आज के गुट्टापुसालु सेट में रंगीन रत्न और आधुनिक नक्काशी देखने को मिलती है, जिससे यह हर दुल्हन की पसंद बन जाता है।
गुट्टापुसालु सिर्फ ज्वेलरी नहीं यह दक्षिण भारत की कला, इतिहास और परंपरा की पहचान है।

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