प्राडा की 'कोल्हापुरी' और 35 लाख का 'हैंडबैग', इस साल विवादों में घिरे दुनिया के कई बड़े फैशन ब्रांड्स
2025 वह साल था जब दुनिया के सबसे महंगे और लक्जरी फैशन ब्रांड्स ने भारतीय संस्कृति का इस्तेमाल तो खूब किया, लेकिन बेहद लापरवाही से। मिलान के रनवे से ले ...और पढ़ें

2025 में जब ग्लोबल फैशन ब्रांड्स ने भारतीय हुनर के साथ की 'बेवफाई' (Image Source: Instagram)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2025 में मशहूर ब्रांड प्राडा की कोल्हापुरी सैंडल और लुई विटॉन के ऑटो-रिक्शा बैग जैसे कई मामले सामने आए, जहां बड़े फैशन ब्रांड्स पर भारतीय संस्कृति को बिना क्रेडिट दिए इस्तेमाल करने के आरोप लगे। डायर के लखनवी कढ़ाई वाले कोट और दुपट्टे को 'स्कैंडिनेवियाई स्कार्फ' बताकर बेचने जैसे मामलों ने भी खूब तूल पकड़ा। आइए, विस्तार से जानते हैं कुछ ऐसे ही बड़े मामलों के बारे में।
प्राडा और कोल्हापुरी चप्पल का विवाद
जून महीने में एक बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब मशहूर ब्रांड Prada ने मिलान फैशन वीक में अपनी नई सैंडल पेश कीं। ये सैंडल हूबहू हमारी 'कोल्हापुरी चप्पल' जैसी दिख रही थीं। हैरानी की बात यह थी कि इनकी कीमत 1.2 लाख रुपये से भी ज्यादा रखी गई थी, लेकिन कोल्हापुरी शिल्प या भारत का कहीं कोई जिक्र नहीं था।

(Image Source: Prada)
भारतीय कारीगरों और सोशल मीडिया यूजर्स ने तुरंत इस ब्रांड को आड़े हाथों लिया। लोगों ने कहा कि सदियों पुरानी विरासत को प्राडा ने बस अपना लेबल लगाकर बेच दिया। भारी विरोध के बाद, प्राडा ने 'महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स' को एक पत्र लिखकर माना कि उनके डिजाइन "पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित जूतों" से प्रेरित हैं। हालांकि, देरी से प्रतिक्रिया देने और स्थानीय कारीगरों को कोई सीधा फायदा न पहुंचाने के लिए उनकी आलोचना जारी रही।
लुई विटॉन का 35 लाख का 'ऑटो-रिक्शा' बैग
प्राडा का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि जुलाई में Louis Vuitton ने एक ऐसा बैग पेश किया जो पूरे साल चर्चा का विषय बना रहा। यह एक हैंडबैग था जिसका आकार 'ऑटो-रिक्शा' जैसा था और इसकी कीमत 35 लाख रुपये थी।

(Image Source: Louis Vuitton)
इसे फैरेल विलियम्स के निर्देशन में 'मेन्स स्प्रिंग/समर 2026' कलेक्शन के लिए बनाया गया था। जैसे ही इसकी तस्वीरें सामने आईं, इंटरनेट पर मीम्स की बाढ़ आ गई। लोगों ने सवाल उठाया कि क्या यह भारतीय स्ट्रीट कल्चर का सम्मान है या फिर बिना किसी सांस्कृतिक समझ के किया गया एक महंगा मजाक?
डायर का 1.6 करोड़ का कोट और लखनवी कारीगरी
जून महीने में ही क्रिश्चियन डायर (Dior) के लिए भी मुसीबत खड़ी हो गई। पेरिस में एक शो के दौरान, डायर ने एक बेहद महंगा ओवरकोट पेश किया जिसकी कीमत 1.6 करोड़ रुपये थी।

(Image Source: Dior)
इस कोट पर लखनऊ की प्रसिद्ध 'मुकेश वर्क' की भारी कढ़ाई की गई थी। कोट तो वायरल हुआ, लेकिन गलत वजहों से। समस्या यह थी कि डायर ने कहीं भी इस तकनीक, इसकी उत्पत्ति या इसे बनाने वाले भारतीय कारीगरों का जिक्र नहीं किया। रिहाना और डैनियल क्रेग जैसे सितारों की मौजूदगी वाले इस शो में भारतीय कला को बिना क्रेडिट दिए पेश करना लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आया।
दुपट्टा बन गया 'स्कैंडिनेवियाई स्कार्फ'
सिर्फ बड़े ब्रांड्स ही नहीं, बल्कि विदेशी इन्फ्लुएंसर्स ने भी भारतीय चीजों को नया नाम देकर अपना बताने की कोशिश की। एक अजीबोगरीब ट्रेंड में, साधारण भारतीय दुपट्टे को ऑनलाइन "स्कैंडिनेवियाई स्कार्फ" बताकर बेचा जाने लगा। इसे यूरोप का नया 'मिनिमलिस्ट' फैशन कहा गया।
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भारतीय यूजर्स ने इसका जमकर मजाक उड़ाया। इतना ही नहीं, साड़ी के ब्लाउज को "इबीसा समर टॉप्स" और कुर्तियों को "स्ट्रैपी ड्रेस" कहकर बेचा जा रहा था। भारतीयों ने सोशल मीडिया पर याद दिलाया कि जिसे वे 'नया ट्रेंड' बता रहे हैं, वह भारत में सैकड़ों सालों से मौजूद है।
छोटे डिजाइनर्स की लड़ाई - अनुपमा दयाल बनाम रैप्सोडिया
साल की शुरुआत में ही दिल्ली की डिजाइनर अनुपमा दयाल को एक बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी। अर्जेंटीना के फैशन ब्रांड 'रैप्सोडिया' पर उनके डिजाइन कॉपी करने का आरोप लगा।
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विवाद तब शुरू हुआ जब इस ब्रांड की एक प्रतिनिधि ने दयाल के स्टूडियो का दौरा किया और उसके कुछ समय बाद ही दयाल के जैसे डिजाइन उस ब्रांड के सोशल मीडिया पर दिखाई देने लगे। जब दयाल ने उनसे संपर्क किया, तो ब्रांड ने उल्टे उनसे ही सबूत मांग लिए। अनुपमा दयाल ने इसके खिलाफ कानूनी नोटिस भेजा और कहा कि इस घटना ने उन्हें हिला दिया है, लेकिन यह साबित करता है कि स्वतंत्र डिजाइनरों को अपनी कला बचाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।
डोलचे एंड गबाना और कश्मीरी नक्काशी
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अगस्त 2025 में, इटली में अपने शो के दौरान Dolce & Gabbana ने एक बैग दिखाया जो देखने में लकड़ी के ज्वैलरी बॉक्स जैसा था। यह डिजाइन कश्मीर और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में की जाने वाली 'जंदनकारी' यानी अखरोट की लकड़ी की नक्काशी जैसा था। हमेशा की तरह, इसमें भी मूल शिल्प या जगह का कोई क्रेडिट नहीं दिया गया।
क्रेडिट देना नहीं है 'ऑप्शनल'
साल 2025 को फैशन जगत में एक 'टिपिंग पॉइंट' माना जा सकता है। इस साल भारतीय उपभोक्ता और डिजाइनर चुप नहीं बैठे। उन्होंने दुनिया को साफ संदेश दिया कि भारत की कला विशाल और समृद्ध है और यह उन समुदायों की इनकम है जो इसे बनाते हैं।
सोशल मीडिया के इस दौर में, जहां चोरी पकड़े जाने में देर नहीं लगती, ग्लोबल फैशन ब्रांड्स को अब यह स्वीकार करना होगा कि भारतीय कला से प्रेरणा लेना ठीक है, लेकिन उसका क्रेडिट देना अब उनकी मर्जी पर नहीं, बल्कि अनिवार्य है।

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