14 साल पहले स्कूल से भागी मूक-बधिर लड़कियां लौटीं घर, कागज के चंद टुकड़ों ने बिछड़े घरवालों से दोबारा मिलाया
रीना हांसदा अन्नु हेम्ब्रम और प्रेम मुर्मू ये तीनों बच्चे पढ़ाई में मन न लगने के कारण स्कूल से भाग गए थे। यह साल 2009 की घटना है। करीब 14 साल बाद युवतियां अपने-अपने घर वापस लौट आई हैं। कागज के चंद टुकड़ों ने इन्हें इनके घरवालों संग दोबारा मिला गया। इनके बिछड़ने और मिलने की कहानी बेहद दिलचस्प है।

डा. प्रणेश, साहिबगंज। कागज के चंद टुकड़ों ने दुमका व पाकुड़ की दो युवतियों को उनके घर का पता बता दिया और करीब 14 साल बाद दोनों सकुशल अपने घर लौट आईं। इस मामले में यहां संचालित मूक बधिर आवासीय स्कूल के प्राचार्य उदय मरांडी के दामाद बोनीफास हेम्ब्रम व बेटी मालती मरांडी को जेल भी जाना पड़ा था। मामले की सीआईडी जांच भी हुई थी।
स्कूल छोड़कर भाग गए थे बच्चे
युवतियों को अपनों से मिलाने में बाल कल्याण समिति साहिबगंज के सदस्य डा. सुरेंद्रनाथ तिवारी व बाल कल्याण समिति पटना की पूर्व सदस्य डा. संगीता कुमारी ने अहम भूमिका निभाई।
दरअसल, एलआइसी में डीओ के पद पर कार्यरत उदय मरांडी ने सााल 2000 में पहाड़ की तलहटी में मूक बधिर आवासीय स्कूल खोला। इसमें मूक-बधिर बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। लोगों के सहयोग से यह चल रहा था।
अप्रैल 2009 के पहले सप्ताह में दुमका जिले के धोबा गांव के प्रेमलाल हांसदा की 10 वर्षीय बेटी रीना हांसदा, पाकुड़ जिले के महेशपुर के सुदन हेम्ब्रम की 11 वर्षीय बेटी अन्नु हेम्ब्रम व पाकुड़ जिले के ही सात वर्षीय प्रेम मुर्मू स्कूल का स्कूल में दाखिला कराया गया। इनका मन वहां नहीं लगा और 16 अप्रैल 2009 को सभी स्कूल छोड़कर भाग गए।
21 अप्रैल 2009 को पुलिस को दी गई सूचना
21 अप्रैल को प्राचार्य ने इसकी सूचना जिरवाबाड़ी ओपी में दी। स्वजनों को इसकी सूचना दी गई। इसके बाद वे यहां पहुंचे और स्कूल संचालक पर उन्हें बेचने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करा दिया।
पुलिस ने प्राचार्य की बेटी व दामाद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में मामले की जांच सीआईडी को दे दी गई।
इधर, स्कूल से भागे तीनों बच्चे साहिबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां से पटना जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए। पटना में करीब 15 दिन तक सभी भटकते रहे। वहां स्थानीय पुलिस ने तीनों को पकड़कर आश्रय गृह भेज दिया।
बालिग होने के बाद दोनों लड़कियों को पटना के नई धरती नामक फिट फैसिलिटी होम में भेज दिया गया। वर्षों से दोनों वहां रह रही थीं। दोनों के पास कुछ किताब काॅपी भी थी, जिन्हें उन्होंने संभाल कर रखा था।
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डा. संगीता कुमारी ने की काउंसलिंग
कुछ दिनों पूर्व पटना बाल कल्याण समिति की पूर्व सदस्य डा. संगीता कुमारी ने इन बच्चियों की काउंसलिंग की थी। उनके किताब-काॅपी को देखा।
बच्चियों ने पेंटिंग के माध्यम से अपने स्कूल की छवि कागज पर उकेर रखी थी। प्राचार्य की तस्वीर बनाई, जिसमें उनका पैर कटा हुआ था। डा. संगीता कुमारी ने इसकी सूचना बिहार के विभिन्न जिलों में दी, लेकिन कोई पता नहीं चला।
एक मुलाकात के दौरान डा. संगीता कुमारी ने इस बात की चर्चा साहिबगंज बाल कल्याण समिति के सदस्य डा. सुरेंद्रनाथ तिवारी से की।
डा. तिवारी ने मूक बधिर आवासीय स्कूल साहिबगंज से संपर्क किया और पुराने रजिस्टर का खंगाला। उसमें दोनों का नाम व पता मिल गया।
पता चला कि रीना हांसदा दुमका जिले केरामगढ़ प्रखंड तो अन्नु हेम्ब्रम पाकुड़ की रहने वाली है। इसके बाद दोनों के स्वजन की खोज शुरू हुई। दोनों मिल भी गए।
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