राजभवन ने 24 मई को ही लौटा दिया था विधेयक
सीएनटी-एसपीटी संशोधन बिल लौटाए जाने के बाद सीएम व मुख्य सचिव ने राज्यपाल से भी मुलाकात की थी।

प्रदीप सिंह, रांची। राजभवन ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल 24 मई को ही राज्य सरकार को वापस कर दिया था। लौटाए गए बिल के साथ राज्यपाल ने उन कड़ी आपत्तियों पर बिंदुवार जवाब तलब किए हैं, जो उनसे मिलने आए विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने उठाए थे। इन तमाम संगठनों की मांग थी कि राज्यपाल संशोधन संबंधी विधेयक राज्य सरकार को वापस करें। इनकी आपत्तियां जमीन की प्रकृति में बदलाव समेत अन्य बिंदुओं पर थी।
कुछ संगठनों ने इसे विधानसभा में बगैर चर्चा के पारित कराने को लेकर भी गहरी आपत्ति जताई थी। तमाम बिंदुओं पर कानूनी राय-मशविरे के बाद राजभवन ने इसे सरकार को वापस लौटाने का निर्णय लिया। सीएनटी-एसपीटी संशोधन बिल लौटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास और मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री 20 जून को राज्यपाल को जन्मदिन की बधाई देने राजभवन गए थे।
मुख्य सचिव राजबाला वर्मा तीन जून को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करने राजभवन गईं थीं। इससे पूर्व मई माह के पहले सप्ताह में कुलपतियों की नियुक्ति से पूर्व भी मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से मुलाकात की थी। सीएनटी-एसपीटी संशोधन बिल वापस लौटाने का फैसला लेने के पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू दिल्ली भी गई थीं। 13 मई को नई दिल्ली में उन्होंने कई वरीय नेताओं से मुलाकात की थी। बताया जाता है कि इस दौरान सीएनटी-एसपीटी संशोधित बिल को लेकर भी कई स्तरों पर चर्चा हुई।
दोबारा विधानसभा में लाने पर विरोध का जोखिम
गवर्नर द्वारा बिल वापस किए जाने के बाद फिर से मंजूरी दिलाने के लिए विधेयक विधानसभा में पेश करना होगा। इसमें फिलहाल काफी जोखिम है। ऐसी स्थिति में विपक्ष जहां प्रबल विरोध करेगा वहीं सत्तापक्ष के विधायक भी विरोध का बिगूल फूंक सकते हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सबसे अच्छा यह होगा कि विधेयक रद कर दिया जाए। अगर इसे ठंडे बस्ते में भी डाला गया तो विपक्ष राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश करेगा। बताते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इसी पक्ष में है कि विरोध का सबब बने विधेयक को रद कर दिया जाए। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव के हालिया दौरे में भी उनके समक्ष बड़ी संख्या में भाजपा विधायकों ने सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक का विरोध किया था। यह भी दलील दी गई कि विधेयक रद करने से विपक्ष का एक बड़ा मुद्दा हाथ से छिन जाएगा।
आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों की आपत्ति को राजभवन ने बनाया आधार
राज्य ब्यूरो, रांची। राजभवन ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन पर विभिन्न ज्ञापनों के अलावा आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों की आपत्ति को आधार बनाकर संशोधन विधेयक लौटाया है। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने इसपर विभिन्न आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों के साथ अलग-अलग बैठक की थी। राजभवन सूत्रों के अनुसार, बुद्धिजीवियों द्वारा किए जा रहे विरोध तथा संशोधन पर आदिवासी समाज पर पड़नेवाले असर की जानकारी सरकार को दी गई है। राजभवन ने इसी पर सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है। राजभवन ने उरांव, खडि़या, मुंडा, हो आदि समाज के बुद्धिजीवियों के साथ बैठक की थी। सभी ने राज्यपाल के साथ बैठक में एक्ट में संशोधन का व्यापक विरोध किया था। इससे पहले, राज्यपाल ने संशोधन विधेयक पर कानूनी राय भी ली थी।
राज्यपाल एक बार दे चुकी हैं स्वीकृति
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन विधेयक को एक बार स्वीकृति दे चुकी हैं। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया था। वहां भी कई संगठनों ने इसपर स्वीकृति नहीं देने की मांग राष्ट्रपति से की थी। वहां यह मामला विचाराधीन ही था कि राज्य सरकार ने मूल संशोधन विधेयक में कुछ संशोधन कर दोबारा इसे विधानसभा से पारित कराया।
भाजपा सरकार के हर निर्णय के साथ
सीएनटी-एसपीटी संशोधित विधेयक की वापसी को लेकर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि भाजपा सरकार के प्रत्येक निर्णय के साथ खड़ी है। विधेयक को विधानसभा से पारित करा कर राज्यपाल के पास भेजा गया था। जहां तक आदिवासी हितों की बात है तो रघुवर दास सरकार आदिवासियों-मूलवासियों के विकास के लिए लगातार काम कर रही है। विपक्ष सरकार के स्तर से आदिवासियों के लिए किए जा रहे कार्यो से बौखला गया है। प्रतुल ने राजभवन की भूमिका पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की।
गलती सुधारने का एक बड़ा मौका: सुबोधकांत
पूर्व केंद्रीयमंत्री सुबोधकांत सहाय ने राज्य सरकार को नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि राजभवन ने सीएनटी-एसपीटी संशोधित बिल लौटाकर अच्छा कदम उठाया है। इससे राज्य सरकार को अपनी गलती सुधारने का मौका मिला है। वे कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के वरीय नेताओं संग मीडिया से मुखातिब थे। लगे हाथों उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि फिर से बिल को भेजने की भूल अगर राज्य सरकार ने की तो उसे विपक्षी दलों के आंदोलन को झेलना होगा।

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