मंत्री करते रहे पैरवी, Kishore Kunal ने एक नहीं सुनी...झारखंड में बिगड़ैल-बहुबली विधायक को ऐसे सिखाया था सबक
Jharkhand News किशोर कुणाल का ट्रैक रिकॉर्ड जबरदस्त रहा है। किशोर कुणाल एक ऐसे पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। पलामू के एसपी के रूप में उन्होंने बाहुबली विधायक विनोद सिंह को उनके अपराधों के लिए गिरफ्तार किया। इस लेख में कुणाल के जीवन और उनके कारनामों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

मृत्युंजय पाठक, रांची। एक पुलिस अधिकारी के तौर पर किशोर कुणाल अद्भुत और अकल्पनीय थे। उनकी नीति अपराध के प्रति जीरो टालरेंस की थी। उनके जैसे पुलिस अधिकारी हों तो निश्चित रूप से अपराध को न्यून किया जा सकता है और बड़े से बड़े गैंगस्टर के फन को कुचला जा सकता है।
इसे पलामू के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के तौर पर कुणाल के कार्यकाल से समझा जा सकता है। उन्होंने बेकाबू, बिगड़ैल और बाहूबली विधायक विनोद सिंह को काबू में किया था। बिहार के कद्दावर मंत्री रमेश झा के सामने विनोद का कालर पकड़वाकर विमान से खिंचवा लिया था।
मैं हूं एसपी कुणाल, पाप का घड़ा एक दिन फूटता है
भारतीय पुलिस सेवा के 1972 बैच के अधिकारी किशोर कुणाल ने 26 फरवरी, 1982 को झारखंड के पलामू (तब बिहार) के पुलिस अधीक्षक के पद पर योगदान दिया। एसपी का पदभार ग्रहण करने के तीन दिन बाद वे रांची से लौट रहे थे। रात के आठ बजे रहे थे। लातेहार थाने में चले गए। (तब पलामू बड़ा जिला था।
इसके तहत ही लातेहार और गढ़वा जिले भी थे) थाने में मात्र एक सिपाही था। कुणाल थानेदार की कुर्सी पर बैठ गए। इसी बीच एक रोबदार आवाज दूर से सुनाई पड़ी-अरे दरोगवा कहां बाड़े? दारोगा को दरोगवा कहकर तिरस्कार करने वाला भी कोई शख्स हो सकता है, कुणाल ने कल्पना नहीं की थी।
वह मोटा, भारी-भरकम डील -डौल वाला आदमी थाने में आते ही बोल उठा-अरे दरोगवा कहां गईल बा? बीच सड़कवे पर कवनो ट्रक लगा देले बा, हमार गाड़ी निकल ना सकल। पैदल आवातानी। एहले इ जाहिल दरोगवा के खोजत बानी। कुणाल ने उस शख्स को सामने की कुर्सी पर बैठने और अपना परिचय देने को कहा।
इस पर शख्स ने कहा-रउरा हमार परिचय पूछत बानी। हमरा कौन न जानेला? हम बानी विधायक विनोद सिंह जेकरा नाम से पलामू के पत्ता-पत्ता डरे ला। इहां जिला में कोई अइसन अपराधी बा जे हमरा खबर कएले बगैर कोई क्राइम करत बा?
अइसन कोई दरोगा इ जिला में बा जे हमरा मर्जी के बगैर कोई के पकड़ सकेला और अइसन कोई नेता बा जे हमरा रुपया के बिना पोलिटिक्स करत बा? हम त अपन परिचय देली। अब रउरा आपन परिचय दीं।
कुणाल ने कहा-आपने अपना सटीक परिचय दिया है। परसों ही मैं आपकी अपराध-गाथा पुलिस अभिलेख में पढ़ रहा था। आपके एक-एक कारनामे से परिचित हूं। (विश्रामपुर के विधायक विनोद सिंह का काम था-मूड़ी काटना, दुष्कर्म करना, जमीन कब्जाना और पागल हाथी पालना)
कुणाल ने अपना परिचय देते हुए कहा-मैं हूं एसपी कुणाल। आपकी गाड़ी तो अब निकल जाएगी, किंतु आप यहां से नहीं निकल पाएंगे। विनोद सिंह मूंछ पर ताव फेरते हुए बोला-ऐसा कोई माई का लाल नहीं जन्मा जो विनोद सिंह को बंदी बना सके और ऐसी कोई हथकड़ी नहीं बनी जो इसके हाथ में डाली जा सके।
कानून के लंबे हाथ होते हैं- कुणाल
कुणाल ने कहा-कानून के हाथ लंबे होते हैं। पाप का घड़ा एक दिन फूटता है। आपके अपराधों की पराकाष्ठा हो गई है। अब आपको पुलिस हिरासत में लिया जाता है। इस बीच थाना प्रभारी पहुंचता है। कुणाल ने उसे निर्देश दिया-इस अपराधी को पुलिस हिरासत में लिया जाता है। कल जेल भेजकर इसकी सूचना दें।
यह कहकर कुणाल डालटनगंज के लिए रवाना हो गए। इस वाकया का जिक्र किशोर कुणाल की जीवनी पर आधारित पुस्तक-'दमन तक्षकों का' में, पलामू: जहां पहले बाहूबली थे बेकाबू, शीर्षक से है। हर डाकू अपने को वाल्मीकि का पूर्वावतार समझता है दूसरे दिन बीस सूत्री कार्यक्रम की समीक्षा बैठक थी।
कुणाल जब समीक्षा बैठक में पहुंचे तो दंग रह गए। विनोद सिंह भी पहुंचा हुआ था और मंत्री के कमरे में बैठा हुआ था। मंत्री थे रमेश झा और सर्किट हाउस में ठहरे थे। कुणाल ने अतिरिक्त पुलिस बल को बुलवाकर सर्किट हाउस को चारों ओर से घेरवा लिया ताकि बैठक के बाद विनोद को पकड़ा जा सके।
लंच के लिए विराम हुआ तो मंत्री ने कुणाल को अपने कमरे में बुलाकर कहा-कुणाल साहब। आप जो कर रहे हैं, एकदम ठीक कर रहे हैं। विनोद सिंह के काले कारनामे जग जाहिर हैं।
आप उसे पकड़िये, मैं रोकूंगा नहीं, लेकिन वह मेरे पास आकर रो रहा था कि आप किसी तरह से मुझे बचाइए। अनुरोध है कि उसे आप बाद में पकड़िएगा? मैं मना नहीं करूंगा।
कुणाल को ठीक नहीं लगी सलाह
- कुणाल को परामर्श अच्छा नहीं लगा, लेकिन विनोद को बंदी बनाने के अपने दृढ़ संकल्प को अक्षुण्ण रखते हुए मंत्री की बातों का विरोध नहीं किया।
- फिर मंत्री ने कहा, विनोद सिंह अच्छा आदमी है। सबकी मदद करता है। आपको कुछ गलत फहमी हो गई है। इसके खिलाफ कुछ है भी तो माफ कर दीजिए। वाल्मीकि भी तो पहले डाकू ही थे। इस पर कुणाल का संकल्प टूट गया।
- कहा-हर डाकू अपने को वाल्मीकि का पूर्वावतार समझता है। किंतू साधना कोई नहीं करता। यह कहकर कुणाल उठकर चले गए. बैठक समाप्त होते ही विनोद मंत्री से पहले उनकी कार में बैठ गया। मंत्री के बैठते ही कार डालटनगंज हवाईपट्टी की ओर तेजी से चल पड़ी।
मंत्री की गाड़ी के पीछे थी जीप
मंत्री की गाड़ी के ठीक पीछे एसपी की जीप थी। उसमें एसपी के विश्वासपात्र कर्मठ इंस्पेक्टर विनोद राम थे। हवाईपट्टी पर जब तक मंत्री कार से उतरते विनोद तेजी से दौड़कर विमान में बैठ गया।
इसके बाद कुणाल ने मंत्री से कहा-क्षमा कीजिएगा। इस विमान में एक अपराधी को पकड़ना है। तब आप अंदर जाएंगे। मंत्री मौन रहे। कुणाल ने इंस्पेकटर को अंदर भेजा। विनोद निकलने को तैयार नहीं थे।
इंस्पेक्टर ने कालर पकड़कर बाहर खींच लिया। जब वह बाहर निकला तो कहा-जेल से निकलब त दू मूड़ी काटब यानी निकलूंगा तो दो सिर काटूंगा? उसका इशारा एक इंस्पेक्टर और दूसरा कुणाल की तरफ था। कुणाल ने कहा-इंस्पेक्टर साहब, विनोद सिंह का आतिथ्य अच्छे ढंग से कीजिएगा।
यह सुनकर विनोद बोला-जिस दिन मैं जेल से बाहर निकलूंगा आपके पूरे खानदान का नामोनिशान मिटा दूंगा। मैंने अपना करियर पुलिस अधिकारी दया शंकर मिश्र की हत्या से ही प्रारम्भ किया है।
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