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    पानी में जाने से लगता था डर...पहली सैलरी से बनवाया मंदिर, ऐसी रही Acharya Kishore Kunal की लाइफस्टाइल

    बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल का निधन हो गया है। कुणाल ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया जिनमें पटना के एसएसपी केएसडी संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति और बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष शामिल हैं। वह अपनी पुस्तक दमन तक्षकों के लिए भी जाने जाते हैं जिसमें उन्होंने अपने आईपीएस कार्यकाल के दौरान किए गए महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख किया।

    By Vikash Kumar Edited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 29 Dec 2024 04:35 PM (IST)
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    दुनिया में नहीं रहे आचार्य किशोर कुणाल

    जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। पूर्व आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बरूराज कोठियां गांव के रहने वाले थे। कुणाल रामचंद्र प्रसाद शाही के एकलौते पुत्र थे। उनका जन्म 10 अगस्त, 1950 को हुआ था।

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    उनके घर से सौ मीटर की दूरी पर झोपड़ीनुमा मकान में अवस्थित प्राथमिक विद्यालय कोठियां से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई। पहली कक्षा से लेकर चौथी कक्षा तक उन्होंने यहां पढ़ाई की। इसके बाद, उन्होंने मिडिल स्कूल बरूराज में दाखिला लिया। यहां सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की।

    हाईस्कूल बरूराज से उन्होंने मैट्रिक तक पढ़ाई पूरी की। साल 1965 के दौरान मैट्रिक में फर्स्ट डिवीजन से पास कर पूरे गांव का नाम रौशन किया था।

    तब उनके पिताजी स्व० रामचंद्र प्रसाद शाही यूपी के देवरिया चीनी मिल में सुपरवाईजर के पदपर कार्यरत थे।किशोर कुणाल बचपन से ही पूरे इलाके में ईमानदार व सच्चाई के मिशाल थे। मैट्रिक के बाद उन्होंने इंटर की पढ़ाई विज्ञान विषय से की।

    इंटर पास करने के बाद वह पटना चले गए। वहां बीए पार्ट 1 में यूनिवर्सिटी टॉपर बने थे। वह न्यूज पेपर पढ़ने में सर्वाधिक रुचि रखते थे। स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के कुछ ही दिन बाद न्यूज पेपर के माध्यम से उन्हें जानकारी मिली कि यूपीएससी की वेकैंसी आई है, फिर उन्होंने उसमें अप्लाई किया।

    पहली बार में ही वह यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईपीएस कैडर में चयनित हुए। आईपीएस बनने बाद आचार्य किशोर कुणाल ने समस्त ग्रामीणों के बीच जश्न मनाई थी। इसी दौरान उनकी शादी को लेकर चर्चा तेज हो गई। आईपीएस में चयन होने के कुछ दिनों बाद ही उनकी शादी हो गई।

    कुणाल ने पहली सैलेरी से बनाया मंदिर

    • ग्रामीण मुकुंद शाही बताते हैं की हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार उनकी शादी हो रही थी, देवता पूजन के दौरान घर के सामने पोखर किनारे झोपड़ीनुमा मंदिर में वह अपने परिवार के संग प्रवेश किये, निकलते समय सर में चोट लग गई।
    • सिर से खून निकलता देख उसी समय उनकी दादी स्व० जयरूपा देवी ने कहा कि मेरे पोते की नौकरी का पहला वेतन जब आएगा उससे मंदिर बनवाएंगे। शादी के अगले महीने उनके खाते में सैलरी आई, तो सबसे पहले उन्होंने अपने घर के सामने एक मंदिर बनवाया, जिसका नामकरण अपनी दादी के नाम से कराया।
    • उसके बाद, उन्होंने अपने गांव में भगवान भोलेशंकर की मंदिर भी बनवाई। धीरे धीरे वह धार्मिक कार्यो को लेकर पूरे देश मे विख्यात हुए। उनके पड़ोसी दादा बिर बहादुर शाही ने बताया कि किशोर कुणाल उनसे 3 वर्ष के छोटे थे। एकसाथ पढ़ाई की शुरुआत हुई।
    • उन्होंने बताया कि किशोर कुणाल पानी में जाने से डरते थे। वह मधुर व्यवहार के थे। बचपन से ही वह पढ़ाई करने में रुचि रखते थे।

    किशोर कुणाल के निधन पर नहीं जला चूल्हा

    किशोर कुणाल के पैतृक आवास बरूराज कोठियां में उनके छोटे भाई नंदकुमार शाही अपने पत्नी के साथ रहते हैं। वहीं, किशोर कुणाल के एकलौते पुत्र शायन कुणाल हैं। बहु सांभवि चौधरी समस्तीपुर की सांसद हैं।

    किशोर कुणाल की मौत की खबर पर गांव में कोहराम मच गया। ग्रामीण उनके घर पहुँचने लगे। आनन- फानन में घर में ताला बंद कर उनके भाई व भाभी पटना के लिए निकल गए।

    मौत की खबर पर गांव में सन्नाटा पसर गया। ग्रामीण के चेहरे मायूस हो गई। चारों तरफ उनका गुणगान व प्रशंसा होने लगी। उनके पैतृक आवास वाली टोले में तकरीबन दो दर्जन घरों में चूल्हा नहीं जला।

    ग्रामीण नरेश प्रसाद शाही (82) बताते हैं कि किशोर कुणाल बचपन से ही मिलनसार व धार्मिक कार्यों में रुचि रखते थे। आईपीएस बनने के बाद भी वह घर को न भूले। प्रत्येक सावनी पूजा में वह घर जाकर पूजा अर्चना करते थे। उनके निधन से सभी दुखी व मर्माहत हैं।

    बहुचर्चित आइपीएस अधिकारी और पटना महावीर मंदिर के सचिव आचार्य किशोर कुणाल के द्वारा लिखी पुस्तक ‘दमन तक्षकों का’ इन दिनों काफी चर्चा में रहा। किशोर कुणाल की इस पुस्तक में आइपीएस अधिकारी रहते हुए बिहार से लेकर गुजरात तक जो -जो महत्वपूर्ण कार्य किए, उनका जिक्र है।

    पुस्तक में बिहार में हुए बॉबी हत्याकांड से लेकर गुजरात में आसाराम बापू के विवाद पर भी कई खुलासे किए गए। अपनी पुस्तक में आचार्य किशोर कुणाल ने लिखा है कि किस तरह बॉबी हत्याकांड में उन्होंने जांच की और बाद में किस तरह उस जांच को सीबीआई को सौंप दिया गया।

    इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री से जो उनकी बातचीत हुई उसका भी जिक्र पुस्तक में किया गया है। गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन के वक्त पुलिसकर्मियों को कैसे मुफ्त में खाने पीने वाला मफतलाल कहा जाता था, इस बात का भी जिक्र किशोर कुणाल ने अपनी पुस्तक में किया है।

    साथ ही पटना के एसएसपी रहते हुए उन्होंने कैसे अपराध रोकने के लिए अपराधियों में डर पैदा किया इसका भी जिक्र किया गया है।

    बॉबी हत्याकांड और किशोर कुणाल

    किशोर कुणाल ने अपनी किताब दमन तक्षकों में इस वारदात का जिक्र किया है। पटना से दिल्ली तक की सियासत में भूचाल ला देने वाले बॉबी उर्फ श्वेतानिशा मर्डर केस पर कुणाल ने अपनी किताब में एक दोहा लिखा- समरथ को नहीं दोष गोसाईं। बॉबी एक ऐसी महिला का मर्डर था, जिसमें सेक्स, क्राइम और पॉलिटिक्स... ये तीनों ही शामिल थे।

    कब्र से निकलवा ली थी बॉबी की लाश

    तब पत्रकारों ने अखबारों के पन्ने को इस खबर से रंग दिया। एक के बाद एक नए पहलू उजागर होने लगे। IPS किशोर कुणाल ने इन्हीं अखबारों की खबर को आधार बनाया और उस पर एक यूडी केस दर्ज कर दिया।

    इसके बाद फौरन ही बॉबी की लाश को कब्रिस्तान से निकाला गया, फिस पोस्टमार्टम भी कराया गा। उस वक्त किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था कि इन्वेस्टिगेशन इतनी तेजी से हो सकता है। लेकिन IPS किशोर कुणाल के इस जज्बे का बिहार का हर आदमी कायल हो गया।

    1972 में बने आईपीएस

    किशोर कुणाल साल 1972 में आईपीएस अधिकारी बने। आईपीएस रहते हुए उन्होंने कई उपलब्धियां प्राप्त कीं जिस कारण वह हमेशा सुर्खियों में भी रहे। इसके बाद मई 2001 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।

    अगस्त 2001 से फरवरी 2004 तक केएसडी संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार के कुलपति रहे। उसके बाद उन्होंने स्वेच्छा से पद त्याग दिया। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड में 23 मई, 2006 को बोर्ड के प्रशासक बने और 2010 में इसके अध्यक्ष बने।

    उन्होंने बोर्ड के कामकाज में कई बदलाव किए और इससे जुड़े ट्रस्टों के कामकाज को सुव्यवस्थित किया। उन्होंने 10 मार्च, 2016 को इस पद से इस्तीफा दे दिया। 

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