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    Jharkhand: कुर्मी समुदाय को आदिवासी घोषित करने का मामला, हेमंत सरकार ने बिहार और केंद्र से पूछ दिया अहम सवाल

    Updated: Sun, 09 Mar 2025 07:31 PM (IST)

    झारखंड सरकार ने कुर्मी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने के संबंध में बिहार सरकार और केंद्र सरकार से जानकारी मांगी है। कुर्मी समुदाय का दावा है कि वे 1931 में जनजातियों की सूची में शामिल थे लेकिन 1950 में उन्हें शिड्यूल ट्राइब से हटा दिया गया। सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बिंदु पर भारत सरकार एवं बिहार सरकार से वांछित सूचनाएं मांगी जा रही हैं।

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    झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन। फाइल फ़ोटो

    प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर प्रभावी कुर्मी समुदाय आदिवासी का दर्जा पाने को पुराने दस्तावेजों का हवाला देते हैं।

    लंबे समय से इनसे संबद्ध जातीय संगठन स्वयं को जनजाति की श्रेणी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। झारखंड सरकार के कार्मिक विभाग ने इसपर स्थिति स्पष्ट करने के लिए बिहार सरकार व केंद्र सरकार से सूचना मांगी है।

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    बगोदर के विधायक नागेन्द्र महतो ने कार्मिक विभाग से इससे संबंधित पूछे गए एक सवाल में हवाला दिया है कि कुर्मी समुदाय 1931 में जनजातियों की सूची में शामिल थे, लेकिन 1950 में इसे शिड्यूल ट्राइब नहीं बनाया गया।

    कुर्मी को उस सूची से हटा दिया गया, जबकि छोटानागपुर शिड्यूल ट्राइब डिस्ट्रिक्स एक्ट, 1874 पारित किया गया था, जो 25 नवंबर, 1949 तक लागू था।

    कार्मिक विभाग ने स्पष्ट किया है कि इस बिंदु पर भारत सरकार एवं बिहार सरकार से वांछित सूचनाएं मांगी जा रही है।

    इस संदर्भ में वर्ष 1911 की जनगणना का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि उसमें कुर्मी को आदिवासी लिखा गया है, जिसे 1913 में 12 जनजाति के साथ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1965 से अलग रखा गया है।

    इसपर कहा गया है कि गजट आफ इंडिया की प्रकाशित अधिसूचना के मुताबिक एकीकृत बिहार एवं ओडिशा प्रांत में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम से मुंडा, उरांव, संताल, हो, भूमिज, खड़िया, घासी, गोंड, कांध, कोरबा, कुर्मी, माल सौरिया और पान को अलग रखा गया था।

    इसके अतिरिक्त कार्मिक विभाग ने स्पष्ट किया है कि 1911 की जनगणना से संबंधित अभिलेख व आंकड़े विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।

    सीएनटी एक्ट में भी कुर्मी को नहीं कहा गया आदिवासी रैयत

    • कार्मिक विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट), 1908 में कुर्मी का बतौर आदिवासी रैयत उल्लेख नहीं है।
    • 28 फरवरी, 2025 को राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक-547 का संदर्भ देते हुए कार्मिक विभाग ने कहा है कि छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908 में कहीं भी कुर्मी जनजाति को आदिवासी रैयत कहे जाने का उल्लेख नहीं किया गया है।
    • इसके अलावा बिहार शिड्यूल एरियाज रेगुलेशन, 23 जून, 1962 को जारी पिछड़े वर्गों की सूची में सीएनटी एक्ट की धारा- 46 (एक)(बी) में कुर्मी (महतो) अंकित हैं।
    • उल्लेखनीय है कि यह धारा स्पष्ट करती है कि इसके तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोग अपनी जमीन को अपनी ही जाति या वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरे के नाम पर नहीं हस्तांतरित कर सकते।

    यथास्थिति बनाए रखने की आवश्यकता

    झारखंड सरकार ने भारत सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि कुरमी/कुर्मी (महतो) को यथास्थिति बनाए रखने की आवश्यकता है। यानि वे ओबीसी में ही शामिल रहेंगे और उन्हें जनजाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

    इस संदर्भ में डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, रांची के प्रतिवेदन का भी संदर्भ दिया गया है। संस्थान ने 23 नवंबर, 2020 को दिए गए प्रतिवेदन में उल्लेख किया है कि कुर्मी समुदाय में आदिम विशेषताओं का अभाव है।

    वर्तमान समय में ये सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से अपेक्षाकृत मजबूत हैं। अन्य समुदाय के लोगों के साथ संपर्क करने में इन्हें संकोच बिल्कुल नहीं है। उनके बीच छुआछूत जैसा सामाजिक कलंक भी नहीं है।

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