आखिर क्यों कुड़मी एक बार फिर 20 सितंबर से करने जा रहे 'रेल रोकाे आंदोलन'? प. नेहरू से जुड़ा है मामला
आदिवासी कुड़मी (कुर्मी) समाज 20 सितंबर से फिर से रेल रोको आंदोलन करने जा रहा है। कुड़मी समाज के केंद्रीय प्रवक्ता हरमोहन महतो का कहना है कि हमें पता है कि इससे यात्रियों को परेशानी होती है लेकिन इसके अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। उनका कहना है कि अब हमें लिखित में आश्वासन चाहिए हम किसी के झांसे में नहीं आने वाले हैं।
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर। अनुसूचित जनजाति या आदिवासी का दर्जा पाने के लिए कुड़मी समाज एक बार फिर 20 सितंबर से रेल रोको आंदोलन करने जा रहा है। इससे पहले कुड़मी समाज 20 सितंबर, 2022 व पांच अप्रैल, 2023 को पांच दिवसीय रेल रोको आंदोलन कर चुका है। ऐसे में सवाल यही है कि कुड़मी समाज बार-बार रेल रोको आंदोलन कर रहा है। रेलवे से इसका क्या संबंध है।
इस बार किसी के झांसे में नहीं आएंगे: हरमोहन महतो
तीसरी बार रेल रोको आंदोलन की वजह पर आदिवासी कुड़मी समाज के केंद्रीय प्रवक्ता हरमोहन महतो कहते हैं कि हमारी मांग केंद्र सरकार से जुड़ी है।
अर्जुन मुंडा जब 2004 में राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने ही कुड़मी जाति को आदिवासी बनाने की अनुशंसा केंद्र सरकार से की थी।
अब जब वह केंद्र में जनजातीय मामले के मंत्री हैं, तो राज्यों से टीआरआई (ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट) की रिपोर्ट मांग रहे हैं।
महतो ने कहा कि केंद्र सरकार टीआरआइ रिपोर्ट के नाम पर हमें उलझाना चाहती है। इस बार हम किसी के झांसे में नहीं आने वाले हैं।
अब हमें लिखित में चाहिए आश्वासन: कुड़मी समाज के प्रवक्ता
उन्होंने आगे कहा, दोनों बार हमें टीआरआइ रिपोर्ट भेजने के आश्वासन पर आंदोलन समाप्त कराया गया। इस बार 20 सितंबर से झारखंड के चार (मनोहरपुर, नीमडी, गोमो व मुरी), बंगाल के (कुस्तौर व खेमाशुली) और ओडिशा (रायरंगपुर व बारीपदा) में रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे। यह तब तक चलेगा, जब तक केंद्र सरकार का गृह व जनजातीय मंत्रालय लिखित आश्वासन नहीं देता।
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पिछले 73 सालों से जारी है हमारा संघर्ष: हरमोहन
महतो बताते हैं कि हम जानते हैं कि आर्थिक नाकेबंदी से रेल यात्रियों को भी परेशानी उठानी पड़ेगी, लेकिन हमारे पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है। हम इस मांग के लिए गत 73 वर्षाें से संघर्षरत हैं।
पिछली बार 24-25 मई को जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू रांची आई थीं, तो उन्हें भी कुड़मी समाज की ओर से ज्ञापन सौंपा था।
उन्होंने आश्वासन दिया था कि वह इसे मंत्रालय को भेजेंगी। इससे पहले बंगाल के सांसद अधीर रंजन चौधरी कई बार लोकसभा में यह मुद्दा रख चुके हैं, लेकिन हर बार गेंद को राज्य सरकार के पाले में फेंकने की कोशिश की गई।
कुड़मी समाज ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करके पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को भी ज्ञापन सौंपा था।
इससे भी बड़ी बात कि जब रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री थे, उन्हें 42 विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपा गया था। उसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का भी हस्ताक्षर शामिल था।
पं. नेहरू ने कहा था, गलती हो गई, सुधार लिया जाएगा
हरमोहन महतो बताते हैं कि 1913 तक मुंडा, मुंडारी, संथाली आदि के साथ कुड़मी भी आदिम जनजाति (प्रीमिटिव ट्राइब्स) की सूची में शामिल था। छह सितंबर, 1950 को जब लोकसभा में जनजाति की सूची प्रस्तुत की गई, तो उसमें कुड़मी नहीं था। इसका लोकसभा में उपस्थित 15 सांसदों ने विरोध किया।
उस वक्त प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि गलती से छूट गया होगा, इसे सुधार लिया जाएगा। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व गृह मंत्री बूटा सिंह रांची आए थे, तो उन्हें भी ज्ञापन देकर इस ओर ध्यान दिलाया गया था।
इसके बाद झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि कुड़मी समाज की जीवनशैली अनुसूचित जनजाति जैसी है इसलिए इस पर विचार किया जाए। आज 73 वर्ष हो गए, गलती का सुधार नहीं किया गया।
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