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Jharkhand News: '77 साल से शरणार्थी...', CAA लागू होते ही झारखंड के इस शहर के लोगों की बदली किस्मत

77 साल...एक लंबा समय एक पीढ़ी का समय...एक जीवन का समय। आठ दशक से ईस्ट बंगाल कालोनी सीतारामडेरा पंजाबी रिफ्यूजी कॉलोनी गोलमुरी सिंधी रिफ्यूजी कॉलोनी गोलमुरी बंगाली कॉलोनी शंकोसाई में रहने वाले 700 परिवार के 6000 शरणार्थी अनिश्चितता और असुरक्षा के साये में जी रहे थे। 77 साल का इंतजार सोमवार को खत्म हुआ जब देश में नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू कर दिया गया।

By Manoj Kumar Singh Edited By: Shashank Shekhar Published: Wed, 13 Mar 2024 02:23 PM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2024 02:23 PM (IST)
Jharkhand News: '77 साल से शरणार्थी...', CAA लागू होते ही झारखंड के इस शहर के लोगों की बदली किस्मत

मनोज सिंह, जमशेदपुर। CAA-NRC 77 साल...एक लंबा समय, एक पीढ़ी का समय...एक जीवन का समय। आठ दशक से ईस्ट बंगाल कालोनी सीतारामडेरा, पंजाबी रिफ्यूजी कॉलोनी गोलमुरी, सिंधी रिफ्यूजी कॉलोनी गोलमुरी, बंगाली कॉलोनी शंकोसाई में रहने वाले 700 परिवार के 6000 शरणार्थी अनिश्चितता और असुरक्षा के साये में जी रहे थे।

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अपनी मातृभूमि से विस्थापित, अपनी पहचान से वंचित ये शरणार्थी दर्द और पीड़ा की एक अनकही कहानी थे। 77 साल का इंतजार सोमवार को खत्म हुआ, जब देश में नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू कर दिया गया। इसी के साथ एक नए भविष्य का वादा के साथ इन शरणार्थियों के जीवन की नई शुरुआत हुई।

आंखों में नमी, हृदय में उमंग, चेहरे पर मुस्कान, नागरिकता का अधिकार मिलने की खुशी एक साथ इनके चेहरों पर झलक रही थी।

1947 से ही जमशेदपुर में बसे हैं शरणार्थी

संजय नंदी कहते हैं कि भारत-पाकिस्तान का विभाजन 1947 और पाकिस्तान-बांग्लादेश का विभाजन 1971 में हुआ था। उस वक्त इन दोनों देश से विभाजन की दंश लेकर लगभग 560 परिवार जमशेदपुर आए थे। इनमें से 135 बंगाली परिवार गोलमुरी व 75 मानगो के शंकोसाई और 350 पंजाबी व सिंधी परिवारों को गोलमुरी में सरकार ने बसाया था।

इन्हें न केवल तत्कालीन बिहार सरकार ने आवासीय भूखंड दिया, बल्कि मकान बनाने और रोजगार के लिए भी पैसे दिए थे। इन सब सरकारी सहायता मिलने के बावजूद आजादी के 77 वर्ष बाद भी आज तक मालिकाना हक नहीं मिला।

अब माथे से हट जाएगा रिफ्यूजी का कलंक

ईस्ट बंगाल कॉलोनी समिति के सचिव संजय नंदी बताते हैं कि सरकार द्वारा उनलब्ध कराई गई जमीन पर घर बनाकर रह रहे हैं, लेकिन वह सरकारी नक्शे में अवैध दखल है। इस वजह से हमारे बच्चों को राज्य सरकार की नौकरी नहीं मिलती है।

जमीन का मालिकाना नहीं मिलने से बच्चों को स्थायी आवासीय प्रमाणपत्र नहीं मिलता है। बैंक से भी हमें घर-मकान के एवज में कोई ऋण नहीं मिलता। मालिकाना हक की आस में तीसरी-चौथी पीढ़ी बैठी है। अब जाकर मोदी सरकार द्वारा सीएए लागू होने के बाद हट जाएगा शरणार्थी शब्द।

छह वर्ष वर्ष पूर्व बजे थे ढोल-नगाड़े

रघुवर सरकार ने 2018-19 में शरणार्थियों को मालिकाना हक देने का विधेयक पारित किया था। उस समय सभी कॉलोनियों में ढोल-नगाड़े बजे, लड्डू बंटे। इसके बाद सीओ, अमीन ने जमीन की मापी की, लेकिन सरकार बदलते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया। मानगो की रिफ्यूजी कॉलोनी में भी जश्न मना था।

आज गोलमुरी में करीब 200 बंगाली और 400 पंजाबी व सिंधी परिवार हैं। मानगो में भी करीब 75 परिवार बसाए गए थे, जिनकी संख्या अब 105 हो गई है। रिफ्यूजी कॉलोनी निवासी मिथुन चक्रवर्ती कहते हैं कि जब 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया था, लेकिन इसका लाभ नहीं मिला।

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