Jharkhand News: विशेषज्ञों ने की बाल मंत्रालय बनाने की मांग, मिर्गी की दवाएं फ्री करने की अपील
जमशेदपुर में बाल रोग विशेषज्ञों के सम्मेलन में बच्चों के लिए मिर्गी की दवा मुफ्त करने और बाल मंत्रालय बनाने की मांग उठी। विशेषज्ञों ने कहा कि मिर्गी को अंधविश्वास से न जोड़ें सही समय पर इलाज कराएं। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में मानसिक रोग बढ़ रहे हैं। ऑटिज्म भी एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। देश के सैकड़ों नामचीन बाल रोग विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार से बड़ी मांग करते हुए कहा है कि बच्चों को मिर्गी की दवा भी टीबी की तरह मुफ्त में उपलब्ध कराई जाए, ताकि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे भी सही इलाज से वंचित न रहें।
इसके साथ ही एक और अहम मांग उठाई गई कि बच्चों की सेहत, पोषण और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को ज्यादा प्राथमिकता देने के लिए देश में अलग से बाल मंत्रालय बनाया जाए।
यह मांग इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक एसोसिएशन (आइएपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. वसंत खलाटकर ने शनिवार को साकची स्थित एक होटल में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में रखी।
इस सम्मेलन में झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से 200 से अधिक विशेषज्ञ बाल चिकित्सक शामिल हुए। इस अवसर पर डॉ. मिंटू अखौरी सिन्हा, डॉ. अभिषेक मुंडू, डॉ. आरके अग्रवाल, डॉ. केके चौधरी, डॉ. मिथलेश, डॉ. जाय भादुड़ी, डॉ. रविंद्र कुमार, डॉ. सुधीर मिश्रा सहित अन्य उपस्थित थे।
मिर्गी का करवाएं सही इलाज
डॉ. वसंत खलाटकर ने बताया कि आज भी देश के कई हिस्सों में मिर्गी को अंधविश्वास से जोड़कर देखा जाता है। बच्चे की मिर्गी की स्थिति में लोग झाड़-फूंक और टोना-टोटका कराते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। उन्होंने कहा कि मिर्गी की पहचान के लिए इइजी जांच बेहद जरूरी है।
बच्चों में मिर्गी की कई किस्में होती हैं और यदि सही समय पर दवा शुरू की जाए, तो तीन साल में बच्चा पूरी तरह ठीक हो सकता है और सामान्य जीवन जी सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार इस दवा को भी मुफ्त इलाज श्रेणी में शामिल करे।
मोबाइल बना बच्चों में बीमारियों की नई वजह
रांची स्थित रिम्स के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव मिश्रा ने कहा कि हाल के वर्षों में बच्चों में मिर्गी और अन्य मानसिक रोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसका एक बड़ा कारण बच्चों में मोबाइल और स्क्रीन टाइम का अत्यधिक बढ़ना है। अब बच्चे हर समस्या का समाधान मोबाइल में खोजते हैं,जो कई न्यूरो समस्याओं की जड़ बन चुका है।
ऑटिज्म बन रही नई राष्ट्रीय चुनौती
आइएपी जमशेदपुर अध्यक्ष डॉ. मिंटू अखौरी सिन्हा और भारती विद्यापीठ पुणे की डॉ. नीलम श्रीवास्तव ने कहा कि ऑटिज्म अब देश में गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। कोविड के बाद इस बीमारी के मामले कई गुना बढ़े हैं।
पहले हर 100 में एक बच्चा ऑटिज्म से ग्रस्त होता था, अब यह अनुपात काफी तेजी से बढ़ा है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में बोलचाल की समस्या, सामाजिक जुड़ाव में कमी, देर से समझने जैसी दिक्कतें देखी जाती हैं। कई बार माता-पिता इसे सामान्य समझकर नजर अंदाज कर देते हैं, जिससे इलाज में देर हो जाती है।
देशभर से जुटे विशेषज्ञों ने की चर्चा
सम्मेलन में देशभर के जाने-माने न्यूरो और बाल रोग विशेषज्ञों ने बच्चों में बढ़ती न्यूरोलॉजिकल बीमारियों, उनके लक्षण, जांच और लेटेस्ट ट्रीटमेंट तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की।
सम्मेलन के अंतिम दिन (रविवार) बच्चों के लिए नवाचार तकनीकों, टीकाकरण के नए मॉडल, पोषण से जुड़ी योजनाओं और सरकारी भागीदारी पर भी गहन विचार-विमर्श होगा।
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