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    टाटा-रांची नेशनल हाईवे पर बनने वाले एलिवेटेड कॉरिडोर में फिर लगा अड़ंगा, अब सामने आई ये परेशानी

    Updated: Thu, 20 Mar 2025 02:09 PM (IST)

    बालीगुमा पारडीह एलिवेटेड कॉरिडोर परियोजना एक बार फिर वन विभाग के अड़ंगे से रुक गई है। 1500 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 4.644 हेक्टेयर वन भूमि के इस्तेमाल को लेकर पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार है। वन विभाग ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को स्टेट बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एसबीएलडब्ल्यू) और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) से अनुमति लेने को कहा है।

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    टाटा-रांची नेशनल हाईवे पर बनने वाले एलिवेटेड कॉरिडोर में फिर लगा अड़ंगा (सांकेतिक तस्वीर)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। टाटा को रांची से जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग-33 पर प्रस्तावित एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण में वन विभाग ने एक बार फिर रोड़ा अटका दिया है। 1500 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 4.644 हेक्टेयर वन भूमि के इस्तेमाल को लेकर पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार है।

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    वन विभाग ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को स्टेट बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एसबीएलडब्ल्यू) और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) से अनुमति लेने को कहा है। पहले भी कई बार वन विभाग की आपत्तियों से यह प्रोजेक्ट अटक चुका है।

    जाम से निजात को बन रहा एलिवेटेड कॉरिडोर:

    जमशेदपुर से रांची को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-33 झारखंड का एक व्यस्ततम मार्ग है। इस पर बढ़ते यातायात के दबाव और जाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए एनएचएआइ ने एलिवेटेड कॉरिडोर बनाने की योजना तैयार की। लेकिन वन विभाग ने इस परियोजना को हरी झंडी देने से पहले कई शर्तें थोप दी हैं।

    विभाग का कहना है कि प्रस्तावित कॉरिडोर का कुछ हिस्सा वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरता है, जिसके लिए एसबीएलडब्ल्यू और एनबीडब्ल्यूएल से मंजूरी जरूरी है। ये दोनों बोर्ड वन्यजीव संरक्षण के लिए काम करते हैं।

    एसबीएलडब्ल्यू राज्य स्तर पर और एनबीडब्ल्यूएल राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए परियोजनाओं की जांच करते हैं।

    वन विभाग ने एनएचएआई को पत्र लिखकर बताया कि परियोजना के प्रस्ताव में कई खामियां हैं। इन कमियों को दूर करने और मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने की सलाह दी गई है।

    एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हम इस परियोजना के महत्व को समझते हैं। एनएचएआई के साथ मिलकर इसे जल्द पूरा करने की कोशिश करेंगे, बशर्ते सभी नियमों का पालन हो।

    पहले भी अटकी थी राह:

    यह पहली बार नहीं है जब वन विभाग ने इस परियोजना में पेंच फंसाया हो। साल 2021 में भी जमीन अधिग्रहण और वन मंजूरी के मुद्दे पर काम रुक गया था। तब एनएचएआइ को कई महीनों तक कागजी कार्रवाई में उलझना पड़ा। इसके अलावा, 2023 में वन्यजीवों के आवागमन को लेकर उठे सवालों ने भी परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। हर बार मंजूरी में देरी से लागत बढ़ने का खतरा भी मंडरा रहा है।

    क्यों खास है यह परियोजना?

    राष्ट्रीय राजमार्ग-33 झारखंड की आर्थिक रीढ़ माना जाता है। यह न सिर्फ जमशेदपुर और रांची जैसे बड़े शहरों को जोड़ता है, बल्कि खनिज संपदा से भरपूर इलाकों को भी बाजार से जोड़ने का काम करता है। रोजाना हजारों वाहनों की आवाजाही से यह मार्ग हमेशा जाम की चपेट में रहता है। एलिवेटेड कॉरिडोर बनने से यातायात सुगम होगा और समय की बचत होगी, लेकिन वन भूमि और पर्यावरण नियमों की पेचीदगियों ने इसे सपना बनाकर रख दिया है।

    आगे की राह:

    एनएचएआई अब एसबीएलडब्ल्यू और एनबीडब्ल्यूएल से संपर्क साधने में जुट गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द मंजूरी नहीं मिली तो परियोजना की समयसीमा और बढ़ सकती है। वन विभाग ने भी सहयोग का भरोसा दिया है, लेकिन उसकी शर्तें सख्त हैं।

    स्थानीय लोग इस प्रोजेक्ट के जल्द शुरू होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, ताकि जाम से छुटकारा मिल सके। फिलहाल, यह देखना बाकी है कि क्या एनएचएआई वन विभाग की आपत्तियों को दूर कर इस परियोजना को पटरी पर ला पाएगा, या फिर यह एक और अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी।

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