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    Jamshedpur News: आरोग्य मंदिर में बदल गया जर्जर सरकारी भवन, लोगों को मिल रही नई जिंदगी

    Updated: Wed, 13 Aug 2025 04:10 PM (IST)

    झारखंड के पोटका प्रखंड के अमला टोला गांव में ग्रामीणों ने आठ साल के संघर्ष से एक अधूरे सरकारी भवन को आरोग्य मंदिर में बदल दिया। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अनूप मंडल के नेतृत्व में ग्रामीणों ने आरटीआई और जन संवाद जैसे माध्यमों से ठेकेदार पर दबाव बनाया और अधूरे काम को पूरा करवाया। आज इस आरोग्य मंदिर से दर्जनों गांवों के लोगों को लाभ मिल रहा है।

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    जंग खाते सरकारी भवन के आरोग्य मंदिर में बदलते ही लोगों को मिलने लगा उपचार। जागरण फोटो

    शंकर गुप्ता, पोटका। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि जब नागरिक अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज उठाते हैं, तो उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ऐसे हथियार का रूप ले लेती है, जिसके सामने बड़े से बड़ा भ्रष्टाचार भी घुटने टेक देता है। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जैसे सुदूर जिले के पोटका प्रखंड स्थित अमला टोला गांव ने इसी सच्चाई को चरितार्थ किया है।

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    यहां ग्रामीणों ने अपने आठ साल के अथक संघर्ष से एक अधूरे और जंग खाते सरकारी भवन को एक संपूर्ण आरोग्य मंदिर में तब्दील कर दिया है। इस जन-आंदोलन के सारथी बने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अनूप मंडल, जिनके कुशल नेतृत्व और रणनीति ने ग्रामीणों की बिखरी हुई आवाज को एक संगठित ताकत में बदल दिया।

    एक सपना जो खंडहर में बदल गया

    यह कहानी वर्ष 2008-09 की है, जब हैंसल आमदा पंचायत के अमला टोला में ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल की ओर से 14 लाख 19 हजार रुपये की लागत से एक उप स्वास्थ्य केंद्र को मंजूरी मिली थी। गांव वालों के मन में एक उम्मीद जगी कि अब उन्हें छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए शहर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। लेकिन उनकी यह खुशी जल्द ही निराशा में बदल गई।

    ठेकेदार ने भवन का ढांचा तो खड़ा कर दिया, लेकिन शौचालय, बिजली की वायरिंग, सेप्टिक टैंक और छत की ढलाई जैसे जरूरी काम अधूरे छोड़कर पूरी सरकारी राशि निकाल ली। भ्रष्टाचार की इस दीमक ने देखते ही देखते स्वास्थ्य केंद्र के सपने को एक खंडहर में बदल दिया, जहां छत से पानी टपकता था और दीवारों पर काई जम गई थी।

    संघर्ष की पहली चिंगारी और सारथी का आगमन

    इस सरकारी लूट के खिलाफ गांव के ही महावीर सरदार, सुबल पुराण, गौरांग पुराण, निमाई टुडू और कानू बेसरा जैसे कुछ जागरूक ग्रामीणों ने सबसे पहले आवाज बुलंद की। उन्होंने स्थानीय सिविल सर्जन से लेकर जिले के उपायुक्त और मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखकर शिकायत की, लेकिन वर्षों तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

    जब व्यवस्था की चुप्पी ने उन्हें लगभग निराश कर दिया, तब ग्रामीणों ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अनूप मंडल से संपर्क किया। डॉ. मंडल ने ग्रामीणों की पीड़ा को समझा और उनके आंदोलन को एक नई दिशा दी।

    जन संवाद ने बढ़ाया दबाव

    डॉ. मंडल ने अमला टोला में ग्रामीणों के साथ बैठक कर आंदोलन की एक ठोस रणनीति तैयार की। सबसे पहले 12 सितंबर 2016 को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का इस्तेमाल कर योजना का पूरा ब्योरा मांगा गया।

    आरटीआई से मिले दस्तावेजों ने ब्रह्मास्त्र का काम किया। इससे आधिकारिक तौर पर यह साबित हो गया कि ठेकेदार ने अधूरा काम छोड़कर पूरी राशि की निकासी कर ली है।

    इस अकाट्य सबूत के साथ, ग्रामीणों ने डॉ. मंडल के नेतृत्व में मामले को मुख्यमंत्री जन संवाद कार्यक्रम तक पहुंचाया। यह झारखंड सरकार का एक सीधा शिकायत निवारण मंच है, जहां दर्ज शिकायतों पर उच्च स्तर से निगरानी रखी जाती है। जन संवाद में मामला पहुंचने के बाद प्रशासनिक मशीनरी हरकत में आई।

    ठेकेदार पर अधूरा काम पूरा करने का दबाव बनाया गया। महीनों की लगातार निगरानी और ग्रामीणों के बुलंद हौसले के आगे आखिरकार ठेकेदार को झुकना पड़ा और भवन के सभी अधूरे कार्यों को पूरा किया गया।

    दर्जनों गांवों को मिला लाभ

    आज वही खंडहरनुमा इमारत एक जीवंत आरोग्य मंदिर के रूप में खड़ी है। यहां न केवल अमला टोला, बल्कि आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों को प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं। गर्भवती महिलाओं की जांच से लेकर बच्चों का टीकाकरण तक नियमित रूप से हो रहा है।

    यह जीत सिर्फ एक भवन के निर्माण की नहीं, बल्कि आम आदमी के उस विश्वास की है जो यह सिखाता है कि संगठित होकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सही इस्तेमाल किया जाए तो हर मंजिल पाई जा सकती है।

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