Hazaribagh News: लावारिस शवों के 'वारिस' बन रहे नीरज, समाज में बनाई अलग पहचान
हजारीबाग के नीरज पासवान ने कम उम्र में ही अपना नाम बना लिया है। वह समाज में सामाजिक समरसता की मिशाल पेश कर रहे हैं। नीरज पिछले चार वर्षों में अब तक 100 शवों का उनके धार्मिक रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार कराया है। नीरज 70 बार रक्तदान भी कर चुके हैं। कोरोना काल में नीरज ने लोगों की खूब मदद की थी।

विकास कुमार, जागरण, हजारीबाग। आज हम ऐसे व्यक्तित्व की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने बेहद कम उम्र में समाज में सामाजिक समरसता की मिसाल पेश की है। यह कहानी है 40 वर्षीय नीरज पासवान की, जिन्होंने 22 वर्ष की उम्र में ही सेवा को अपना धर्म मान लिया।
नीरज टूर एंड ट्रेवल्स का काम करते हैं। उनके पिता दशरथ राम सरकारी शिक्षक हैं। दृढ इच्छाशक्ति के कारण एक बार जब इन्होंने ठान ली तो फिर पीछे हटने का सवाल ही नहीं।
70 बार रक्तदान कर चुके हैं नीरज
नीरज ने सबसे पहले रेड क्रॉस से जुड़कर इसकी शुरुआत की। नीरज ने धर्म-जाति में भेदभाव किए बिना करीब 1000 से अधिक लोगों को रेड क्रॉस सचिव रहते ब्लड उपलब्ध कराया। स्वयं 70 बार रक्तदान कर चुके नीरज पासवान की पहचान कोरोना काल में और बदल गई।
जब अंतिम क्षण में अपने नाते रिश्तेदारों ने भी मुंह मोड़ लिया तो नीरज आगे आए। लावारिस शव अस्पतालों में पड़े थे। अंतिम संस्कार करने के लिए भी परिवार के लोगों ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में इन्होंने मुक्तिधाम सेवा संस्थान सामाजिक सेवा संगठन बनाया और फिर हजारीबाग में लावारिस शवों के वारिस बन गए।
कोरोना काल में शवों का किया था अंतिम संस्कार
सिर्फ कोरोना कल में ही इन्होंने 23 शवों का अंतिम संस्कार किया। ये ऐसे अभागे लोग थे जिनकी पहचान होते हुए भी वे अज्ञात हो गए थे। नीरज ने इन्हें सामाजिक रिश्तों की डोर में बांध कर उनके धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार ही उनका अंतिम संस्कार किया।
नीरज ने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि अज्ञात शव को भी उनके धर्म के मुताबिक सम्मान हो। चाहे मुस्लिम हो या क्रिश्चियन या फिर सनातनी, सभी को उनके धर्म के अनुसार उनकी अंतिम विदाई दी। पिछले चार वर्षों में ही नीरज करीब 100 शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इसमें 17 मुस्लिम समुदाय के लोगों के शव थे।
धार्मिक रीति रिवाज से शव का अंतिम संस्कार करना नीरज के लिए आसान नहीं होता है। अज्ञात शवों की धार्मिक पहचान हो सके, इसके लिए उन्हें पोस्टमार्टम से लेकर बरामद कपड़ों तक खोजबीन करनी पड़ती है। कहीं किसी की लॉकेट से पहचान होती है तो कहीं शरीर के अंग से पहचान की जाती है।
मुस्लिम समाज का शव होने पर मैयत सीरत कमेटी से संपर्क साधते हैं। उन्हें जानकारी देते हैं। इसके बाद शवों को विधि विधान से दफनाया जाता है। वैसे ही हिंदू होने पर मुक्तिधाम मंडली से संपर्क साधा जाता है और उनका अंतिम संस्कार पूरी प्रक्रिया के साथ किया जाता है।
सबसे बड़ी बात है नीरज इन सभी की तस्वीर भी हमेशा अपने पास रखते हैं, ताकि भविष्य में कोई उन्हें ढूंढने आए तो उनकी पहचान अंतिम संस्कार होने के बाद भी हो सके। उनके कपड़ों तक को सुरक्षित रखा जाता है।
इस पुनीत कार्य के लिए लोगों से चंदा भी इकट्ठा करता हूं। कई लोग स्वयं भी आकर मदद करते हैं। मददगार में पंडित, मौलवी, पादिरी सभी शामिल हैं। कोई जाति धर्म का भेद नहीं होता। जिसे जितना बन पड़ता है लोग वैसी मदद हमेशा करते आए हैं। अभी हाल ही में दो ईसाई समुदाय के लोगों के शव की पहचान हुई थी। उनका भी उनके धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया गया। - नीरज पासवान
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