Ayodhya में विवादित जमीन पर छेड़ी संवाद-सौहार्द की मोहक धुन... Ram Mandir के समर्थक बब्लू खान की कहानी
अयोध्या की धरती सदियों से सौहार्द और समन्वय की परंपरा रही है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बब्लू खान ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के समाधान के लिए अथक प्रयास किए हैं। उनके प्रयासों से न केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों ने राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन दिया बल्कि उन्होंने आपसी विश्वास और भाईचारे की मशाल भी जलाए रखी है।

रघुवरशरण, अयोध्या। भारतीय समाज प्रारंभ से ही सौहार्द-समन्वय का संवाहक रहा है। यह श्रृंखला रहीम-रसखान जैसी कई चमकदार कड़ियों से विभूषित है। इस गौरवमय परंपरा को पोषित करने में रामनगरी भी पीछे नहीं रही है। जो धरती रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जैसे विवाद के केंद्र में रही हो, वहां सौहार्द-समन्वय की परंपरा पुष्पित-पल्लवित होते देखना गौरवपूर्ण होने के साथ रोचक भी है।
बब्लू खान के नाम से प्रसिद्ध मो. अनीस इसी परंपरा के प्रतिनिधि और चमकते सितारे हैं। रामजन्मभूमि से बमुश्किल चार किलोमीटर दूर ग्राम मिर्जापुर माफी के निवासी खान के लिए होश संभालते ही हिंदू-मुस्लिम का विभाजन पीड़ादायक था। जल्दी ही उन्होंने इस ओर गौर करना शुरू किया तो ज्ञात हुआ कि ऐसे विभाजन का बड़ा कारण रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद है।
वह शुरू से ही इस विवाद का सर्वमान्य हल तलाशने की कल्पना करने लगे। हालांकि जो विवाद पूरे देश के सामने जटिल पहेली के रूप में उलझा था, उसे उन जैसे युवा के लिए सुलझाना कोरी कल्पना जैसी थी। यद्यपि उनके इरादे दृढ़ थे और वह रामनगरी के आसपास के परिक्षेत्र में आम सहमति का वातावरण बनाने लगे।
बब्लू खान का हौंसला हमेशा कायम रहा
इस प्रयास के तहत उनकी पहचान भी पुख्ता होती गई। इसी सक्रियता के ही चलते उन्होंने मसौधा प्रथम क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में भी भाग्य आजमाया, लेकिन नजदीकी मुकाबले में शामिल होने के बाद भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उनका हौंसला कायम रहा।
साल 2016 के चुनाव तक मसौधा प्रथम की सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई तो खान ने पत्नी इस्मत जहां को मैदान में उतार दिया और मतदाताओं ने इस बार खान को निराश नहीं किया। यह विश्वास और सफलता हासिल करने के बाद खान मंदिर-मस्जिद विवाद का हल प्रस्तुत करने के लिए कहीं अधिक खुलकर प्रयास करने लगे।
2016 में उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए शिलादान किया
उन्होंने इस्लाम को जानने वालों से पहले ही यह सुन रखा था कि विवादित स्थान पर अदा की गई नमाज को अल्लाह नहीं कुबूल करता और इसी तथ्य को ध्यान में रखकर उन्होंने मुस्लिमों को राम मंदिर से दावा छोड़ने के लिए राजी करना शुरू किया। 2016 में ही उन्होंने सैकड़ों की संख्या में स्थानीय मुस्लिमों के साथ मंदिर निर्माण के लिए शिलादान किया।
नौ साल पहले का माहौल आज की तरह नहीं था, तब उनकी ऐसी पहल तलवार की धार से गुजरने जैसी थी और उन्हें इसकी कीमत कट्टरपंथियों की ओर से मिलने वाली धमकियों से चुकानी पड़ी। इसके बावजूद खान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। रामकोट की परिक्रमा, अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा, तिरंगा यात्रा, राम मंदिर मुक्ति यज्ञ आदि जैसे सतत आयोजन के माध्यम से वह यह संदेश देने में सफल रहे कि वह न केवल स्वयं बल्कि उनके साथ आसपास के बड़ी संख्या में मुस्लिम राम मंदिर के लिए सौहार्द की बुनियाद बनने को तैयार हैं।
वह नौ नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने से पूर्व के कुछ वर्षों में मंदिर के लिए छिड़े कतिपय प्रभावी अभियानों के प्रेरक के तौर पर भी प्रतिष्ठित हुए। यद्यपि मंदिर विवाद का समाधान कोर्ट के निर्णय से प्रशस्त हुआ, लेकिन खान ने सौहार्द-समन्वय का अभियान अप्रतिहत है। उन्होंने न केवल मंदिर के निर्णय और निर्माण का साथियों के साथ खुले दिल से स्वागत किया है, बल्कि आपसी विश्वास और भाईचारा की मशाल जलाए रखने के प्रति वह कभी गाफिल नहीं पड़े हैं।
‘विभाजन की दीवार ऊपर वाले ने नहीं हमने खड़ी की है’
बब्लू खान राम मंदिर निर्माण के साथ अब राष्ट्र मंदिर का निर्माण प्रशस्त करने में लगे हैं। वह कहते हैं, धर्म के नाम पर कट्टरता की बातें बंद होनी चाहिए। यह सर्वमान्य सत्य है कि देश की तरक्की और समाज की समृद्धि तथा खुशहाली के लिए एकता की बात होनी चाहिए।
उनका यह भी सुझाव है कि हिंदू, इस्लामिक या आस्था के अन्य केंद्रों की पूजा पद्धति भले भिन्न हो, किंतु वहां आस्था अर्पित करने की छूट सभी धर्मों को मिलनी चाहिए और सभी का समान भाव से स्वागत होना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऊपर वाले की निगाह में हम सभी एक हैं और विभाजन की दीवार ऊपर वाले ने नहीं हमने खड़ी की है।
वह अयोध्या की शान हैं : परमहंस आचार्य
सौहार्द के प्रयास के लिए बब्लू खान आंख के तारे बन कर भी प्रतिष्ठित हुए हैं। वह साधु-संतों की भी सभा में आदर पाते हैं। उन्हें स्थानीय स्तर पर अनेक पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इसी क्रम में गत माह तपस्वी छावनी पीठाधीश्वर जगद्गुरु परमहंस आचार्य उन्हें रसखान सम्मान से विभूषित कर चुके हैंद्ध आचार्य परमहंस कहते हैं कि खान का प्रयास अभूतपूर्व है और वह अयोध्या की शान हैं।
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