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    मां दुर्गा ने दिलाई थी गांव को महामारी से मुक्ति, प्रतिमा स्‍थापित करने मात्र से दूर हो गई थी गांव की परेशानी

    बिरनी प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर पश्चिम दिशा पड़रिया गांव में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरो पर है। यहां 1988 से दुर्गा पूजा की जा रही है। अस्सी के दशक में गांव में महामारी फैली थी। ग्रामीणों ने तब प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की थी। इसके बाद गांव को तमाम आपदाओं से मुक्ति मिल गया। यहां दूर-दूर से भक्‍त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 05 Oct 2023 04:50 PM (IST)
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    गांव में यहीं लगता है विजयादशमी का भव्‍य मेला।

    संवाद सहयोगी, बिरनी (गिरिडीह)। बिरनी प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर पश्चिम दिशा पड़रिया गांव में 1988 से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जा रही है। यहां विजय दशमी को भव्य मेला भी लगता है। इस दुर्गा मंडप की ख्याति बढ़ती गई और लोग श्रद्धा के साथ जुड़ते गए।

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    मां ने गांव को दिलाई थी महामारी से मुक्ति

    विजय दशमी में मेला के दिन हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। अस्सी के दशक में गांव में महामारी फैली थी। ग्रामीणों ने जब प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की, तो गांव में फिर संकट-आपदा नहीं नही आया। इस बार भी गांव में पूजा की तैयारी शुरू कर दी गई है।

    दुर्गा पूजा के आयोजक रामचन्द्र दास व पन्ना दास का कहना है कि 1986 -87 में गांव में आपदा आई थी। लोग बीमार पड़ने लगे थे। घरों में संकट से निपटने के लिए मां दुर्गा के पूजन के लिए कलश स्थापन किया गया। ग्रामीणों ने इसी अनुसूचित जाति के घर में कलश स्थापना करवाया । फिर उसका विसर्जन किया गया।

    दूर-दूर से भक्‍तों का लगा रहता है आना

    कलश विसर्जन के बाद घर में कई तरह की घटनाएं घटने लगीं। कई विद्वानों से जानकारी लेने पर अनूप दास को मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने को कहा गया।

    विद्वानों के कहने पर 1988 से अनूप दास खूंटा व प्लास्टिक से तंबू बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा की पूजा की शुरुआत की। उसके बाद मिट्टी की दीवार व खपरैल का दुर्गा मंडप बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाने लगी।

    प्रतिमा स्थापित होते ही घर से लेकर पूरे गांव से प्राकृतिक संकट दूर हो गया। धीरे-धीरे मां दुर्गा की महिमा बढ़ने लगी। लोगों के सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया। अब कलश स्थापना से लेकर विसर्जन तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

    इन्होंने की थी पहली पूजा

    मां दुर्गा की पूजा सबसे पहले धनवार के नावागढ़ के दिवाकर पांडेय, सरिया के फकीरापहरी के भोला पांडेय और अब मरकच्चो के लोहरा नावाडीह के सुखदेव पांडेय ने की।

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    बकरे की दी जाती है बलि

    दुर्गा पूजा के अवसर पर नवमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के पास बकरे की बलि देते हैं। दुर्गा मंडप में बलि होने के बाद पूरे गांव में बकरे की बलि दी जाती है।

    ग्रामीण भी करते है सहयोग

    रामचन्द्र दास व पन्ना दास ने बताया कि तीन व चार साल से ग्रामीण भी क्षमता के अनुसार सहयोग कर रहे हैं। भव्य मेला भी लगता है।

    ग्रामीण कलश स्थापना से लेकर प्रतिमा विसर्जन तक सहयोग करते है। मेला व पूजा में ग्रामीण विधि व्यवस्था की जिम्मेदारी खुद संभालते। ग्रामीण सहयोग राशि भी देते हैं।

    क्या कहते हैं पुजारी

    पुजारी सुखदेव पांडेय ने कहा कि कलश स्थापना से ही इस दुर्गा मंडप में पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु दूर-दराज से पहुंचते हैं। यहां आने-जाने में कोई परेशानी किसी को नहीं होती। चारों तरफ से कालीकरण सड़क की सुविधा है।

    इस दुर्गा मंडप की महिमा काफी दूर तक फैली है। आस्था में जाति व भेदभाव नही देखा जाता है। माता दुर्गा की कृपा से सब ठीक हो रहा। जो भी श्रद्धालु माता के दरबार मे पहुंचते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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