Navratri 2025: नवरात्र में यहां हर दिन दी जाती है बकरे की बलि, आज भी जारी सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा
गिरिडीह के भरकट्टा दुर्गा मंडप में 1900 से मां दुर्गा की पूजा हो रही है। यहां राजा ठाकुर प्रीत नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। इस मंदिर में पूजा (Sharad Navratri 2025) के पहले दिन से लेकर विसर्जन तक बकरे की बलि दी जाती है। नवमी के दिन सैकड़ों बकरे की बलि चढ़ाई जाती है।

संवाद सहयोगी, बिरनी। गिरिडीह मुख्यालय से 40 किलोमीटर व बिरनी प्रखंड मुख्यालय से 18 किलो मीटर दूरी पर कोडरमा-भरकट्टा- कोवाड़ मुख्य मार्ग पर भरकट्टा दुर्गा मंडप अवस्थित है।
यहां के राजा ठाकुर प्रीत नारायण सिंह ने अपनी प्रजा की सुविधा के लिए वर्ष 1900 में शारदीय मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू करवाई थी। तब से यहां navratri पूजा के प्रथम दिन से लेकर विसर्जन तक प्रतिदिन बकरे की बलि दी जाती है।
उस समय राजा ठाकुर प्रीत नारायण सिंह ने छोटा सा मिट्टी का दुर्गा मंडप बनवाया था। प्रतिमा की पूजा के साथ भव्य मेला भी शुरू किया गया। उनके निधन होने के बाद ठाकुर तुलसी नारायण सिंह, फिर तुलसी नारायण सिंह के स्वर्गवास होने के बाद पीतांबर नारायण सिंह ने मंडप को और विकसित किया।
अब उनके वंशज मुखिया राजकुमार नारायण सिंह व उनके सभी भाइयों मिलकर मंडप भव्य रूप दे दिया है। मां दुर्गा के दर्शन व पूजा के लिए काफी दूर दराज से भक्त आते है। इस दुर्गा मंडप की महिमा काफी दूर तक फैली हुई है।
नवमी के दिन कटते हैं सैकड़ों बकरे
बताया गया कि कलश स्थापना से ही मां दुर्गा के पास विसर्जन तक प्रति दिन बकरे की बलि दी जाती है। नवमी के दिन दुर्गा मंडप में सैकड़ो बकरे की बलि पड़ती है। भक्तों की सुविधा के लिए मुखिया राजकुमार नारायण सिंह व फौदार नारायण सिंह लाइट की व्यवस्था करते हैं।
पूजा अर्चना में ग्रामीण भी राशि का सहयोग करते है। मुखिया राजकुमार का कहना है कि ग्रामीणों से जो भी सहयोग मिलता है, उसके बाद अपना निजी राशि खर्च कर पूजा व मेला को अंतिम रूप देते हैं।
शांति व्यवस्था के लिए पुलिस जवान के साथ साथ ग्रामीण भी तैनात रहते है। पूजा करने व मेला देखने के लिए डुमरी व मुफसिल थाना समेत बिरनी थाना से सीमा से सटे गांव लेदा बाघमारा, सिमरिया, कुरुमडीहा, सारको, लुरुनगो, लुकैया, नागबाद,नारो-भंडारो आदि स्थानों से लोग परिवार के साथ पहुंचते हैं।
यहां दुर्गा पूजा की तैयारी एक माह पूर्व से शुरू हो जाती है। मुखिया राजकुमार, फौदार नारायण सिंह, बलराम सिंह, चंद्रमणि नारायण सिंह,कुंदन नारायण सिंह,कुंजन नारायण सिंह, भागवत नारायण सिंह व ग्रामीण शुय से लगे रहते हैं। आश्विन माह पड़ते ही मूर्तिकार प्रतिमा बनाना शुरू कर देते हैं।
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