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    किसानों ने देशज बीजों और औषधीय पौधों को दिलाई 'पहचान', इनकम में बढ़ गए 50 हजार रुपये

    Updated: Wed, 19 Mar 2025 06:47 PM (IST)

    Jharkhand News झारखंड के दुमका जिले के किसानों ने देशज बीजों और औषधीय पौधों को संरक्षित कर अपनी आय में 50 हजार रुपये तक की वृद्धि की है। प्लांट जेनेटिक रिसोर्स (पीजीआर) के फसल सुधार कार्यक्रम के तहत किसानों ने खेती और उद्यान-वानिकी में नई पहचान बनाई है। इस पहल ने झारखंड को प्लांट जेनेटिक रिसोर्स के संरक्षण में देश का अग्रणी राज्य बना दिया है।

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    कृषि मंत्रालय में देशज बीजों और औषधीय पौधों का निरीक्षण करते अधिकारी।

    राजीव, दुमका। Dumka News: खेती-किसानी को लाभपरक बनाने और अन्नदाताओं की आय बढ़ाने के लिए रोज नए उद्यम-उपक्रम किए जा रहे हैं। विविध प्रयोगों के साथ नव पादपों से भरपूर उत्पादन प्राप्त करने पर पूरा जोर है। लेकिन, खाद्य पोषण और संरक्षण-सुरक्षा के अभाव में कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बड़ी चुनौती बनी हुई है।

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    झारखंड के दुमका के किसानों ने देशज बीजों और औषधीय पौधों को विशिष्ट पहचान दिलाने की बड़ी पहल की है। जंगली पौधों और बीजों को सहेजकर वे 50 हजार की अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं।

    पादप आनुवंशिक संसाधन (पीजीआर) के फसल सुधार कार्यक्रम का हिस्सा बनकर इन किसानों ने खेती, उद्यान-वानिकी की नई परिभाषा गढ़ी है।

    इनके बूते प्लांट जेनेटिक रिसोर्स को संरक्षित करने में झारखंड, ओडिशा के साथ देश का अग्रणी राज्य बन गया है।

    राष्ट्र-राज्य संपदा के रूप में मान्यता प्राप्त पौधों के जरिये खेती-किसानी बदल रहे कृषक वन फसलों और पौधों के आनुवंशिक संसाधनों का भरपूर उपयोग कर रहे हैं।

    परंपरागत कृषि की इस विधा में कंद, प्रकंद, पराग-अंकुर आदि पादप प्रजनकों का भी खास ख्याल रखा जाता है।

    दुमका की पहाड़िया जनजाति के अलावा गुमला, रांची और गिरिडीह के किसानों ने भी औषधीय पौधों व देशज बीजों को सहेजने का बीड़ा उठाया है।

    झारखंड में अब भी कारगर है पुरानी कृषि पद्धति

    जलवायु परिवर्तन से बिगड़ती कृषि व्यवस्था के बीच झारखंड में आज भी देशज बीज व पुरानी कृषि पद्धति काफी कारगर है।

    इनके गुण व विशिष्टता की जांच के साथ ही व्यवसायिक उपयोग के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इससे किसानों के परंपरागत ज्ञान को ग्लोबल पहचान मिल रहा है।

    कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के डिप्टी रजिस्ट्रार उमाकांत दुबे ने बताया कि प्लांट जेनेटिक रिसोर्स को संरक्षित करने में झारखंड देश में दूसरे स्थान पर है।

    देशज बीजों को विशिष्ट पहचान दिलाने के लिए प्रमाणिक जांच करते।

    यहां के किसानों द्वारा संरक्षित सैंकड़ों उत्पादों ने प्रमाणिकता प्राप्त की है। कृषि विज्ञान केंद्र, दुमका की अगुवाई में इन किसानों को पारंपरिक देशज बीज के संरक्षण की ट्रेनिंग भी दी गई है।

    जिले के 165 से अधिक किसानों के द्वारा सहेजे गए बीजों-उत्पादों को प्लांट प्रोटेक्शन वेराइटी एंड फामर्स राइट एक्ट (पीपीभीएफआरए) के तहत कृषि अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली ने अपनी मान्यता दी है।

    इनमें सरैयाहाट के चिलरा गांव के किसान अमरेन्द्र कुमार द्वारा संरक्षित देशी मक्का सबसे खास है। इसे स्थानीय लोग ढिबरी मकई कहते हैं, इसकी विशिष्टता है कि बिना सिंचाई के भरपूर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

    कृषि विज्ञान केंद्र की वरीय विज्ञानी डा. किरण कुमारी सिंह ने बताया कि यहां के अब तक 135 किसानों के उत्पादों का निबंधन किया गया है।

    इसका उद्देश्य देशज बीजों व उत्पादों की गुणवत्ता को विशिष्ट पहचान दिलाने के साथ ही इसे सहेजने वाले किसानों की परंपरागत ज्ञान, इनके पूर्वजों से मिली सीख का अधिकाधिक लाभ दिलाना है।

    धान-मक्का से जंगली धतूरा के बीज तक किए संरक्षित

    दुमका के ग्रामीण इलाकों में धान का एक देहाती प्रभेद बीयन सार भी इनमें शामिल है। खासियत में यह कतरनी चावल के समान है। वहीं भूरे रंग का देशी गोरा धान भी बहुत प्रभावी है।

    इससे बना भात दो दिनों तक खराब नहीं होता। गुणवत्ता में यह काफी सुपाच्य है। वर्तमान में जंगली अदरक, जंगली हल्दी, बेल, बेर, अरवी, जंगली धतूरा, पथलचट्टा, भेलवा, मक्का, गिलोय, पादप छाल, बरबट्टी, भेलवा, हाथीकान समेत कई उत्पादों व देशज बीज का सैंपल संग्रह कर सीधा लाभ किसानों को दिलाया जा रहा है।

    शिकारीपाड़ा के मलूटी में गौमूत्र से तैयार औषधी, सरायकेला में कुसमी लाह उत्पादन व बिहन लाह तकनीक के साथ ही दलहन उत्पादन योजना के तहत फेलो लैंड पर 40 प्रतिशत अधिक उत्पादन बढ़ाने के लिए आइसीएआर में झारखंड का परचम लहरा चुका है।

    देशज बीजों और औषधीय पौधों से अब तक 350 किसान लाभान्वित हुए हैं और इनमें से प्रत्येक किसान 50 हजार रुपये तक अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं।

    प्रामाणिक देशज बीजों के निबंधित किसानों को 10 लाख रुपये नकद और प्रशस्ति पत्र भी मिलेगा। इन किसानों को भविष्य में रायल्टी भी मिलेगा।

    प्लांट जेनेटिक रिसोर्स को संरक्षित किए जाने को सर्वाधिक 2400 आवेदन झारखंड से प्राप्त हुए हैं। इनमें 385 किसानों के उत्पादों का प्रमाणीकरण किया जा चुका है। इसमें ओडिशा पहले पायदान पर है। यहां के 900 किसानों के उत्पादों को प्रामाणिक माना गया है। - उमाकांत दुबे, डिप्टी रजिस्ट्रार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

    65 से ज्यादा उत्पाद संग्रहित किए

    प्लांट जेनेटिक रिसोर्स संरक्षित किए जाने को लेकर गंभीर प्रयास हो रहे हैं। दुमका में यह काफी कारगर तरीके से काम कर रहा है। यहां से 65 से अधिक उत्पादों को संग्रहित किया गया है, जिसमें 35 प्रामाणिक हो चुके हैं। - डॉ. किरण कुमारी सिंह, वरीय विज्ञानी, कृषि विज्ञान केंद्र, दुमका

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