Jharkhand: पारसनाथ की बदली आबोहवा, ईनामी नक्सली बनने लगे अफसर, युवाओं ने बंदूक नहीं, शिक्षा को बनाया हथियार
केंद्र में मोदी सरकार के हस्तक्षेप और हेमंत सोरेन सरकार के द्वारा बिहड़ इलाकों के विकास के मद्देनजर अब यहां के माओवादियों का मनोबल टूटने लगा है। ये हथियार की जगह शिक्षा को प्राथमिकता देने लगे हैं और बड़े पदों पर नियुक्त हो रहे हैं।

दिलीप सिन्हा, धनबाद। पारसनाथ जोन कभी नक्सली संगठन भाकपा माओवाद का मुख्यालय था। धनबाद एवं गिरिडीह जिले के पारसनाथ पहाड़ की तलहटी का इलाका इसमें आता है, जिसमें टुंडी, तोपचांची, डुमरी एवं पीरटांड़ प्रखंड शामिल हैं। आज भी एक करोड़ के तीन इनामी मिसिर बेसरा, प्रयाग मांझी एवं पतिराम मांझी उर्फ अनल दा इसी जोन के हैं।
प्रशासन की मदद से बदली आबोहवा
मिसिर एवं प्रयाग भाकपा माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं, अनल केंद्रीय कमेटी सदस्य। देश भर में पारसनाथ के माओवादी कमांडर फैले हुए हैं। अब केंद्र की मोदी सरकार के हस्तक्षेप एवं हेमंत सरकार के इस बीहड़ क्षेत्र में विकास करने से पारसनाथ में माओवादियों का तिलिस्म टूट चुका है। यहां की आबोहवा बदल चुकी है। स्थिति यह है कि माओवादियों को अब यहां कैडर नहीं मिल रहे हैं। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अब थोक भाव में इस पिछड़े एवं दुर्गम क्षेत्र से अफसर निकल रहे।
माओवादी नहीं, अफसरों से होने लगी इलाके की पहचान
अति नक्सल प्रभावित धनबाद जिले के तोपचांची एवं टुंडी तथा गिरिडीह जिले के पीरटांड़ एवं डुमरी प्रखंड के युवक झारखंड, बिहार व अन्य प्रदेशों में अफसर नियुक्त हो रहे हैं। यहां की पहचान अब माओवादियों से नहीं, इन अफसरों से होने लगी है।
एक दशक से इस दुर्गम इलाके के युवा लगातार अपने गांव और क्षेत्र की सूरत बदल रहे हैं। पीरटांड़ का पहला युवक, जो अफसर बना, वह है एजाज हुसैन अंसारी। पीरटांड़ के सुदूर बरियारपुर निवासी एजाज पहले शिक्षक नियुक्त हुए थे। उसके बाद उन्होंने जेपीएससी (Jharkhand Public Service Commission) में अपनी प्रतिभा साबित की। वह टुंडी के सीओ हैं।
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एजाज के जेपीएससी में चयन होने के बाद तो युवाओं में अफसर बनने की होड़ लग गई है। आदिवासी समाज के बुद्धिजीवी व पीरटांड़ के प्रमुख सिकंदर हेम्ब्रम का कहना है कि आने वाले समय में यहां के युवकों को आइएएस व आइपीएस बनते देखने का सौभाग्य मिलेगा। कई प्रतिभाशाली युवक दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। एजाज हुसैन ने बताया कि ग्रामीण इलाके के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। जरूरत है उन्हें तराशने वाले की।
बदलाव के नाम पर युवाओं को बनाया था नक्सली
कभी पारसनाथ का इलाका भीषण गरीबी, सरकारी तंत्र की उपेक्षा का शिकार था। इसका फायदा उठाकर माओवादियों ने इसे अपना गढ़ बनाया। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर माओवादियों ने यहां के युवाओं को दिगभ्रमित कर नक्सली बनाया। आलम यह था कि 2018 में गिरिडीह के तत्कालीन एसपी अखिलेश बी. वारियर पारसनाथ में आयोजित जनता दरबार में लोगों से यह पूछने को विवश हो गए थे कि आखिर पूरे देश में पारसनाथ के ही माओवादी क्यों सक्रिय हैं। हालांकि, केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से स्थिति में बदलाव आया है।
बंदूक ने युवाओं ने शिक्षा को बनाया हथियार
हेमंत सोरेन की राज्य में सरकार बनने के बाद तो यहां के इलाके प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार नहीं रह गए। अब वहां विकास दिख रहा है। सभी इलाकों को सड़कों से जोड़ा गया। दूसरी ओर मोदी सरकार ने पारसनाथ पहाड़ और तलहटी पर जगह-जगह सीआरपीएफ कैंप खोलकर माओवादियों के मूवमेंट को रोक दिया। माओवादी अब पहले की तरह गांव में नहीं जा पा रहे हैं। युवा वर्ग भी यह समझ गया कि आगे बढ़ने का रास्ता शिक्षा है। शिक्षा को ही युवाओं ने हथियार बनाया।
अधिकारियों की लंबी लिस्ट
तोपचांची के तफ्सीर इकबाल 2008 बैच के हैदराबाद कैडर के आइपीएस हैं। फिलहाल वह पुलिस कमिश्नर रैंक के अधिकारी हैं। तोपचांची के ही नेरो के कपिल कुमार महतो बोकारो में बतौर बीडीओ सेवा दे रहे हैं। तोपचांची के गेंदनावाडीह के वैजनाथ प्रसाद पाकुड़ के डीएसपी हैं।
इसी तरह पीरटांड़ के भारती चलकरी की आदिवासी युवती नीलू टुडू बीडीओ बनी हैं। पीरटांड़ के ही नावाटांड़ निवासी विनोद कुमार सिमडेगा की डीईओ हैं। टुंडी के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र मनियाडीह के उत्तम तिवारी रांची सिंचाई विभाग में अभियंता हो गए हैं। दर्जनों युवक हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापित हुए हैं।
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