Ramban Disaster: टूट गए घर, उजड़ गया कारोबार... रामबन के गहरे जख्मों के लिए कम पड़ रहा राहत का मरहम
Ramban Cloud Brust रामबन में भयानक तबाही के बाद राहत कार्य जारी है लेकिन व्यापक क्षति के कारण प्रयास अपर्याप्त लग रहे हैं। बेघर हुए लोगों को सुरक्षित ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, उधमपुर। Ramban Cloud Brust: रामबन में त्रासदी के 40 घंटों से अधिक हो चुके हैं, लेकिन हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया। राहत और बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी हैं, प्रशासन, पुलिस, सेना, आपदा प्रबंधन दल, समाजसेवी संगठन सहित विभिन्न एजेंसियां पूरी ताकत से कोशिश कर रहे हैं। लेकिन त्रासदी के आकार के आगे यह सामूहिक संघर्ष भी किसी तूफान के सामने दिया जलाने जैसा प्रतीत हो रहा है।
सरकार से मदद की उम्मीद लगाए हैं लोग
जहां तूफान ने अपने निशान छोड़े हैं, वहां अब एक भयंकर सन्नाटा है। जिसे अपने घरों से बेघर हुए लोगों की सिसकियां और अपनों को खोने वालों की चीखें चीरती हुई हर दिल को भेद रही है। प्रभावितों के हालात और उनकी नम आंखें हर किसी को दिल को विचलित कर रही है।
टूटे मकानों और दुकानों को देख कर कुदरत को कोसते लोग सरकार और प्रशासन से मदद की टकटकी लगाए बैठे हैं। कहीं राहत सामग्री का इंतजार हो रहा है तो कहीं पर उजड़े घरों और कारोबार बसाने के लिए आर्थिक मदद के इंतजार में प्रभावित उम्मीद का दामन थामे बैठे हैं।
प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाया
प्रशासन ने स्थानीय और बाहरी राज्यों के सैलानियों व लोगों को निकाल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया है। गुजरात के 60 लोगों को सेना ने रामबन में आश्रय दे रखा है।
अन्य फंसे हुए यात्रियों को पास ही सरकारी इमारतों में शरण दी गई है। सड़क, बिजली, पानी जैसी बुरी तरह से प्रभावित बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मगर इसमें भी समय लग रहा है।
पुनर्वास सबसे बड़ी चुनौती
प्रशासन हो या विभिन्न विभाग कोई भी राहत कार्यों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा, लेकिन बडे पैमाने पर हुई तबाही राहत की रफ्तार को प्रभावित रही है। प्रभावितों के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने पुनर्वास की है। अस्थाई पुनर्वास तो स्कूलों और पंचायत घरों, सामुदायिक भवनों में हो गया है, मगर स्थायी पुनर्वास कैसे होगा यह चिंता सबको सता रही है।
कुछ लोग अपने घरों में भरे मलबे को निकाल कर अपनी जिंदगी की सामान्य बनाने में जुट गए हैं। वहीं कुछ युवाओं ने खुद की मदद से राशन, कपड़े और दवाइयां जुटाकर फंसे और प्रभावित लोगों तक पहुंचाई। सेना ने नाले और मलबे को पार कर बुजुर्गों को निकाला, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हुई तबाही के सामने ये प्रयास अधूरे महसूस होते हैं।
मदद में न प्रशासन और एजेंसियों की तरफ से कोई कमी है और न ही स्थानीय लोगों की तरफ से, मगर फिर भी सबके सामूहिक प्रयास ऊंट के मूंह में जीरा साबित हो रहे हैं। ऐसे में रामबन में हालात सामान्य होने में अभी काफी वक्त लगेगा और त्रासदी प्रभावित तो शायद ही अपने दर्द को कभी भूल पाएंगे।

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