Jammu: 3000 साल पुराने इस मंदिर में होती है खंडित शिव त्रिशूल की पूजा, जानें मंदिर से जुड़े और चमत्कारी रहस्य!
ऊधमपुर जिले के चिनैनी में स्थित सुद्धमहादेव मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ भगवान शिव ने शुद्धांत नामक राक्षस का वध किया था। राक्षस की प्रार्थना पर शिव ने उसका नाम मंदिर के साथ जोड़ दिया। मंदिर में एक प्राचीन त्रिशूल और पाप नाशनी बावली है। पास ही मानतलाई माता पार्वती की जन्मभूमि भी है।

जागरण संवाददाता, ऊधमपुर। जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर जिले की चिनैनी तहसील के सुद्धमहादेव स्थित शूलपाणिश्वर मंदिर न केवल प्रदेश का बल्कि दुनियाभर के प्राचीन शिव मंदिरों में एक माना जाता है। राक्षस के नाम से प्रसिद्ध महादेव के करीब 3000 वर्ष पुराने इस मंदिर का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है।
ऐसे पड़ा था मंदिर का नाम :
पंडित रमेश कुमार शर्मा ने बताया प्रचलित किंवदंती के अनुसार, माता पार्वती जब महादेव को पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं, तभी शुद्धांत नामक दानव वहां पहुंचा और उन्हें परेशान करने लगा। पार्वती की पुकार पर भगवान शिव प्रकट हुए और त्रिशूल से दानव का वध कर दिया।
बाद में जब शिव को ज्ञात हुआ कि शुद्धांत भी उनका परम भक्त था और वह द्वेषवश माता को हटाना चाहता था, तो शिव को पश्चाताप हुआ। महादेव ने उसे पुनर्जीवित करने और कोई वरदान मांगने को कहा।
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इस पर शुद्धांत ने माँगा कि उसका नाम महादेव के साथ अमर हो जाए। तभी से इस स्थान को "शुद्धमहादेव" कहा जाने लगा, जो कालांतर में सुद्धमहादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर के प्रांगण में स्थापित है महादेव का त्रिशूल :
जिस त्रिशूल से भगवान शिव ने शुद्धांत का वध किया था। उसे महादेव ने भागों में तोड़ कर यहीं छोड़ा दिया। यह आज भी मंदिर परिसर में खंडित अवस्था में स्थित है। लोग इसकी पूजा और दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर पाप नाशनी बावली है। जिसमें स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
मंदिर में प्राचीन शिवलिंग के अलावा नंदी और शिव परिवार की प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। मंदिर से मात्र 5 किलोमीटर दूर मानतलाई है। जिसे माता पार्वती की जन्मभूमि और भगवान शिव का विवाह स्थल भी कहा जाता है। यहां वह कुंड आज तलाब के रूप में विद्यमान है जिसके इर्दगिर्द शिव और मां पार्वती ने फेरे लिए थे। देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शनों को आते हैं।
सुद्धमहादेव मंदिर तीन हजार वर्ष पुराना सिद्ध स्थल है। जिसका नाम भगवान शिव के वरदान से शुद्धांत राक्षस के नाम से पड़ा है। पहले इसे शुद्धमहादेव कहते था, जो अब सुद्धमहादेव हो गया है। यहां आकर मन को शांति और आत्मबल की अनुभूति होती है। मान्यता है कि भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं। यहां दर्शन करने मात्र से पाप, संताप दूर हो जाते हैं। पंडित विजय शर्मा, पुजारी
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यह सारा क्षेत्र शिव की नगरी कहलता है। इलाके के लोग मानते हैं यहां भोलेनाथ साक्षात विराजमान हैं। स्थानीय लोग यहां नित्य दर्शनों को आते हैं, प्रदेश और देश भर के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन को आते हैं। हर वर्ष यहां तीन दिवसीय सुद्धमहादेव मेला भी लगता है। जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। मंदिर में रोज भक्तों के लिए लंगर लगता है। दीप शर्मा, भक्त एवं लंगर संचालक
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