जम्मू-कश्मीर में डिजिटलीकरण के जरिए उर्दू को 'जानबूझकर' मिटाया जा रहा: पीडीपी विधायक वाहीद पारा ने लगाया आरोप
पीडीपी नेता वाहीद पारा ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर आरोप लगाया कि वे भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण में उर्दू को जानबूझकर हटा रहे हैं जबकि यह भाषा पीढ़ियों से राजस्व अभिलेखों का हिस्सा रही है। इससे पहले महबूबा मुफ्ती ने कैट के उस फैसले पर निराशा जताई थी जिसमें नायब तहसीलदार के लिए उर्दू की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया था।

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। पीडीपी के वरिष्ठ नेता और विधायक वाहीद पारा ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि भूमि अभिलेखों के नए डिजिटलीकरण के जरिए उर्दू को 'जानबूझकर' हटाकर उसकी जगह अंग्रेजी को लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उर्दू एक ऐसी भाषा है जो पीढ़ियों से हमारे राजस्व अभिलेखों का अभिन्न अंग रही है।
नेता ने शनिवार को 'एक्स' पर एक पोस्ट में ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रधान उमर अब्दुल्ला जो प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, ने जम्मू-कश्मीर में जमीन के रिकॉर्ड को हमेशा के लिए डिजिटल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बार यह प्रक्रिया सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा में की जा रही है। उर्दू को पूरी तरह से बाहर रखा गया है, जो पीढ़ियों से हमारे राजस्व रिकॉर्ड का अभिन्न अंग रही है।
उन्होंने पोस्ट में पूछा, "जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में से एक उर्दू को नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार अपने नए डिजिटलीकरण प्रयासों में जानबूझकर क्यों मिटा रही है?"
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आपको बता दें कि इससे पूर्व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी गत बुधवार को बयान दिया था कि यह "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण" है कि न्यायपालिका "विभाजनकारी राजनीति से प्रभावित" प्रतीत होती है।
मुफ्ती की यह टिप्पणी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) द्वारा जम्मू-कश्मीर राजस्व (अधीनस्थ) सेवा भर्ती नियम, 2009 के संबंधित प्रावधानों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के बाद दी थी। जिसमें नायब तहसीलदार के पद के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में उर्दू के ज्ञान के साथ स्नातक होना पहले अनिवार्य रखा गया था।
उनका कहना था कि उर्दू जैसी एक मान्यता प्राप्त आधिकारिक भाषा को "अनुचित रूप से सांप्रदायिक" बनाया जा रहा है। पीडीपी अध्यक्ष ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में राजस्व रिकॉर्ड और प्रशासनिक कार्य उर्दू में ही रखे जाते हैं।
"यह तर्कसंगत है कि नायब तहसीलदार के पद के लिए आवेदकों के पास भाषा में बुनियादी दक्षता हो"। यह आवश्यकता पूरी तरह से प्रशासनिक दक्षता पर आधारित है, न कि विभाजनकारी भावना पैदा करने के किसी इरादे पर।
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कैट का यह आदेश नायब तहसीलदार भर्ती परीक्षा में उर्दू को अनिवार्य भाषा बनाने के एक पूर्व आदेश के बाद आया है, जिससे पिछले महीने जम्मू क्षेत्र में आक्रोश फैल गया था। भाजपा ने इस "भेदभावपूर्ण आदेश" को रद करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शनों और रैलियों का नेतृत्व भी किया था।
हुआ यह कि इस आदेश का हवाला देते हुए जम्मू और कश्मीर सेवा चयन बोर्ड (जेकेएसएसबी) ने गत मंगलवार को राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया को स्थगित कर दिया।
जेकेएसएसबी ने एक नोटिस के जरिए यह सूचित किया कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण जम्मू द्वारा पारित अंतरिम निर्देश के मद्देनजर... नायब तहसीलदार (9 जून को जारी) के पद के लिए आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया को अगली सूचना/आदेश तक स्थगित किया जाता है।"
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