किश्तवाड़ की वादियों को हिम तेंदुआ ने बनाया अपना स्थायी निवास, हाई एल्टीट्यूड नेशनल पार्क में कैद हुईं तस्वीरें
किश्तवाड़ की वादियों में हिम तेंदुए का स्थायी निवास मिला है जो उच्च हिमालयी जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। 2022 से 2025 तक चले अध्ययन में 20 वयस्क हिम तेंदुओं की मौजूदगी का पता चला है जिनमें शावक भी शामिल हैं। कैमरा ट्रैप में 16 अन्य स्तनपायी प्रजातियाँ भी मिली हैं। अध्ययन में मानव-वन्यजीव संघर्ष और जलवायु परिवर्तन को भी चुनौती बताया गया है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। दुर्लभ वन्य जीव प्राणियों में एक हिम तेेंदुआ ने किश्तवाड़ की वादियों को अपना स्थायी निवास बनाया है। वह इन वादियों में सिर्फ सर्दियों में नहीं रहता, बल्कि पूरा वर्ष विचरता है और प्रजनन भी कर रहा है।
हिम तेंदुआ के स्थायी निवास के कारण किश्तवाड़ और उसके साथ सटे क्षेत्र भारत के उच्च-ऊंचाई वाली जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण गढ़ के रूप में अपनी नयी पहचान बना रहा है।
हिम तेंदुआ की जम्मू कश्मीर में स्थिति और उसके व्यवहार का पता लगाने के लिए नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन और वन्य जीव संरक्षण विभाग, जम्मू कश्मीर द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2022 से वर्ष 2025 के शुरु तक किश्तवाड़ हाई एल्टीट्यूड नेशनल पार्क (KHANP) ने एक अध्ययन किया है।
यह भी पढ़ें- कश्मीर में भाजपा को मजबूत बनाने का अशोक काैल ने दिया मंत्र, बोले- लोगों का विश्वास जीत घाटी में पार्टी को करें मजबूत
इस दौरान पाडर, वाडवन, दच्छन समेत किश्तवाड़ के विभिन्न ऊंचाई वाले इलाकों में तीन हजार से अधिक कैमरा ट्रैप लगाए गए। इस पूरे क्षेत्र का गहन शोध किया गया, हिम तेंदुआ के हमले की दृष्टि से संवेदनशील और हिम तेंदुआ के शिकार की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों का मानचित्रण भी किया गया। इसके अलावा इसमें जनभागीदारी को भी सुनिश्चित बनाया गया।
20 वयस्क हिम तेंदुओं की उपस्थिति की संभावना
एनसीएफ के परियोजना समन्वयक डॉ शाहिद हमीद ने बताया कि रायल एनफील्ड सोशल मिशन द्वारा समर्थित इस परियोजना में सर्वे के लिए अधिकतम-संभावना-आधारित स्थानिक रूप से स्पष्ट कैप्चर-रीकैप्चर (एसईसीआर) पद्धति का उपयोग किया गया। यह पद्धति दुर्लभ मांसाहारी वन्यप्राणियों की आबादी का अनुमान लगाने के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने बताया कि अध्ययन में पता चला है कि इस क्षेत्र में 20 वयस्क हिम तेंदुओं की उपस्थिति है। यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि 12 हिम तेंदुआ की कैमरा ट्रैप से भी पुष्टि हुई है। उन्होंने बताया इस क्षेत्र में एक मादा हिम तेंदुआ की उपस्थिति की भी पुष्टि हुई है जो अपने शावकों के साथ है।
यह भी पढ़ें- डोगरी रामलीला, परंपरा से आधुनिकता की ओर एक नया सफर; पढ़ें जम्मू की रामलीला का गौरवशाली इतिहास
क्षेत्र में हिम तेंदुआ प्रजनन भी कर रहा है
इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में हिम तेंदुआ प्रजनन भी कर रहा है। उन्होंने बताया कि किश्तवाड़ उच्च क्षेत्रीय राष्ट्रीय उद्यान केएचएएनपी के कियार में तीन, पाडर में पांच हिम तेंदुए स्थायी तौर पर अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। क्षेत्रफल के आधार पर अगर हिम तेदुआ की आबादी घनत्व अुनमान लगाया जाता है तो हम यह कह सकते हैं कि वर्ष 2024 में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में 0.32 से 0.49 है।
पहली बार, जम्मू संभाग के पाडर और कश्मीर के जोजिला में सर्दियों में किए गए सर्वेक्षणों से पुष्टि हुई है कि हिम तेंदुए साल भर इन इलाकों में मौजूद रहते हैं, जो स्थिर आवासों और स्थायी आबादी का संकेत देते हैं।
कैमरा ट्रैप ने 16 अन्य स्तनपायी प्रजातियां भी रिकार्ड
डॉ शाहिद हमीद के अनुसार, इस अध्ययन से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर हिम तेंदुआ का एक गढ़ अथवा प्रमुख आश्रय स्थल है। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन के दौरान केएचएएनपी में कैमरा ट्रैप ने 16 अन्य स्तनपायी प्रजातियों को भी रिकार्ड किया, जिनमें हिमालयी भूरा भालू, हिमालयी भेड़िया, कस्तूरी मृग, एशियाई आइबेक्स, स्टोन मार्टन, पिका, लाल लोमड़ी, और भूरा भेड़िया शामिल हैं।
यह भी पढ़ें- डोगरी रामलीला, परंपरा से आधुनिकता की ओर एक नया सफर; पढ़ें जम्मू की रामलीला का गौरवशाली इतिहास
पाडर में सामान्य तेंदुआ भी मिला है। कुछ स्थानों पर, हिम तेंदुए और सामान्य तेंदुए एक ही स्थान पर पाए गए, जिससे संभावित अतिव्यापन का संकेत मिलता है और प्रजातियों की परस्पर क्रियाओं के बारे में नए पारिस्थितिक प्रश्न उठते हैं।
वन्य प्राणियों में लाल लोमड़ियों ज्यादा नजर आई
अध्ययन के सापेक्ष प्रचुरता सूचकांक (आरएआई- रिलेटिव एबनडेंस इंडेक्स) से पता चला कि मांसाहारी वन्य प्राणियों में लाल लोमड़ियों ज्यादा नजर आई हैं जबकि आइबेक्स और पिका जैसी वन्य प्राणियों को वर्ष के अलग अलग मौसम में अलग अलग जगहों पर कम-ज्यादा देखा गया है। व्यवहार विश्लेषणों से पता चला कि जिन इलाकों में लोगों की आवाजाही ज्यादा है, वहां वन्य जीव रात के समय में ज्यादा सक्रिय हैं। इसे आप उनकी सह-अस्तित्व की रणनीति कह सकते हैं।
मानव- वन्य जीव टकराव के खतरे का आकलन
पाडर, वारवन, दच्च्छन और मढवा के 320 से ज़्यादा घरों का एक सर्वे किया गया है। इन घरों में हिम तेंदुआ व अन्य वन्य प्राणाियों ने हमला किया है और इसके आधार पर पशुधन पर हमले और फ़सलों को नुकसान पहुंचाने को सामुदायिक दृष्टिकोण को आकार देने वाली प्रमुख चुनौतियों के रूप में पहचाना गया है। आजीविका के नुकसान के कारण कभी-कभी वन्यजीवों को मारा गया है। इससे मानव-वन्य जीवो के बीच सघंर्ष को टालने, उसे समाप्त करने की रणनीति को तैयार कर,उसे कार्यान्वित करने की जरुरत है।
यह भी पढ़ें- एलजी मनोज सिन्हा बोले- सब चलता है की मानसिकता से बाहर निकल पुराने पाठ्यक्रम में क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत
जलवायु परिवर्तन भी है चुनौती
अध्ययन में जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौती पर भी प्रकाश डाला गया है, जहां वृहत्तर हिमालय में ग्लेशियर वैश्विक औसत दर से दोगुनी गति से पिघल रहे हैं। इससे वन्य जीवों विशेषकर हिम तेंदुओं के आवास के नुकसान, शिकार की गतिशीलता में बदलाव का ख़तरा पैदा होता है।
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जनभागीदारी को भी किया सुनिश्चित
डा शाहिद हमीद ने बताया कि इस परियोजना में हमने हिम तेंदुआ व अन्य वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जनभागीदारी को भी शामिल किया। इसके तहत आयोजित छह कार्यशालाओं में 1,200 से ज़्यादा प्रतिभागियों ने भाग लिया । इनमें 480 स्कूली छात्र, 500 स्नातक, 30 स्नातकोत्तर और 30 अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारी शामिल थे। प्रशिक्षण सत्रों में जैव विविधता जागरूकता, पारिस्थितिक क्षेत्र तकनीकें, कैमरा ट्रैप का उपयोग और मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए मॉक ड्रिल शामिल थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।