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    'संसद शोर मचाने के लिए नहीं है...', मानसून सत्र में कांग्रेस सांसदों के रवैये पर क्यों भड़के गुलाम नबी आजाद?

    Updated: Thu, 31 Jul 2025 03:15 PM (IST)

    गुलाम नबी आजाद ने श्रीनगर में कहा कि सच्चा नेतृत्व तर्कपूर्ण भाषण से बनता है व्यवधान से नहीं। उन्होंने संसद के संचालन और जम्मू-कश्मीर में राजनीति के बदलते स्वरूप पर विचार व्यक्त किए। आजाद ने सदन की कार्यवाही में बाधा डालने को सरकार का विरोध करने का सही तरीका नहीं बताया। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं में हमेशा मंत्री बने रहने की प्रवृत्ति होती है।

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    आजाद ने सुरक्षा और मानवाधिकारों पर भी बात की।

    डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (DPAP)के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने वीरवार को कहा कि सच्चा नेतृत्व तर्कपूर्ण भाषण से बनता है, न कि व्यवधान से।

    आजाद श्रीनगर में आयोजित गांधी ग्लोबल फैमिली के एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद पत्रकारों से बोल रहे थे। उन्होंने संसद के संचालन, राजनीतिक जिम्मेदारी और जम्मू-कश्मीर में राजनीति के बदलते स्वरूप पर अपने विचार साझा किए।

    आजाद ने कहा, "जब मैं युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बना, तब युवा कांग्रेस के लगभग 40-50 सदस्य चुनाव जीतकर आए थे। हमें संसद में एक ब्लॉक दिया गया था। जब भी विपक्षी नेता बोलने के लिए खड़े होते, हम चुप रहकर सुनते थे।"

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    उन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, 'तुम युवा हो और यहां शोर मचाने नहीं आए हो। तुम अच्छी तैयारी करके संसद में बोलने आए हो।' यह सलाह तब से मेरे साथ है।"

    आजाद ने कहा कि सदन की कार्यवाही में बाधा डालना सरकार का विरोध करने का जिम्मेदाराना तरीका नहीं है। "अगर आप सदन नहीं चलने देना चाहते हो तो चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? आप घर पर बैठकर विरोध कर सकते हैं। संसद राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, आर्थिक और सार्वजनिक मुद्दों को उठाने के लिए है, शोर मचाने के लिए नहीं।"

    उन्होंने कहा कि बहस के दौरान बार-बार वॉकआउट करने से सत्तारूढ़ पार्टी को ही मदद मिलती है। "अगर विपक्ष सदन से बाहर जाता रहता है, तो वे सरकार को जवाबदेह न ठहराकर उसका समर्थन कर रहे हैं।"

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    आजाद ने इस दौरान कुछ नेताओं की मानसिकता पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि वरिष्ठ नेताओं में हमेशा मंत्री बने रहने की प्रवृत्ति होती है। वे किसी न किसी तरह व्यवस्था में फिर से शामिल होने की कोशिश करते रहते हैं। पिछले कुछ महीनों में कई नए डीडीसी और बीडीसी सदस्य बड़ी संख्या में राजनीति में शामिल हुए हैं।

    अपने राजनीतिक भविष्य पर बोलते हुए आजाद ने कहा, "मुझे अभी तय करना है कि मैं चुनाव लड़ूंगा या नहीं। कश्मीर में राजनीति, मुद्दों से ज़्यादा भावनाओं पर आधारित है। मैं हर चुनाव में सिर्फ एक ही भाषण देता हूं, चाहे वह जम्मू हो, दिल्ली हो या श्रीनगर। लोग चाहते हैं कि मैं कई जगहों पर अलग-अलग भाषण दूं, लेकिन यह मेरे बस में नहीं है।"

    सुरक्षा और कानून प्रवर्तन के मुद्दे पर आज़ाद ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान सुरक्षाबलों को एक महत्वपूर्ण शर्त के साथ पूरी आज़ादी थी। "ऑपरेशन चलते रहने चाहिए लेकिन मानवाधिकारों का उल्लंघन या फर्जी मुठभेड़ नहीं होनी चाहिए।

    अपने कार्याकाल के दौरान घटित घटना का हवाला देते हुए आजाद ने कहा कि एक बार जब तीन नागरिकों को गलत तरीके से मार उन्हें चरमपंथी बता दिया गया, तो मैंने खुद मामले की जांच की और उसका पर्दाफ़ाश किया। उसके बाद, ऐसी घटनाएं बंद हो गईं।"

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    आज़ाद ने कहा, "अगर प्रधानमंत्री अमेरिका के उपराष्ट्रपति से बात कर रहे हैं, तो यह अपने आप में एक कड़ा संदेश है। उन पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है।"