Kashmir News : जामिया मस्जिद नहीं पहुंच पाए मीरवाइज फारूक, प्रशासन को थी इस बात की आशंका, घर में रखा नजर बंद
कश्मीर के प्रमुख धर्मगुरु मीरवाइज उमर फारूक को ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में नमाज-ए-जुम्मा अदा करने से रोका गया। प्रशासन ने उन्हें नजरबंद रखा हालाँकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार यह कदम एहतियात के तौर पर उठाया गया है। मीरवाइज ने अपनी नजरबंदी की जानकारी साझा करते हुए कहा कि उन्हें 13 जुलाई 1931 के शहीदों का जिक्र करने से रोकने के लिए ऐसा किया गया।

राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। कश्मीर प्रमुख धर्मगुरू और आल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस व अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक शुक्रवार को न ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में नमाज-ए-जुम्मा अदा कर पाए और न खुतबा दे पाए। वह कथित तौर पर घर में नजरबंद रहे। उन्होंने दावा किया है कि प्रशासन ने उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया और उन्हें नजरबंद रखा गया है।
अलबत्ता, जिला प्रशासन श्रीनगर या पुलिस ने उनकी नजरबंदी की अधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं की है। अलबत्ता, संबधित सूत्रों के अनुसार, प्रशासन ने उन्हें एहतियात के तौर पर नजरबंद रखा है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ग्रीष्कालीन राजधानी के डाउन टाउन नौहट्टा स्थित जामिया मस्जिद के प्रमुख इमाम भी हैं।
पांच अगस्त 2019 से पूर्व प्रत्येक शुक्रवार को जामिया मस्जिद में नमाज के बाद भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन व आतंकियों के पोस्टर और पाकिस्तानी ध्वज लहराया जाना सामान्य बात थी।
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मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के शुक्रवार को होने वाले खुतबे पर सभी की नजर रहती थी,उससे लोगों को कश्मीर के संदर्भ में अलगाववादी राजनीति के रुख का अंदाजा होता था। अलबत्ता, अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद जामिया मस्जिद और उसके आस पास के इलाकों का भी माहौल बदल गया है। अब पथराव और भारत विरोधी नारेबाजी नहीं होती।
मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने आज अपने एक्स हैंडल पर अपनी नजरबंदी की जानकारी साझा करते हुए लिखा कि उन्हें नज़रबंद कर दिया गया है और जामिया मस्जिद में नमाज़ अदा करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।, क्योंकि मेरे शुक्रवार के ख़ुत्बे में 13 जुलाई 1931 के शहीदों का ज़िक्र हो जाएगा।
आपको बता दें कि 13 जुलाई 1931 को कश्मीर में भड़की हिंसा के दौरान महाराजा हरि सिंह के सिपाहियों की गोली से 22 लोग मारे गए थे। इसके बाद कश्मीर में महाराजा के खिलाफ विद्रोह और तेज होगया जिसे तत्कालीन मुस्लिम कान्फ्रेंस जो बाद में नेशनल कान्फ्रेंस बनी थी, ने हवा दी।
आजादी के बाद नेशनल कान्फ्रेंस से 13 जुलाई 1931 को मारे गए लोगों को कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली के लिए जान देने वाला बलिदानी करार दे दिया और उनके मजार पर हर वर्ष एक सरकारी समारोह का आयोजन किया जाने लगा। इसके साथ ही 13 जुलाई 1931 को अवकाश भी रहता था जो अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद बंद हो गया।
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दैनिक जागरण के साथ फोन पर एक संक्षिप्त बातचीत में हुर्रियत चेयरमैन ने दावा किया कि प्रशासन को डर है कि मैं आज शुक्रवार को नमाज ए जुम्मा से पूर्व में अपने खुतबे में 13 जुलाई 1931 को मारे गए लोगों का जिक्र करुंगा।
लेकिन हम अपने शहीदो को कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि वह कश्मीर में राजनीतिक संगठनों और राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध हटाए और लोगों को "13 जुलाई के शहीदों को शांतिपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करने" की अनुमति प्रदानकरे।
हालांकि प्रशासन ने मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की नजरबंदी पर पूरी तरह से मौन धारण कर रखा है,लेकिन संबधित सूत्रो के अनुसार मीरवाइज मौलवी उमर फारूक को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एहतियात के तौर पर आज जामिया मस्जिद की तरफ जाने से रोका गया है। वह आतंकियों के निशाने पर हैं।
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