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    मशीन से बने कश्मीरी कालीन को हाथ से बुना बताकर 2.5 लाख में बेचा, विक्रेता ब्लैकलिस्ट, मामला भी दर्ज

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 04:58 PM (IST)

    कश्मीर में हस्तशिल्प उद्योग की साख को खतरे में डालने वाले व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। हस्तशिल्प एवं हथकरघा निदेशालय कश्मीर ने द कश्मीर आर्ट बाजार को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। एक कालीन विक्रेता ने पर्यटक को मशीन से बने कालीन को कश्मीरी जीआई-प्रमाणित बताकर बेचा था। जांच में क्यूआर कोड नकली पाया गया। निदेशक मुसर्रत इस्लाम ने विक्रेता के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया।

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    ऐसे कृत्य कश्मीरी शिल्प की जीआई-प्रमाणित पहचान को कमजोर करते हैं।

    डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध हस्तशिल्प उद्योग की विश्वसनीयता और महत्व को खतरे में डालने वाले व्यापारियों के खिलाफ शिकंजा कसा है। हस्तशिल्प एवं हथकरघा निदेशालय कश्मीर ने यह कदम कश्मीर में धोखाधड़ी का एक मामला सामने आने के बाद अपनाया है। विभाग ने टंगमर्ग स्थित 'द कश्मीर आर्ट बाजार' को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है। यही नहीं उसका पंजीकरण रद कर दिया और पुलिस ने मामला भी दर्ज किया है।

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    कालीन विक्रता ने एक पर्यटक को 2.55 लाख में मशीन से बने कालीन को हाथ से बुने हुए कश्मीरी जीआई-प्रमाणित उत्पाद बताकर बेचने का दोषी पाया गया है। निदेशक हस्तशिल्प एवं हथकरघा मुस्सरत-उल-इस्लाम द्वारा जारी आदेश के अनुसार कालीन विक्रेता ने खरीदार को यह विश्वास दिलाने के लिए कि कालीन एक जीआई-प्रमाणित शिल्प है, भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) द्वारा जारी आधिकारिक लेबल जैसा एक नकली क्यूआर कोड इस्तेमाल किया।

    उन्होंने विक्रेता के खिलाफ एक औपचारिक आपराधिक शिकायत दर्ज करने का भी आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि जीआई अधिनियम तथा भारतीय न्याय संहिता के तहत यह एक अपराध है। उन्होंने पुलिस प्रशासन से आगे की कानूनी कार्यवाही की सिफारिश भी की।

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    यह मामला तब प्रकाश में आया जब एक पर्यटक ने आईआईसीटी से शिकायत की कि उसने कोंचीपोरा, टंगमर्ग स्थित द कश्मीर आर्ट बाजार से एक कालीन के लिए पहले 25,000 का अग्रिम भुगतान किया था, जिसका कुल लेनदेन 2.55 लाख था। शोरूम ने कथित तौर पर आईआईसीटी प्रमाणन का दावा करते हुए एक प्रमाणपत्र और क्यूआर कोड उसे दे दिया।

    वेरीफिकेशन करने पर आईआईसीटी ने पुष्टि की कि क्यूआर लेबल जाली है और उनके संस्थान द्वारा जारी नहीं किया गया था। मामला विभाग के गुणवत्ता नियंत्रण प्रभाग को भेजा। भौतिक निरीक्षण करने के बाद कालीन जब्त कर लिया गया और मालिक को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

    अपने जवाब में मालिक ने धोखाधड़ी से इनकार किया और दावा किया कि ग्राहक ने खरीदारी से इनकार कर दिया क्योंकि उसे बताया गया था कि कालीन जीआई-प्रमाणित नहीं है। हालांकि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत फोटोग्राफिक साक्ष्य और आईआईसीटी के निष्कर्षों से इसका खंडन हुआ। जिससे पुष्टि हुई कि नकली लेबल मशीन-निर्मित कालीन पर चिपकाया गया था।

    विभाग ने जवाब को "पूरी तरह से भ्रामक और असंतोषजनक" करार दिया और निष्कर्ष निकाला कि यह कृत्य कश्मीर की जीआई शिल्प प्रतिष्ठा का फायदा उठाकर खरीदार को धोखा देने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था।

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    निदेशक ने आदेश दिया कि विक्रेता ने जानबूझकर आईआईसीटी के मूल जीआई लेबल जैसा एक नकली क्यूआर लेबल बनाया और संबंधित पर्यटक को धोखा देने के लिए उसे मशीन-निर्मित कालीन पर चिपका दिया।

    जम्मू-कश्मीर पर्यटन व्यापार पंजीकरण अधिनियम, 1978 की धारा 6 और 7 के उल्लंघन का हवाला देते हुए निदेशालय ने विक्रेता को तत्काल ब्लैकलिस्ट में डालने और उसका पंजीकरण रद करने का आदेश दिया।

    इसी के साथ उन्होंने कश्मीर आर्ट बाजार के मालिक के खिलाफ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पर्यटन प्रवर्तन, टीआरसी के कार्यालय में एक औपचारिक शिकायत दर्ज करने को भी कहा ताकि आईआईसीटी के नाम से कथित तौर पर एक नकली क्यूआर कोड चिपकाने के लिए उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके।

    उन्होंने उस नेटवर्क की जांच करने का अनुरोध भी किया जिससे यह पता चल सके कि मशीन से बनी वस्तुओं पर नकली जीआई क्यूआर लेबल चिपकाने का यह रैकेट घाटी में कहां तक फैला हुआ है।

    आदेश में आगे कहा गया है कि जब विक्रेता को धोखाधड़ी का पता चला तो उसने इस गड़बड़ी को छिपाने के लिए कालीन से नकली क्यूआर लेबल हटाने का प्रयास किया। हालांकि शिकायतकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्य और आईआईसीटी के विशेषज्ञ सत्यापन ने गड़बड़ी की पुष्टि की।

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    विभाग ने कहा कि इस तरह के कृत्य पर्यटकों में कश्मीरी उत्पादन के प्रति विश्वास को कम करेंगे। कश्मीरी शिल्प की जीआई-प्रमाणित पहचान को सीधे तौर पर कमजोर कर दूसरे हजारों कारीगरों और बुनकरों की आजीविका को खतरा पहुंचाएगा।