'कश्मीर को सेना के हवाले कर दो...', शोपियां विधायक शब्बीर अहमद कुल्ले ने दिया बड़ा बयान
शोपियां के विधायक शब्बीर अहमद कुल्ले ने कश्मीर को सेना के हवाले करने की मांग की है। उन्होंने नागरिक प्रशासन पर जनता की समस्याओं के प्रति उदासीन रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राजमार्ग के बंद होने से कश्मीर में संकट है लेकिन प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। विधायक ने कहा कि सेना बिना भेदभाव के बेहतर काम करेगी।

राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। शोपियां के विधायक शब्बीर अहमद कुल्ले ने के मौजूदा हालात का हवाला देते हुए कश्मीर को सेना के हवाले करने की मांग की है।
उन्होंने नागरिक प्रशासन पर आम जनता की समस्याओं के प्रति उदासीन रवैया बरतने का आरोप लगाते हुए कहा कि श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने से कश्मीर में एक गंभीर संकट पैदा हुआ है, लेकिन नागरिक प्रशासन इसे हल करने के बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
प्रशासनिक रवैये पर निराशा व्यक्त करते हुए, विधायक ने कहा कि अगर सेना सीधे तौर पर मामलों का प्रबंधन करे, तो लोगों के हितों की बेहतर पूर्ति होगी, क्योंकि वह बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के काम करती है।
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उन्होंने कहा कि जम्मू में तवी नदी पर एक पुल क्षतिग्रस्त हो गया और सेना ने 12 घंटे के भीतर एक पुल बना दिया। जब कुछ करने की इच्छा हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। अगर आप कश्मीर चलाना चाहते हैं, तो कश्मीर को सेना के हवाले कर दीजिए, क्योंकि तब कोई राजनीति नहीं होगी।
आपको बता दें कि श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग, जो घाटी का देश के बाकी हिस्सों से हर मौसम में जुड़ा रहने वाला एकमात्र सड़क मार्ग है, खराब मौसम के कारण भूस्खलन और पत्थर गिरने के कारण बार-बार बंद हो रहा है।
लंबे समय तक बाधित रहने के कारण फलों से लदे ट्रक कई दिनों तक फंसे रहे, जिससे बागवानों और व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ। जरुरी वस्तुओं का भी अभाव हुआ है,जिससे लोगों में गुस्सा पैदा हो रहा है।
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हालांकि शब्बीर अहमद कूल्ले ने नेशनल कान्फ्रेंस या राज्यपाल प्रशासन का नाम नहीं लिया है,लेकिन उन्होने दोनों को ही निशाना बनाया है। उन्होंने कहा कि किसानों, व्यापारियों और आम यात्रियों को हो रही लगातार मुश्किलें बता रही हैं कि प्रशासन उदासीन बना हुआ है। उसमें जनता की भलाई के लिए काम करने क इच्छाशक्ति नहीं है।
लोग परेशान हैं, कारोबार चौपट हो रहे हैं, और फिर भी कोई जवाबदेही नहीं है। यह विरोधाभास तब साफ़ दिखाई देता है जब हम देखते हैं कि कैसे सेना कुछ ही घंटों में काम निपटा लेती है जबकि हमारे अधिकारी परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं।
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