लद्दाख में तेज हुई राज्य दर्जे-छठी अनुसूची की मांग, 9 अगस्त को तीन दिवसीय भूख हड़ताल पर जाएंगे कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस
लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची लागू करने की मांग फिर से तेज हो गई है। कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने 9 अगस्त से तीन दिवसीय भूख हड़ताल पर जाने की घोषणा की है। केडीए के नेता असगर अली करबलाई ने कहा कि इस मुद्दे पर बातचीत में देरी से लोग निराश हैं।

डिजिटल डेस्क, लेह। लद्दाख में राज्य दर्जें और छठी अनुसूची लागू करने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। उपराज्यपाल कविन्द्र गुप्ता के पद संभालते ही कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने अपनी लंबे समय से चली आ रही इन मांगों को लेकर 9 अगस्त से तीन दिवसीय भूख हड़ताल पर जाने की घोषणा की है।
केडीए के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक असगर अली करबलाई ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि इस मुद्दे पर सार्थक बातचीत शुरू होने में लगातार हो रही देरी से लद्दाख के लोग लगातार निराश होते जा रहे हैं।
करबलाई ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में नई दिल्ली से कई उच्च पदस्थ अधिकारी और राजनीतिक नेता लद्दाख का दौरा कर चुके हैं लेकिन उनमें से किसी ने भी छठी अनुसूची या राज्य के दर्जे की मांग पर बात नहीं की है। केंद्र सरकार की यह चुप्पी हमारे लोगों को स्वीकार नहीं है।
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उन्होंने आगे घोषणा की कि कारगिल के लोग 9 अगस्त को कारगिल चौक पर इकट्ठा होंगे और अपनी मांगों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए तीन दिवसीय भूख हड़ताल शुरू करेंगे।
असगर अली ने जोर देकर कहा कि हम अब इस देरी को और बर्दाश्त नहीं करेंगे। लद्दाख के लोगों को दिए गए आश्वासनों पर अमल होना चाहिए।
आपको बता दें कि कारगिल के विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक समूहों का एक संयुक्त मंच, केडीए, लद्दाख की भूमि, संस्कृति और रोजगार के अधिकारों की रक्षा के लिए छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों की लगातार मांग करता रहा है।
उन्होंने लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा भी मांगा है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों के तौर पर विभाजित कर दिया गया था।
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करबलाई ने भारत सरकार से लद्दाख के लोगों की आकांक्षाओं को गंभीरता से लेने और बिना किसी देरी के औपचारिक बातचीत शुरू करने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इस दौरान भी उनकी मांगों पर बातचीत नहीं हुई तो उन्हें मजबूर अपने आंदोलन का रूख बदला पड़ेगा।
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