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    जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा, फिलहाल पद पर बने रहेंगे

    Updated: Wed, 06 Aug 2025 01:39 PM (IST)

    उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू कश्मीर में अपने कार्यकाल के पांच वर्ष पूरे कर लिए हैं। उनके भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन उपराज्यपाल के लिए कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होने से उनके पद पर बने रहने की संभावना है। संविधान के अनुसार उपराज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करते हैं और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में भी कार्यकाल की कोई निश्चित अवधि नहीं है।

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    विशेषज्ञों का मानना है कि वे अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को जारी रखेंगे जब तक कोई अन्य निर्णय नहीं लिया जाता।

    राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को अपना मौजूदा कार्यकाल संभाले बुधवार को पूरे पांच वर्ष बीत जाएंगे।

    तमाम अटकलों के बीच उनके आगे भी जम्मू कश्मीर का उपराज्यपाल बने रहने की संभावना है, क्योंकि राज्यपाल के विपरीत उपराज्यपाल के कार्यकाल के लिए कोई निर्धारित समय सीमा तय नहीं है और यह राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।

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    आपको बता दें कि 31 अक्टूबर 2019 को अस्तित्व में आए केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश के पहले उपराज्यपाल जीसी मुर्मु थे जो 10 माह तक राजभवन में रहे।

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    उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को लेकर विगत एक माह से लगातार स्थानीय ही नहीं नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों में भी चर्चा चल रही थी कि उन्हें केंद्र सरकार में कोई बड़ी भूमिका दी जा सकती है या फिर उन्हें भाजपा में कोई बड़ा संगठनात्मक पद मिल सकता है।

    इसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा ने भी जोर पकड़ा। अलबत्ता, अभी तक ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है जिसके आधार पर कहा जाए कि वह जम्मू कश्मीर छोड़कर जा रहे हैं।

    उपराज्यपाल पद के लिए कोई निश्चित कार्यकाल नहीं

    संवैधानिक और कानूनी प्राविधान भी यही बतलाते हैं कि जम्मू-कश्मीर सहित किसी भी केंद्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल के पद के लिए कोई निश्चित कार्यकाल नहीं है।कानूनी विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्य के राज्यपाल के लिए पांच साल का कार्यकाल निर्धारित है - राष्ट्रपति की इच्छा पर - लेकिन उपराज्यपाल के लिए ऐसा कोई कार्यकाल परिभाषित नहीं है। इसके साथ ही केंद्र शासित प्रदेशों के संदर्भ में अनुच्छेद 239 स्पष्ट करता है कि एक प्रशासक (उपराज्यपाल सहित) राष्ट्रपति की इच्छा पर, बिना किसी निर्दिष्ट अवधि के, पद पर बने रहेंगे।

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    7 अगस्त 2020 में संभाला था कार्यभार

    जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019, जो 9 अगस्त, 2019 को लागू हुआ, भी उपराज्यपाल के कार्यकाल के बारे में कुछ नहीं कहता। इसमें केवल इतना कहा गया है कि राष्ट्रपति उपराज्यपाल को उचित अवधि के लिए नियुक्त करेंगे। इसके अलावा 6 अगस्त, 2020 को मनोज सिन्हा की नियुक्ति संबंधी मूल राष्ट्रपति आदेश में किसी कार्यकाल सीमा का उल्लेख किए बिना उनकी नियुक्ति का उल्लेख किया गया था। मनोज सिन्हा ने सात अगस्त, 2020 को आधिकारिक रूप से जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से वह इस पद पर आसीन होने वाले पहले राजनीतिक व्यक्ति हैं। उनके पूर्ववर्ती जीसी मुर्मु आइपीएस कैडर के पुलिस अधिकारी थे।

    तीन बार सांसद रह चुके हैं मनोज सिन्हा

    एक अनुभवी नेता, सिन्हा ने तीन बार सांसद रह चुके हैं। वह केंद्र में रेल राज्य मंत्री और बाद में संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सहित प्रमुख विभागों का कार्यभार संभाल चुके हैं। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 53 के तहत, उपराज्यपाल के पास महत्वपूर्ण प्रशासनिक अधिकार हैं। उनके पास अखिल भारतीय सेवाएं ,और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और गृह विभाग से संबधित पूर्ण अधिकार हैं। उनके निर्णयों का आसानी से अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

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    राजनीति में कुछ भी संभव नहीं होता: संत कुमार

    जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार संत कुमार शर्मा ने कहा कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। इसलिए यह कहना कि मनोज सिन्हा हमेशा इस पद पर बने रहेंगे, मुझे सही नहीं लगता,लेकिन यह भी साफ है कि उनके कार्यकाल की समय सीमा तय नहीं है। अगर पर इस्तीफा देते हैंं तो ही हट सकते हैं या राष्ट्रपति उनके हटाना चाहें।इसलिए मेरा मानना है कि मनोज सिन्हा संवैधानिक स्पष्टता के कारण अपने पद पर बने रहते हुएजम्मू-कश्मीर में अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को तब तक जारी रखेंगे, जब तक कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा कोई अन्य निर्णय नहीं लिया जाता।