पहली बार मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने संसद में कश्मीर के सांसदों की एकजुटता का किया स्वागत
मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने संसद में कश्मीरी सांसदों द्वारा कश्मीर मुद्दे को उठाने की सराहना की जिसे कश्मीर की राजनीति में बदलाव का संकेत माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि युद्ध और हिंसा से मुद्दे हल नहीं हो सकते संवाद ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने दिल्ली से आग्रह किया कि वह कश्मीरियों की बात सुनें और सार्थक बातचीत करें।

नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। अगर वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्र सरकार कश्मीर से दिल और दिल्ली की दूरी कम करना चाहती है तो उसे इस पर गंभीरता से काम करना होगा।
यह बीते 35 वर्ष में पहला अवसर है जब जामिया मस्जिद के मिंबर पर बैठ आल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस के चेयरमैन और कश्मीर के प्रमुख मजहबी नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने संसद में आपरेशन सिंदूर पर हुई चर्चा में कश्मीर के तीन सांसदों मियां अल्ताफ लारवी, आगा सैयद रुहुल्ला व इंजीनियर रशीद के विचारों को जिस तरह से सराहा है, उसे उनकी व कश्मीर की राजनीतिक हवा में बदलाव का प्रतीक भी माना जा रहा है।
वह अपने भाषणों में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का भी उल्लेख करते आए हैं, लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने बात की है, उससे सभी हैरान भी हैं। बता दें कि पांच अगस्त 2019 से पहले जामिया मस्जिद में जब भी मीरवाइज भाषण देते थे, उससे कश्मीर के संदर्भ में अलगाववादी राजनीति के अगले कदम का अंदाजा लगाया जाता रहा है।
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गत शुक्रवार को नमाज-ए-जुमे से पूर्व अपने खुतबे में मीरवाइज ने कहा कि नेकां के दो सांसद मियां अल्ताफ हुसैन और आगा सैयद रुहुल्ला के अलावा निर्दलीय सांसद इंजीनियर रशीद ने जिस तरह से उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पीड़ा और उपेक्षा को अपनी आवाज देकर संसद में उठाया है, वह सराहनीय है।
ऐसा ही होना चाहिए। मीरवाइज ने संसद में आपरेशन सिंदूर और भारत-पाकिस्तान के विवादों पर बहस का हवाला देते हुए कहा कि वहां ज्यादातर सांसदों ने युद्ध की मानवीय कीमत और इस संदर्भ में जम्मू-कश्मीर की अहमयित को नजरअंदाज कर दिया। यह देखकर अच्छा लगा कि कुछ लोग विपक्ष में जिनमें कश्मीर के तीन सांसद भी हैं जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों पर जोश से बोल रहे हैं।
युद्ध, हिंसा और बल प्रयोग मुद्दे हल नहीं कर सकते
मीरवाइज ने नई दिल्ली से आग्रह किया कि अगर "दिलों की दूरी" को पाटने का इरादा सच्चा है, तो वह उनकी बात सुने। "अगर दिल्ली अलगाव की भावना को दूर करना चाहती है तो उसे दिखावे से आगे बढ़कर सार्थक बातचीत करनी होगी। युद्ध, हिंसा और बल प्रयोग मुद्दों को हल नहीं कर सकते या उपमहाद्वीप में शांति नहीं ला सकते। सभी स्तरों पर संवाद न केवल एक यथार्थवादी मार्ग है, बल्कि यह अधिक मानवीय और टिकाऊ भी है। यह भाषण राजनीतिक परिपक्वता और नैतिक साहस का एक स्पष्ट आह्वान था, जिसमें भारत से मतभेदों के बजाय संवाद को अपनाने का आग्रह किया।
तारीफ करना बड़ा बदलाव : कश्मीर मामलों के जानकार संत कुमार शर्मा ने कहा कि मीरवाइज का तीन सांसदों की तारीफ करना बड़ा बदलाव ही है। इससे उन्होंने एक तरह संसद की सर्वोच्चता को फिर स्वीकारा है। जामिया मस्जिद में 35वर्ष के दौरान जब कभी भी कश्मीर के किसी मुख्यधारा के राजनीतिक नेता की चर्चा हुई है, मुझे नहीं लगता कि उसे सही कहा गया हो,उसे हमेशा ही दिल्ली का एजेंट , कौम का गद्दार कहा गया है। पहली बार मीरवाइज ने उन्हें बिना कहे, कश्मीरियों को प्रतिनिधि माना है।
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