Kashmir News: 'ये फैसला संविधान विरोधी है...', बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर क्यों भड़के फारूक अब्दुल्ला?
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने बिहार में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के फैसले को संविधान विरोधी बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य से बाहर काम करने वाले बिहारी कैसे वोट देंगे और आवश्यक दस्तावेज कहां से लाएंगे। अब्दुल्ला ने चुनाव आयोग पर भाजपा को खुश करने का आरोप लगाया और कहा कि यह कदम संविधान के खिलाफ है।

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने मंगलवार को चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण के फैसले को संविधान विरोधी करार दिया।
अब्दुल्ला ने कहा कि 1.50 करोड़ से अधिक बिहारी अपने राज्य से बाहर काम कर रहे हैं। वे नामांकन के लिए फॉर्म कैसे भरेंगे? वे कैसे वोट देंगे? वे अपने मृतक माता-पिता के प्रमाण पत्र कहां से लाएंगे?" जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूक अब्दुल्ला कुलगाम में पत्रकारों से बात कर रहे थे, जहां वे पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे।
उन्होंने कहा कि जब बीआर अंबेडकर ने संविधान बनाया था, तो सभी को वोट देने का अधिकार था। फिर 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को वोट देने का अधिकार देने के लिए इसमें संशोधन किया गया।
आज इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया (ईसीआई) एक नया कानून लेकर आए हैं जो संविधान के खिलाफ है। ईसीआई अपने मालिक (भाजपा) को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। अपने मालिक को खुश करने के लिए वे सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हैं।" अब्दुल्ला ने कहा कि इन "षड्यंत्रों" के प्रति जागरूक होने की जरूरत है क्योंकि यह भारत के लोगों को स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने कहा देश वासियों से जागने की अपील करते हुए कहा कि मैं अफसोस के साथ कहता हूं कि यह भारत के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। अगर वे इसे आगे बढ़ाते हैं, तो संविधान को बचाने के लिए आंदोलन होगा। और यह पहले के आंदोलन से भी बड़ा होगा। अल्लाह उन्हें संविधान की रक्षा करने की सद्बुद्धि दे।
आपको बता दें कि चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने के निर्देश जारी किए हैं, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना और यह सुनिश्चित करना है कि केवल योग्य नागरिक ही मतदाता सूची में शामिल हों। बिहार में इस तरह का अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था।
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चुनाव आयोग के अनुसार तेजी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार पलायन, युवा नागरिकों के वोट देने के योग्य होने, मौतों की सूचना न देने और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने के कारण यह अभ्यास आवश्यक हो गया था। बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं।
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