बडाल गांव के मरीजों को अभी नहीं मिलेगी छुट्टी, अंतिम फोरेंसिक रिपोर्ट आने तक निगरानी में रहेंगे मरीज
जम्मू-कश्मीर के राजौरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में भर्ती 11 मरीजों में से आठ को मंगलवार को छुट्टी मिलनी थी। लेकिन फोरेंसिक की अंतिम रिपोर्ट में उनके द्वारा सेवन किए गए विषैले पदार्थ की पुष्टि होने तक मरीजों को छुट्टी नहीं दी जाएगी। बता दें कि अंतिम फोरेंसिक रिपोर्ट आने तक अस्पतालों में भर्ती सभी मरीजों को निगरानी में रखा जाएगा।

जागरण संवाददाता, राजौरी। सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) राजौरी में भर्ती 11 मरीजों में से आठ को मंगलवार को छुट्टी मिलनी थी, लेकिन फोरेंसिक की अंतिम रिपोर्ट में उनके द्वारा सेवन किए गए विषैले पदार्थ की पुष्टि होने तक मरीजों को छुट्टी नहीं देने का फैसला किया गया है।
अभी निगरानी में रहेंगे मरीज
जिन मरीजों को पहले एट्रोपिन उपचार से हटा दिया गया था, वह एहतियात के तौर पर निगरानी में रहेंगे। वर्तमान में बडाल गांव के 11 मरीजों जीएमसी राजौरी में उपचार चल रहा है और सभी हालत खतरे से बाहर है।
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प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉ. एएस भाटिया के नेतृत्व वाली विशेषज्ञ समिति ने स्थिति की समीक्षा की और अंतिम फोरेंसिक रिपोर्ट में उनके द्वारा सेवन किए गए विषैले पदार्थ की प्रकृति की पुष्टि होने तक मरीजों को छुट्टी नहीं देने का फैसला किया।
मरीजों को छुट्टी के लिए अभी करना होगा इंतजार
डॉ. एएस भाटिया ने बताया कि फिलहाल हम बडाल के निवासियों द्वारा सेवन किए गए जहरीले पदार्थ के बारे में जानकारी अनिश्चित हैं। हमने उपलब्ध सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर उपचार शुरू किया, जिसमें एट्रोपिन शामिल है, जो सौ प्रतिशत रिकवरी दर हासिल करते हुए एक गेम-चेंजर साबित हुआ है।
उन्होंने कहा, सही जानकारी हासिल करने के लिए अंतिम फोरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार करना होगा, ताकि रोगियों को विषाक्त यौगिक के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों से बचाने के लिए उचित दवाओं के साथ छुट्टी दी जा सके।
छुट्टी देने का अंतिम निर्णय फोरेंसिक रिपोर्ट पर करेगा निर्भर
भाटिया ने कहा कि एट्रोपिन की प्रभावशीलता के बावजूद आर्गेनो फास्फोरस के विशिष्ट लक्षणों की अनुपस्थिति ने इलाज करने वाले डॉक्टरों के बीच सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि आर्गेनो फास्फोरस के साथ कोई अन्य जहर मौजूद था या एट्रोपिन किसी अन्य अज्ञात विष के खिलाफ प्रभावी है।
यह मामले का सबसे आश्चर्यजनक पहलू रहा है। डॉ. भाटिया ने कहा कि कई जहरों के दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं, जो सेवन के तीन से छह सप्ताह बाद प्रकट हो सकते हैं।
इसे ध्यान में रखते हुए टीम ने मरीजों को तब तक अपने पास रखने का फैसला किया है, जब तक कि फोरेंसिक लैब की अंतिम रिपोर्ट नहीं मिल जाती और उन्हें छुट्टी के दौरान उचित उपचार प्रदान नहीं कर सकते। अधिकारियों ने कहा कि मरीजों को छुट्टी देने का अंतिम निर्णय केंद्रीय फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के परिणामों पर निर्भर करेगा।
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