जिस मार्ग से मां वैष्णो देवी पहुंची थीं त्रिकूट पर्वत वह खुलने जा रहा है, जानें 76 साल से क्यों पड़ा था बंद
नवरात्र के चलते जम्मू के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी (Vaishno Devi) के मंदिर में श्रद्धालुओं का फिर सैलाब उमड़ने लगा। वहीं श्रद्धालुओं के लिए एक और खुशखबरी है। भारत पाक विभाजन के बाद से बंद पड़े माता वैष्णो देवी के पारंपरिक मार्ग को खोलने की तैयारी हो रही है। इस रास्ते में देश विभाजन से पहले के कई मंदिर बने हुए हैं।

राहुल शर्मा, जम्मू। देश-विदेश से मां वैष्णो देवी के दर्शनों को आने वाले श्रद्धालुओं को शायद ही यह पता होगा कि यात्रा का एक प्राचीन व पारंपरिक मार्ग भी है, जो देश के विभाजन के बाद से बंद पड़ा है। प्रकृति के आकर्षक नजारों से ओतप्रोत यह पारंपरिक मार्ग बहुत जल्द श्रद्धालुओं के लिए खुलने जा रहा है। जम्मू से 13 किलोमीटर दूर नगरोटा कोल कंडोली मंदिर से देवा माई कटड़ा तक यह मार्ग मात्र 25 किलोमीटर लंबा है।
इस मंदिर पर देश के विभाजन से पहले बने कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनके दर्शन का लाभ श्रद्धालु उठा सकेंगे। मान्यता है कि इन मंदिरों के दर्शन किए बिना मां वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी है। अभी भी अखनूर, जम्मू व उसके साथ लगते इलाकों के लोग जो इस मार्ग से परिचित हैं, यहीं से होते हुए मां वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए कटरा पहुंचते हैं।
विभाजन से पहले चालीस दिन चलती थी यात्रा
विभाजन से पहले चैत्र नवरात्र पर हर वर्ष इसी मार्ग से यात्रा की शुरूआत की जाती थी। दुर्गम यात्रा होने की वजह से इस मार्ग को केवल चालीस दिन के लिए ही श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता था। अधिकांश श्रद्धालु पाकिस्तान के सियालकोट, लाहौर, कराची सहित देश के दूसरे राज्यों से यात्रा में आते थे। कौल कंडोली मंदिर में मां के आशीर्वाद के साथ श्रद्धालु दुर्गम यात्रा आरंभ करते। शुरूआत में यह मार्ग वीरान था और पीने की पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं हुआ करती थी, जिसके बाद कुछ धर्मप्रेमी लोगों ने इस पारंपरिक मार्ग पर आकर्षक मंदिर, सराय, कुओं का निर्माण किया ताकि पैदल व घोड़ों पर आने वाले श्रद्धालु थकान दूर करने के साथ मीठा जल पीकर प्यास बुझा सकें।
कई प्राचीन मंदिर रास्ते में पड़ते हैं
इस प्राचीन मार्ग पर कई मंदिर हैं, जो काफी पुराने हैं। इनमें मां वैष्णो देवी मंदिर पंगोली, ठंडा पानी, शिव शक्ति मंदिर मढ़-द्रावी, राजा मंडलीक मंदिर, काली माता मंदिर गुण्डला, प्राचीन शिव मंदिर बम्याल, देवा माई शामिल हैं। मार्ग के दोनों ओर चीड़ के पेड़ और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर नजारे तथा ऐतिहासिक मंदिर रास्ते को आकर्षित बनाते हैं। भारत पाक बटवारे के बाद यह मार्ग यात्रा के लिए बंद कर दिया गया लेकिन, भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र सिंह राणा और स्थानीय लोगों के प्रयासों से इसे दोबारा खोला जा रहा है।
इसी मार्ग से त्रिकूट पर्वत पहुंची थीं मां वैष्णो
मान्यता के अनुसार इसी मार्ग से मां वैष्णो त्रिकूट पर्वत गईं थीं। इस मार्ग पर सबसे पहले दर्शन कौल कंडोली माता के होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में माता ने यहां पर पांच वर्ष की उम्र में कन्या के रूप में प्रकट हुईं। इसी स्थान पर 12 वर्ष तक तपस्या की और तपस्या वाले स्थान पर पिंडी रूप धारण किया। ऐसी मान्यता है कौल कंडोली माता मंदिर के दर्शन किए बिना यह यात्रा पूरी नहीं होती है।
यात्रा मार्ग पर हैं ये महत्वपूर्ण स्थल
पंगाली गांव में मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर और सराय बनी है। यहां पीने के पानी के लिए कुआ व स्नान के लिए तालाब भी है
- ठंडा पानी में प्राचीन शिव मंदिर है। अब यहां केवल स्थानीय लोग पूजा-अर्चना करते हैं।
- गुंदला गांव में कालिका माता का मंदिर है।
- बम्याल में बस स्टैंड के निकट ठाकुरद्वारा के अवशेष आज भी नजर आते हैं।
- अपर बम्याल में शिव मंदिर है जिसकी दीवारों पर की गई पेंटिंग प्राचीन कारीगरी को उजागर करती है।
- बम्याल में ही प्राचीन ओली मंदिर के अलावा उससे 500 मीटर दूर रियासी जिले में शिव मंदिर व सराय है।
- नौमाई में देवा माई का मंदिर है, जहां आज भी श्रद्धालु जाते हैं।
- पंगाली में अभी मौजूद है 137 साल पुराना मंदिर व सराय
पारंपरिक मार्ग पर पड़ने वाले पंगाली गांव में आज भी 137 साल पहले लाहौर पाकिस्तान के प्रसिद्ध हकीम लाला सुरजन अरोड़ा व उनकी पत्नी शिवदई द्वारा बनाया गया मां दुर्गा का मंदिर, सराय व कुआं मौजूद है। मंदिर का रखरखाव मां वैष्णो के परम भगत श्रीधर के वंशज कर रहे हैं।
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पुजारी दर्शन कुमार शर्मा ने बताया कि लाला व उनकी पत्नी जब पहली बार मां के दर्शनों के लिए यात्रा पर आए तो पंगाली पहुंचने पर उन्हें भूख व प्यास ने घेर लिया। इसी मार्ग पर कोट गांव के निवासी केशव शर्मा यात्रा के दौरान दुकान चलाया करते थे। खाना व पानी पीने के बाद जब उन्होंने दुकानदार से रुपये पूछे तो उसने पानी के रुपये भी लिए।
उन्होंने हैरानी के साथ दुकानदार से पूछा कि भले पानी के पैसे कौन लेता है। तब दुकानदार ने बताया कि उन्हें यहां तक पानी लाने के लिए भी मजदूरी देनी पड़ती है। अगर वे धनवान हैं तो अपने खर्च पर यहां पानी का प्रबंध करवा लें। हकीम ने गांव के नंबरदार जगत सिंह से शुरूआत में 11 कनाल भूमि खरीदी और उस पर मां दुर्गा का आकर्षक मंदिर का निर्माण कराने के साथ श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सराय, लंगर घर बनवाया और पीने के पानी के लिए कुआ भी खुदवा दिया।
मंदिर में पूजा करने के लिए उन्होंने कटड़ा के हंसाली से श्रीधर के वंशजों में से पंडित जगननाथ को लाया और उन्हें मंदिर की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने पुजारी को खेती-बाड़ी के लिए अलग से भूमि भी लेकर थी। आज भी पुजारी परिवार के पास 45 कनाल भूमि है। हालांकि सराय का एक हिस्सा गत वर्ष आंधी की चपेट में आने से क्षतिग्रस्त हो गया था।
बम्याल का ओली मंदिर भी है 153 साल पुराना
देवा माई मंदिर से पहले बम्याल में महालक्ष्मी माता का प्राचीन मंदिर भी मौजूद है, इसे ओली मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भी इमनाबाद पाकिस्तान में रहने वाले दीवान ज्वाला सहाय पुत्र दीवान मीर चंद ने करीब 153 साल पहले बनाया था। यह मंदिर भी श्रद्धालुओं को यात्रा के दौरान रहने व खाने-पीने की पेश आने वाली दिक्कतों को देखते हुए बनाया गया था। इस मंदिर में यात्रा पर जाने वाले व यात्रा से वापस आने वाले श्रद्धालु रहा करते थे। इस मंदिर का रखरखाव पुजारी शमशेर चंद देख रहे है।
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