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    Lok Sabha Election 2024: उधमपुर में मतदान के छह दिन शेष, उपेक्षा और रोष तो कहीं उम्मीदों की किरण थामे हैं मतदाता

    Updated: Sat, 13 Apr 2024 12:50 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर की उधमपुर और कठुआ सीट पर 19 को मतदान होगा। लेकिन अभी भी वहां के मतदाताओं में मतदान को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा।रामबन जिले में बटोत एक अहम कस्बा है। यहां के लोगों का कहना है कि बटोत प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है लेकिन इसे विकसित करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। उनके सांसद यहां की सुध ही नहीं लेते। हम अपनी समस्यायें किसे सुनाएं?

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    Lok Sabha Election 2024: उधमपुर में मतदान के छह दिन शेष

    रोहित जंडियाल, रामबन। Udhampur Lok Sabha Seat: ऊधमपुर-डोडा-कठुआ लोकसभा क्षेत्र का बटोत इलाका...मतदान के लिए महज छह दिन शेष रह गए हैं, किंतु मतदाताओं वह ऊर्जा एवं उत्साह नहीं दिख रहा जैसा पहले हर चुनाव में दिखता था। इस सीट के लिए 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।

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    बाजार में कुछ जगह भाजपा के झंडे जरूर लगे हैं लेकिन अन्य दलों का कहीं पर कोई झंडा नजर नहीं आया। राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं का चुनावी शोर भी अधिक नहीं है। इस बीच मतदाता किसी झांसे में नहीं फंसना चाहता।

    इसका मुख्य एवं बड़ा कारण यहां के लोग विकास की दौड़ में खुद को नजरअंदाज किए जाने से आहत हैं। चुनाव के बाद नेता यहां झांकने तक नहीं आते। इस चुनाव से उम्मीद थामे वोटर मतदान जरूर करेगा, किंतु इस बार समझदारी से।

    महत्वपूर्ण इलाका है बटोत

    यहां लोगों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र पर लाया जाएगा। रामबन जिले में बटोत एक अहम कस्बा है। पिछली बार के संसदीय चुनावों में रामबन जिले में 67,314 वोट पड़े थे। इसमें से भाजपा उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र सिंह को 37,949 और कांग्रेस के विक्रमादित्य सिंह को 26467 वोट मिले थे।

    अन्य कोई भी उम्मीदवार एक हजार वोट के आंकड़े को नहीं छू सका। इस बार भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही है और जितेंद्र सिंह के सामने कांग्रेस के लाल सिंह हैं।

    डीपीएपी जीएम सरूरी भी बटोत में वोट मांगे जा चुके हैं। हैरत की बात है कि लोग राजनीतिक दलों से कोई बड़ी उम्मीद रखते नहीं दिखे। चुनाव प्रचार का शोर-शराबा भी नहीं है।

    बाजार में कुछ जगह भाजपा के झंडे जरूर लगे हैं, लेकिन अन्य दलों का कहीं पर कोई झंडा नजर नहीं आया। बटोत ही नहीं, देसा, कास्तीगढ़ सहित आसपास के क्षेत्रों में भी ऐसी ही स्थिति है।

    राजनीतिक दलों से है नाराजगी

    स्थानीय दुकानदार गुरमीत सिंह को राजनीतिक दलों से नाराजगी है। बटोत प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, लेकिन इसे विकसित करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। उनके सांसद यहां की सुध ही नहीं लेते। हम अपनी समस्यायें किसे सुनाएं। वोट डालना सभी के लिए जरूरी है। इस बार उनके क्षेत्र में कांटे की टक्कर है। देखना यह है कि लोगों की यह चुप्पी किस पर भारी पड़ती है।

    टनल बनने से कमाई घट गई

    चाय बेचने वाले राकेश कुमार को दुख है कि बटोत की किसी ने सुध नहीं ली। नाशरी टनल बनने से यहां पर कमाई भी घट गई है। डोडा, किश्तवाड़ जाने वाली गाड़ियां जरूर यहां से गुजरती हैं, लेकिन पहले जैसी बात नहीं रही। उन्होंने कहा कि सुद्धमहादेव को भद्रवाह से जोड़ने वाली टनल बटोत को और उपेक्षित कर देगी।

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    यह एक अहम मुद्दा है। इस पर पार्टियों को सोचना होगा। अमरचश्मा बटोत के अब्दुल मजीद का कहना है कि बेरोजगारी बड़ी समस्या है। यहां युवाओं के पास रोजगार नहीं है।

    इसके बारे में राजनीतिक दल बात करें। बटोत क्षेत्र में सड़कों पर जरूर काम हुआ है, लेकिन चुनाव के बाद पार्टियां यहां की सुध लेने नहीं आतीं।

    पहले यहां होटलों में काफी भीड़ रहती थी, लेकिन नाशरी टनल के बनने के बाद यह क्षेत्र कट गया है। अब इस स्थान पर सिर्फ होटलों में वे ही लोग आते हैं जिन्हें पत्नीटॉप में कमरे नहीं मिलते या फिर वहां कमरे महंगे होने के कारण यहां आते हैं।

    इस स्थल को विकसित करने की आवश्यकता है। उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन उम्मीदवारों से नहीं।

    -सुनील कुमार, होटल कारोबारी

    उम्मीदवार जीतने के बाद यहां आते ही नहीं है। केंद्र सरकार अगर कुछ करती है तो उसका लाभ आम आदमी को नहीं मिलता है।

    लोगों में चुनावों को लेकर अधिक उत्साह न होने का यह भी एक बड़ा कारण है। चुनावों में यह भी देखना होगा कि डीपीएपी कितने वोट पाती है।

    -फैयाज अहमद, बिजली विकास निगम से सेवानिवृत्त

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