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    नहीं रहे अशोक चक्र विजेता छेरिंग मोटुप, सियाचिन ग्लेशियर में दुश्मन से चौकी जीतने पर मिला था यह सम्मान

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 02:23 PM (IST)

    लद्दाख के अशोक चक्र विजेता छेरिंग मोटुप का निधन हो गया। उन्होंने सियाचिन ग्लेशियर को वापस लेने के लिए आपरेशन मेघदूत में भाग लिया था। 1985 में उन्होंने अपनी टीम के साथ दुश्मन पर धावा बोलकर एक भारतीय चौकी को कब्जे में लिया था। उनके निधन पर लद्दाख स्काउट्स ने शोक जताया है।

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    नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय थे और युवाओं के लिए प्रेरणा थे।

    राज्य ब्यूरो, जागरण जम्मू। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के उपराज्यपाल कविन्द्र गुप्ता व सेना की सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट हितेष भल्ला ने अशोक चक्र विजेता छेरिंग मोटुप के निधन पर गहरा शोक जताया है।

    अस्सी वर्षीय सेवानिवृत नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप ने सेना की लद्दाख स्काउट्स के सैनिक के रूप में आपरेशन मेघदूत में पाकिस्तान से सियाचिन ग्लेशियर की चोटियों को वापस लेने के लिए लड़े थे।

    इस दौरान 21 फरवरी 1985 को लद्दाख के सियाचिन ग्लेशियर में खराब मौसम में अपनी टीम के साथ दुश्मन पर धावा बोल कर एक भारतीय चौकी को अपने कब्जे में ले लिया था। इस असाधारण वीरता के लिए उन्हें शांतिकाल में वीरता के लिए सर्वोच्च पदक अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।

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    रविवार को अस्सी साल की आयु में उनके निधन से लद्दाख में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके निधन पर सेना की लद्दाख स्काउट्स व जम्मू कश्मीर राइफल्स के कर्नल आफ द रेजिमेंट, लेफ्टिनेंट जनरल एमपी सिंह ने भी रेजिमेंटों के सभी रैंकों की ओर से हार्दिक संवेदना जताई थी। वहीं सोमवार को शोक जताने के लिए नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप के घार पर लोगों की भीड़ उमड़ी।

    नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। दो साल पहले उनके सेना में सेवारत वीर चक्र विजेता पुत्र सूबेदार मेजर छिवांग मोरूप के सड़क हादसे में बलिदान हो गए थे। इससे उन्हें गहरा आघात लगा था।

    अशोक चक्र विजेत छेरिंग मोटुप के पुत्र सेना की लद्दाख रेजीमेंट के सूबेदार मेजर छिवांग मोरूप ने भी पिता के पद्चिन्हों पर लड़ते हुए कारगिल युद्ध में वीरता दिखाई थी। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में प्वायंट 5770 जीतने के लिए लड़ी लड़ाई में बहादुरी दिखाने के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

    इसी बीच अशोक चक्र विजेता के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनों के लिए लद्दाख के लेह जिले के लिकिर गांव में रखा गया था। अगले कुछ दिन के बाद घर में पूजा अर्चना करने के बाद नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप का अंतिम संस्कार किया जाएगा।

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    नायब सुबेदार छेरिंग मोटुप लद्दाख में सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए भी आगे रहते थे। उन्होंने गत वर्ष लद्दाख में पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरणविद्ध सोनम वांगचुक के उपवास को भी समर्थन दिया था। वह लद्दाख के ऐसे हजारों युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत थे जो भारतीय सेना की लद्दाख स्काउट्स में भर्ती होकर देशसेवा करना चाहते हैं।