कितने खोदे पहाड़ और कैसे बनी सुरंगें? कश्मीर तक ट्रेन लाना नहीं था आसान, ऐसे पूरा हुआ 70 साल का सपना
कश्मीर तक वंदे भारत एक्सप्रेस (Kashmir Vande Bharat Express) के सफर का सपना आखिरकार पूरा हो गया है। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटड़ा से कश्मीर (Katra to Kashmir Train) के लिए देश की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाएंगे। कश्मीर तक ट्रेन लाने में कितना समय लगा और इंजीनियरों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? आइए विस्तार से जानते हैं।
डिजिटल डेस्क, जम्मू। पहले 26 जनवरी, फिर 17 फरवरी और अब 19 अप्रैल... कश्मीर तक वंदे भारत एक्सप्रेस (Kashmir Vande Bharat Express Inauguration) के उद्घाटन को लेकर एक बार फिर तारीख का एलान हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 अप्रैल को कटड़ा से कश्मीर के लिए देश की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वंदे भारत एक्सप्रेस (Kashmir Vande Bharat Express) को हरी झंडी दिखाएंगे।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी के साथ केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullaha) के साथ उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी मौजूद रहेंगे।
कश्मीर तक ट्रेन लाने में दशकों का समय लगा है। जिसमें इंजीनियरों, श्रमिकों और तमाम कर्मचारियों की कड़ी मेहनत लगी है। इसी क्रम में आज हम कश्मीर तक वंदे भारत और ट्रेन मार्ग से जुड़ी उन सभी बातों को जानेंगे जिनके जरिए कश्मीर से कन्याकुमारी (Kashmir to Kanyakumari Train Story) तक ट्रेन का सपना हकीकत बन सका।
कैसे जोड़ा गया रेल लिंक?
वर्तमान समय में कटड़ा रेलवे स्टेशन (Katra Railway Station) तक देश का रेल नेटवर्क जुड़ा है। देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाली ट्रेनें उत्तर भारत में कटड़ा रेलवे स्टेशन (Shri Mata Vaishno Devi Railway Station) तक ही जा पाती हैं। कश्मीर तक रेल नेटवर्क को पांच चरणों में जोड़ा गया है, जिनमें दो चरणों में संचालन हाल ही में हुआ है। इनमें पहला- कटड़ा से रियासी (Katra to Reasi) और फिर रियासी से संगलदान (Reasi to Sangaldan)।
संगलदान से बारामूला तक वर्तमान में मेमू ट्रेन का संचालन किया जाता है। इस बीच ये मेमू ट्रेन अनंतनाग, बनिहाल, काजीगुंड, अनंतनाग और श्रीनगर (Srinagar Railway Station) होते हुएअंत में बारामूला तक पहुंचती है। कटड़ा और रियासी और रियासी से संगलदान को इंटरलिंक कर पूरे भारत का लिंक कश्मीर तक जुड़ा गया है।
किस परियोजना के तहत हुआ काम?
कश्मीर तक ट्रेन लाने के लिए उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (What is USBRL) के तहत कार्य किया गया। इसमें दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल चिनाब ब्रिज (Chenab Railway Bridge), जो नदी से 359 मीटर ऊंचाई पर है। इसके साथ ही केबल स्टेड अंजी खड्ड पुल (Anji Khad Bridge) भी शामिल हैं। यह ब्रिज 331 मीटर ऊंचाई पर है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना इंजीनियरिंग में एक नया चमत्कार माना गया है। इस परियोजना को पूरा करने में 70 साल का समय लगा है।
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USBRL के 272 किलोमीटर में से 209 किलोमीटर हिस्से को चरणों में चालू किया गया था। जो कुछ इस तरह है,
- पहला चरण: 118 KM, काजीगुंड से बारामूला, चार अक्टूबर, 2009
- दूसरा चरण: 25 KM, उधमपुर से कटड़ा, जुलाई, 2014
- तीसरा चरण: 48 KM, बनिहाल-संगलदान, फरवरी, 2024
- चौथा चरण: 46 KM, संगलदान-रियासी, जून, 2024
- पांचवा चरण: 17 KM, रियासी से कटड़ा, जून, 2024 के बाद तीन महीनों में हुआ पूरा।
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वंदे भारत एक्सप्रेस का ट्रायल
सभी चरणों के पूरा होने के बाद कश्मीर तक वंदे भारत एक्सप्रेस (Kashmir Vande Bharat Express inauguration) का ट्रायल किया गया। कई दिनों तक ट्रायल के बाद वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) को रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने ट्रेन मार्ग को हरी झंडी दिखा दी। अब 17 अप्रैल को देश के प्रधानमंत्री ट्रेन कटड़ा से श्रीनगर तक के लिए हरी झंडी दिखा देंगे।
किन चुनौतियों का करना पड़ा सामना?
USBRL के तहत कश्मीर तक ट्रेन लाने में 70 वर्षों का समय लगा है। इस बीच रेलवे ने परियोजना (Train to Kashmir Challenges) के अंतर्गत 927 खतरनाक पुल और 37 टनल बनाए ताकि कश्मीर तक रेल मार्ग जुड़ सके। जाहिर हैं, पहाड़ों को संकीर्ण मार्गों के जरिए काटना बेहद चुनौतीपूर्ण था।
वहीं, माता वैष्णो देवी के त्रिकुटा पर्वत के नीचे से गुजरने वाली टी-1 सुरंग सबसे चुनौती भरी रही। इसमें करीब डेढ़ किलोमीटर सुंरग बनने के बाद इसके आगे 300 मीटर के हिस्से में पानी के रिसाव के साथ मलबा निकलने लगा। जिसे रोकने के सभी प्रयास विफल होते गए। परियोजना में अन्य सुरंगें व पुल बनते गए, लेकिन टी-1 सुरंग कश्मीर तक ट्रेन ले जाने में अंतिम बाधा बन गई थी। काफी मशक्कतों के बाद यह काम पूरा हो सका।
- त्रिकुटा पर्वत पर टी-1 सुरंग बनाने में कई साल लगे
- अंजी खड्ड और चिनाब पुल का निर्माण इंजीनियरों के लिए नहीं था आसान
- USBRL प्रोजेक्ट के तहत 927 खतरनाक पुल और 37 टनल बनाए गए
- इन्हीं समस्याओं के तहत यह काम 5 चरणों में पूरा हो सका
- USBRL परियोजना में 41 हजार करोड़ रुपये लगे
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