Jammu Kashmir: किसी ने मां तो किसी ने पिता के बलिदान होने की सुनाई दर्द भरी दास्तां, भावुक हुए लोग
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से पीड़ित परिवारों को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने नियुक्ति पत्र सौंपे। 2004 में आतंकियों ने प्रदीप सिंह के पिता की गर्दन काट दी थी वहीं 2008 में विकास शर्मा की मां क्रॉस फायरिंग में मारी गई थीं। सालों बाद इन परिवारों को इंसाफ मिला है। नियुक्ति पत्र पाकर कई लोग भावुक हो गए।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। आतंकवाद ने जम्मू-कश्मीर में हजारों परिवारों को उजाड़ा है। बहुत से परिवार ऐसे हैं जिन्होंने आतंकवाद के दंश दशकों तक झेले हैं। परिजनों के बलिदान होने पर गांव तो उमड़ पड़ते थे लेकिन इसके बाद उनकी संघर्ष की कहानियां शुरू हो जाती थी। इन्हीं परिवारों में से कुछ को जब सोमवार को कन्वेंशन सेंटर में उपराज्यपाल ने नियुक्ति पत्र सौंपे तो बहुत से भावुक हो गए थे।
पापा देश के लिए शहीद हुए गर्व रहेगा
यह बात वर्ष 2005 की है, उस समय मैं सिर्फ सात वर्ष थी। पापा सरूप चंद सीमा सुरक्षा बल में थे और उनकी नियुक्ति पश्चिम बंगाल में थी। दन दिनों मोबाइल फोन नहीं होते थे लेकिन लैंडलाइन फोन थे। मैं अपनी बहन, भाई और मां के साथ घर में थी। अचानक से फोन आया और पता चला कि पापा बलिदान हो गए। यह बात सोमवार को उपराज्यपाल से नियुक्ति पत्र हासिल कर आई किश्तवाड़ की रहने वाली हेमा कुमारी ने बताई। हेमा ने बताया कि छोटी थी अधिक समझ तो नहीं थी लेकिन जैसे ही मां को पता चला तो वह बेसुध हो गई। पापा ट्रेनिंग के लिए किश्तवाड़ में गए थे और वहीं पर आतंकियों के साथ हुई एक मुठभेड़ में वह बलिदान हो गए। हमारे घर में कमाने वाला कोई भी नहीं था। हम पर तो उस समय पहाड़ सा टूट गया था। हमें वापस किश्तवाड़ में आने में ही चार दिन लग गए। पूरा किश्तवाड़ उनके घर में जमा हुआ था। पापा देश के लिए बलिदान हुए यह सुनकर गर्व महसूस होता है लेकिन इसके बाद उनकी किसी ने भी सुध नहीं ली। मेरी मां ने ही हमें पालपोस कर बढ़ा किया। मैंने बीएससी की है। आज मुझे राजस्व विभाग में नौकरी मिली है। इसके लिए में उपराज्यपाल प्रशासन का धन्यवाद करती हूं।
आतंकियों ने पिता की गर्दन काट दी थी
राजौरी की तहाील द्राल के कोटरंका गांव के रहने वाले प्रदीप सिंह ने बताया कि 19 जनवरी 2004 को आतंकवादियों ने उनके पिता की गर्दन काट कर मंदिर में चढ़ा थी। बहुत ही दर्दनाक था सबक कुछ। मैं छोटा था लेकिन अभी तक उस घटना को नहीं भूला हुं। उन्होंने कहा कि आज 21 वर्ष बाद हमारा परिवार फिर से जिंदा हो गया। हमें उम्मीद ही नहीं थी कि हमारे साथ भी इंसाफ होगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल प्रशासन के कारण ही ऐसा संभव हो पाया है।
मासी के घर थे तो बच गए
सांबा जिले के खडरगाल गांव के रहने वाले विकास शर्मा ने बताया कि वर्ष 2008 में जब गर्मियों की छुट्टियां पड़ी थी। जब हम तीनों भाई अपनी मासी के घर गए थे। घर में सिर्फ मां और पापा थे। आतंकवादियों ने घर में घुसने का प्रयास किया तो इसके बाद सुरक्षाबल भी वहीं पर मौजूद थे। क्रास फायरिंग में मां की मौत हो गई। तब हमें आश्वासन दिया गया था कि जब आप 18 वर्ष के हो जाओगे तो आप तीनों भाइयों में से एक की सरकारी नौकरी मिल जाएगी लेकिन किसी को नहीं मिली। आज 17 वर्ष बाद उपराज्यपाल प्रशासन में इंसाफ मिला है। वहीं रामबन के सतीश सिंह ने बताया कि उनके पिता जट्टू राम एसपीओ थे। वह वर्ष 2003 में 2003 में बलिदान हुए थे। उनके परिवार में आय का कोई और साधन नहीं था। मां मां गाय का दूध बेच कर हमारा पालन-पोषण करती थी। आज वषों बाद इंसाफ मिला है।
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