Jammu Kashmir: भाई की प्रतिमा को राखी बांध दिल को तसल्ली देती हैं बलिदानी तरसेम लाल की बहनें, 26 साल पहले हुआ था बलिदान
रक्षाबंधन के अवसर पर बिश्नाह के गंडली गाँव की चार बहनें अपने शहीद भाई राइफलमैन तरसेम लाल को याद करती हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध में बलिदान दिया था। वे हर साल उनकी प्रतिमा को राखी बांधती हैं। दैनिक जागरण के भारत रक्षा पर्व के माध्यम से वे सैनिकों को राखी भेजकर उन्हें अपना भाई मानती हैं जो देश की रक्षा में तैनात हैं।

संवाद सहयोगी, जागरण, बिश्नाह। रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। यह त्योहार देश सहित प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान जब बहनों भाइयों को राखी बांधती हैं, तो उन्हें देखकर बिश्नाह तहसील के गंडली गांव की चार बहनों की आखें भाई की याद में नम हो जाती हैं। लेकिन, देश की रक्षा में बलिदान हुए भाई राइफलमैन तरसेम लाल की प्रतिमा को राखी बांध कर दिल को तसल्ली देती हैं।
अब भाई की कलाई नहीं, पर भावना वही है। यह कहते हुए शहीद तरसेम लाल की बहन नीलम कुमारी की आंखें नम हो जाती हैं। वे बताती हैं, कि हम चार बहनें हर रक्षाबंधन और भाई दूज पर अपने आंसू पी जाती हैं। जब आसपास की बहनों को भाइयों की कलाई पर राखी बांधते देखती हूं, तो दिल बैठ जाता है।
साथ ही एक सुकून भी होता है कि हमारी जैसी न जाने कितनी बहनों के भाई सरहद पर देश की रक्षा में तैनात हैं। इसलिए, हम दैनिक जागरण के भारत रक्षा पर्व के माध्यम से उन सैनिकों को राखी भेज कर यही मान लेती हैं कि वह ही अब हमारे भाई हैं।
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पिता की राह पर चला था भाई
नीलम देवी ने बताया कि उनके पिता बूटी राम भी फौज में थे। 1978 में अरनिया थाना क्षेत्र के गांव गंडली में जब तरसेम का जन्म हुआ, तो चार बहनों को वह कलाई मिली थी, जिस पर वे हर साल राखी बांधती थीं। लेकिन, 10 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल को दुश्मनों से मुक्त करवाते हुए तरसेम लाल बलिदान हो गए।
दर्द भरे स्वर में नीलम कहती हैं, भाई की शहादत के कुछ समय बाद ही माता तृप्ता देवी और पिता बूटी राम भी दुनिया से चले गए। अब मायके के उस घर पर ताला लटका रहता है और बचा है सिर्फ स्मारक, जिसे हम राखी बांधकर यादों को तसल्ली देते हैं।
आपरेशन सिंदूर के दौरान आई थी भाई की याद
नीलम कुमारी ने बताया कि उनकी तरह उनकी अन्य बहनों आशा रानी, सुनीता देवी और रजनी देवी ने अपने-अपने घर बसा लिए हैं, पर रक्षाबंधन जैसे त्योहार उनके लिए अब सिर्फ एक भावनात्मक अवसर रह गया है। जब हाल ही में पहलगाम में आतंकी हमला हुआ और सेना ने आपरेशन सिंदूर चलाकर आतंकियों को जवाब दिया, तब एक बार फिर अपने वीर भाई की याद आ गई।
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आज भी जब कोई सैनिक या सेना की वर्दी में युवक दिखता है, तो उसमें हमें अपना भाई नजर आता है। इसलिए, भारत रक्षा पर्व के माध्यम से हम अपनी राखियां उन वीर जवानों तक भेजती हैं, जो सरहद पर हमारी रक्षा कर रहे हैं।
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