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    खून जमाने वाली ठंड भी नहीं रोक पा रही सेना के कदम, -20 डिग्री तापमान में दे रहे ऑपरेशनल तैयारियों को धार

    Updated: Sun, 29 Dec 2024 02:27 PM (IST)

    भारतीय सेना दृढ़ता और समर्पण का प्रतीक है। लद्दाख की खून जमाने वाली ठंड बर्फीले तूफान और हिमस्खलन के खतरों के बीच भी कांबेट इंजीनियर्स ऑपरेशनल तैयारियों को मजबूत कर रहे हैं जबकि सियाचिन ग्लेशियर और पूर्वी लद्दाख में सैनिक उच्चतम स्तर की सतर्कता बनाए हुए हैं। सियाचिन ग्लेशियर में तापमान जनवरी में माइनस 50 डिग्री तक गिर जाता है।

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    अत्यधिक ठंड में पुल बनाने का अभ्यास करते फायर एंड फ्यूरी कोर के कांबेट इंजीनियर्स और जवान (फोटो- सेना)

    विवेक सिंह, जम्मू। लद्दाख की खून जमाने वाली ठंड, बर्फीले तूफान, हिमस्खन के खतरे और चीन व पाकिस्तान के षड्यंत्रों के बावजूद भारतीय सैनिक दृढ़ता से सीमाओं पर डटे हैं। लेह के ऊपरी इलाकों में माइनस 20 डिग्री तापमान से नीचे के तापमान में सेना के कांबेट इंजीनियर्स ऑपरेशनल तैयारियों को धार दे रहे हैं। कांबेट इंजीनियर्स अभ्यास के दौरान सेना के काफिलों को सीमा तक पहुंचाने के लिए कम समय में पुल बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं।

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    दुर्गम इलाकों में अहम भूमिका निभाते हैं कांबेट इंजीनियर्स

    दूसरी ओर सियाचिन ग्लेशियर व पूर्वी लद्दाख के उच्चतम इलाकों में सैनिक इस समय नियंत्रण रेखा पर विशेष पेट्रोलिंग कर सर्तकता के उच्चतम स्तर का प्रदर्शन कर रहे हैं। युद्ध के मैदान में कांबेट इंजीनियर्स अहम भूमिका निभाते हुए। उनकी जिम्मेदारी होती है कि सेना के सीमा की तरफ बढ़ते कदम में कोई बाधा न आए।

    इस समय लेह में 12 हजार से ऊपर की ऊंचाई पर अत्याधिक ठंड के बीच सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर की इंजीनियरिंग रेजीमेंट के अधिकारी व जवान मोर्चा संभाले हैं। उच्चतम इलाकों में सेना की इंजीनियरिंग रेजीमेंट का अभ्यास हर मौसम में युद्ध के लिए तैयार रहने के अधिकारियों व जवानों के आत्मविश्वास का प्रतीक हैं।

    लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में युद्ध के मैदान में कांबेट इंजीनियर्स अहम भूमिका निभाते हैं। वे त्वरित कार्रवाई करते सेना के टैंकों व वाहनों को सीमा के पास पहुंचाने के लिए पुल, ट्रैक व हेलीपैड आदि बनाने की काबलियत रखते हैं।

    हमेशा भारी रहता है सैनिकों का मनोबल

    लद्दाख की कठोर सर्दी पर सैनिकों का मनोबल हमेशा भारी रहता है। सैनिक सियाचिन ग्लेशियर जैसे वातावरण में काम करने में प्रशिक्षित हैं। यहां जीवन आसान नहीं है। सियाचिन ग्लेशियर में तापमान जनवरी में माइनस 50 डिग्री तक गिर जाता है।

    सियाचिन ग्लेशियर के साथ पूर्वी लद्दाख के गलवन जैसे इलाके में भारतीय सैनिक उच्चतम स्तर की सतर्कता बरतते हर चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।

    दिसंबर की ठंड के बीच ऑपरेशनल तैयारियों को तेजी देने के लिए उत्तरी कमान के आर्मी कमांडर लेफ्टिनेट जनरल एमवी सुचेंद्र कुमार व फायर एंड फ्यूरी कोर के कोर कमांडर भी कई दौरे कर चुके हैं।

    जम्मू-कश्मीर व हिमाचल से लद्दाख का सड़क संपर्क कटने के बाद वायुसेना के विमान चंडीगढ़ से उड़ान भरकर लद्दाख में सेना की जरूरतों को पूरा करते हैं।

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    एमवी सुचेंद्र कुमार ने सेना की सराहना की

    सेना की उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ, लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचेंद्र कुमार ने उत्तरी कमान में सेना के लिए रसद जुटाने के लिए सेना व वायुसेना के संयुक्त प्रयासों की सराहना की।

    उन्होंने उम्मीद जताई कि सेना के लिए आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। सेना सर्दियों में लद्दाख में जरूरत का सामना नवंबर-दिसंबर में स्टोर करती है।

    चुनौतियों का सामना करने को तैयार

    लद्दाख के पीआरओ डिफेंस लेफ्टिनेंट कर्नल पीएस सिद्धू का कहना है कि सेना सर्दी की चुनौतियों का सामना करने के लिए हरदम तैयारी रहती है। अत्याधिक ठंड के बीच ऑपरेशनल तैयारियों के साथ सेना दूरदराज इलाकों के लोगों की मुश्किलों को दूर करने के लिए भी हाजिर है। लोगों को राहत देने के लिए कैंप लगाने के साथ खेल प्रतियोगिताओं का भी जोर है।

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