Jammu : रूढ़ीवादी सोच को मात दे महिलाओं के लिए बनी मिसाल, जानें किस तरह ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बना रही रजनी देवी
जम्मू की रजनी देवी ने रूढ़िवादी सोच को तोड़कर सफलता प्राप्त की और दूसरों के लिए मिसाल बनीं। किश्तवाड़ के दूरदराज क्षेत्रों की महिलाओं को खजूर के पत्तों पराली से सामान बनाने का प्रशिक्षण दे रही हैं। रजनी हैंडीक्राफ्ट स्टोर के माध्यम से उन्होंने पहले नौ महिलाओं को जोड़ा और अब भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय द्वारा प्रायोजित गुरू-शिष्या हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। रूढ़ीवादी सोच की छाया में जी रहे लोगों के बीच किसी महिला का तमाम बंधनों को तोड़ सफल होना कतई आसान नहीं है। लेकिन एक महिला ऐसी भी है जो न सिर्फ खुद सफल हुई बल्कि अन्य के लिए भी मिसाल बन गई। अब ग्रामीण व दूरदराज के क्षेत्रों की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें भी आत्मनिर्भर बना रही है।
जम्मू के मथवार के साथ लगते कैंरी गांव की रजनी इन दिनों किश्तवाड़ के दूरदराज के क्षेत्रों की महिलाओं को खजूर के पत्तों और पराली से छावड़ियां, बैठने के लिए बिने, लंच बाक्स सहित कई सामान बनाने का प्रशिक्षण दे रही है।
कैरी की रहने वाली रजनी देवी के पति अश्विनी मनरेगा में काम कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। उनके लिए परिवार को चलाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में रजनी ने अपने पति व सास ससूर के साथ बात कर खुद काम करने की बात की।
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स्वजनों का साथ तो मिल गया लेकिन जैसे ही यह बात गांव के चंद प्रभावशली लोगों को पता चली तो उन्होंने यह कह कर विरोध किया कि गांव की महिला काम नहीं करेगी। अगर उसने कोई सेंटर खोलने का प्रयास किया तो उसे विफल कर देंगे। मगर रजनी ने दृढ़ निश्चय कर लिया था। वह हैंडीक्राफ्ट विभाग के अधिकारियों से मिली और हरिकृष्ण सोसायटी के साथ जुड़ गई।
रजनी ने खजूर के पत्तों और पराली से छावड़ियां, बैठने के लिए बिने, लंच बाक्स, सहित कई सामान बनाना शुरू किया और इसे सरकार द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रदर्शनियों में बेचना शुरू कर दिया। लोगों ने भी इसे पसंद किया।
इससे रजनी उत्साहित हुई और उसने अपना स्वयं सहायता समूह रजनी हैंडीक्राफ्ट स्टोर बनाया और अपने साथ पहले नौ महिलाओं को जोड़ा। हालांकि यह सब आसान नहीं था। गांव में महिलाओं को घरों से बाहर निकालना मुश्किल था।
मगर उसने सभी को समझााया और काम करने के लिए प्रेरित किया। महिलाओं के भीतर से भय को खत्म किया और उन्हें भी काम करना सिखाया। उसके साथ सिर्फ कैरी नहीं बल्कि मथवार, राबता, बगानी, सरोड़ गांवों की महिलाएं भीजुड़ी।
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अब दूरदराज के क्षेत्रों की महिलाओं को कर रही प्रशिक्षित
भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय द्वारा प्रायोजित गुरू-शिष्या हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत अब रजनी दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है। तीस-तीस महिलाओं के समूह को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन दिनों वह किश्तवाड़ में प्रशिक्षण दे रही है। इसमें सरथल, पलमार, चरहर, नागसेनी, संग्रभटा जैसे गांव की महिलाएं रजनी से पारंपरिक डोगरा वस्तुएं बनाने की कला सीख रही है।
रजनी ने बताया कि इससे पहले उसने ठंडा पानी नगरोटा में महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। नगरोटा में ही सेना के जवानों की पत्नियों को भी प्रशिक्षित किया। यह प्रशिक्षण दो महीने तक जारी रहता है। इससे वह महिलाएं आत्मनिर्भर बन जाती हैं जो स्वजनों पर निर्भर हैं। इसमें सारा खर्च कपड़ा मंत्रालय ही उठा रहा है। उन्हें इस काम में असिस्टेंट डायरेक्टर अंबिका संब्याल ने पूरा सहयोग दिया।
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सब कुछ इतना आसान नहीं है
रजनी का कहना है कि ग्रामीण महिलाओं के लिए सब कुछ आसान नहीं है। परिवार का साथ मिलना चाहिए। रूढ़ीवादी क्षेत्रों में समाज के साथ टक्कर लेना बहुत मुश्किल है। उसने बताया कि वह जम्मू, श्रीनगर, दिल्ली के प्रगति मैदान, दिल्ली हाट, मोहाली, आइआइटी नगरोटा में आयोजित प्रदर्शनियों में अपने स्टाल लगा चुकी है। मगर चुनौती बहुत है। वह जो सामान बनाती है, वे डुग्गर संस्कृति को जिंंदा रखने के लिए भी है। छाबड़ियां, बिने, ड्रइ फ्रूट की ट्रे सहित कई सामान खजूर के पत्तों से बना कर घरों में रखना हमारी संस्कृति थी। उसी को बचाने का प्रयास है। लेकिन इसके लिए लोगों का भी सहयोग चाहिए।
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